Rajeev Rawat

Romance Tragedy Inspirational

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Rajeev Rawat

Romance Tragedy Inspirational

कहानी--नदी के दो पाट

कहानी--नदी के दो पाट

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अभी ठीक तरह से नींद खुली भी नहीं थी कि मोबाइल की घंटी जोर जोर से बजने लगी। एक अनहोनी की आशंका से मैंने मोबाइल को आन कर दिया। पापा का फोन था। उनकी आवाज फंसी फंसी थी। 

-रीनू, बेटा तुम जल्दी से घर आ जाओ। - -

- - क्या हुआ पापा आप सभी ठीक हैं न?

-- बेटा तुम्हारी मम्मी की तबीयत -

इससे पहले कि वह कुछ कहते मोबाइल कट गया, ठंड के दिन थे, घबराहट में पसीना आ गया। मैंने पुनः फोन लगाने की कोशिश कीकिंतु इंगेज की टोन आ रही थी। मोबाइल को एक ओर रखकर मैं तेजी से उठकर बालों को ठीक करने लगी तभी किचन से बर्तनों की आवाज आयी। मनीष चाय बना रहे थे। आज कोल्ड वेव के कारण दो दिनों की बच्चों की छुट्टी घोषित कर दी गई थी। इसलिये दोनों बच्चे नील और नीलिमा अभी सो रहे थे और मैं रिलेक्स थी। मनीष सुबह सुबह आठ बजे से मरीजों को देखते हैं और मैं दस के बाद ही होस्पिटल जाती हूं--

मुझे हड़बड़ाया देखकर मनीष ने चुटकी ली। 

--मैच शुरू हो गया क्या ? 

मैं उत्तर दिये बगैर तैयार होने लगी। नील और नीलिमा दोनों को उठा दिया, तब तक चाय का प्याला ले मनीष आ गये और मुझे सीरियस देखकर पूछने लगे - 

--क्या हुआ? रियली समथिंग इस रांग-

--पापा का फोन आया था कि मम्मी इज नाॅट वैल, मुझे शीघ्र बुलाया है-

--ठीक है तुम चिंता मत करो पहुँचते ही मुझे फोन करना 

मैं तेजी से ड्राइव करते हुए घर पहुँचीं थी तो देखा आसपास के अंकल आंटी दरवाजे पर खड़े हुए थे। मैं घबराते हुए अंदर की ओर भागी।

मम्मी लेटी हुई थी। पापा मम्मी का हाथ सहला रहे थे, मैंने पापा से पूछा तो उन्होंने रुंधे स्वर में बताया कि - - 

--रात में तीन बजे सिर में दर्द हुआ और उल्टी के बाद बेहोश हो गयी थीं

मैंने चेक किया! तुरंत मनीष को एम्बुलेंस लेकर आने को कहा। मनीष ने चेक कर कहा ब्रेन हेमरेज हुआ है।

रिपोर्ट आने पर पता चला कि ब्लड की क्लोटिंग हो गई है। आपरेशन संभव नहीं था, मैंने व मनीष ने पापा से आराम करने के लिए कहा किन्तु उन्होंने ने इनकार कर दिया, शायद किसी पर भरोसा नहीं था। 

मुझे मनीष की मैच वाली बात याद आ गई, जब से मैंने होश संभाला पापा मम्मी को उलझते देखा, पापा नील और नीलम के साथ बच्चे बन कर धूम मचाते रहते थे और बच्चे भी नानू करते उछल कूद करते रहते। मम्मी को घर ठीक रखने का शौक था, इसलिये वह हमेशा झल्लाती रहतीं। जब मेरी शादी की बात चल रही थी और जन्म पत्रिका मिलाने की बात हुई तो तब पापा ने कहा था कि कोई जन्म पत्रिका नहीं मिलायी जायेगी, बस जहां रीनू की मन पत्रिका मिलेगी वहीं शादी होगी और हां साला वह पंडित मुझे मिल जाये जिसने मेरी और तेरी मम्मी की पत्रिका मिलायी थी तो सिर ही फोड़ दूंगा। कहता था - 

--यह तो राम सीता की जोड़ी है, पूरे छत्तीस के छत्तीस गुण मिल गये।

मेरे पापा से उस समय पूरे के पूरे सवा सौ रूपये ले गया था, बाद मैं एक दिन मैंने उसे पकड़ा

-- अबे पंडित तूने कैसे गुण मिलाये थे। सारे के सारे उलटे मिलते हैं। 

वह धूर्तता से मुस्कराकर बोला - 

--जजमान मैंने तो ठीक से लिखकर दिया, आप ढंग से पढ़ा नहीं तो मेरा क्या दोष? वह तो बाद पता चला कि वह हिन्दी के अंको के छत्तीस (३६) गुण लिखकर के गया था जिसमें दोनों तीन उलटे में लिखे रहते हैं। समझने में हमारा ही दोष निकला।

         शुरू शुरू जब पापा मम्मी का किसी बात पर झगड़ा होता था तो लगभग पांच दिनों की बोलचाल बंद हो जाती थी और हम भाई बहिन मित्रों के साथ खेल खेल में कहा करते थे कि मम्मी पापा का टेस्ट मैच चल रहा है। -हमारी मस्ती हो जाती थी क्योंकि इन पांच दिनों हमारी शिकायतें पापा के पास पहुंच ही नहीं पाती थीं। 

गर्मियों की छुट्टियों में हम भाई बहिन यही प्रार्थना करते रहते कि पापा मम्मी का टेस्ट मैच शुरू हो जाये तो दिन दिन भर होमवर्क से छुटकारा मिल जाये और खूब खेलने मिल जाये। वह तो भैया के बारहवीं में प्री एक्जाम टेस्ट मे काफी कम नंबर आ गये। भैया सहमे सहमे से स्कूल से लोटे। मैं बाहर ही खेल रही थी। भैया को उदास देखकर मैं समझ गयी कि भैया का रिजल्ट खराब हो गया है। मैंने इशारे इशारे में पूछा तो उन्होंने बता दिया। मैंने भैया को बताया कि पापा मम्मी का टेस्ट मैच आज शुरू हो गया है।

भैया की जान में जान आयी। पापा पढ़ाई के मामले में एकदम सख्त थे। उनका कहना था। खेलना चाहिये लेकिन पढ़ाई की कीमत पर नहीं। मम्मी अपने कामों में ही उलझी रहतीं बस पढ़ाई के लिए अवश्य डाटती रहतीं थीं। 

मम्मी ने भैया का रिजल्ट देखकर डाटा। भैया भी सिर झुकाये रहे, जानते थे। मम्मी अभी पापा से कहेंगी नहीं और पांच दिनों में बात आई गई हो जायेगी, लेकिन वह पहली बार हुआ कि बच्चों के भविष्य की खातिर मम्मी पापा ने टेस्ट मैच को वन डे मैच में बदल दिया और रात में ऑफिस से आने के बाद भैया की तो--वह खबर ली कि - - 

अब जब भी पापा मम्मी का अनबोला होता सिर्फ और सिर्फ वन डे मैच ही होता। भैया की नौकरी और शादी के बाद तो ट्वेंटी ट्वेंटी ही होने लगा यानी बस दो तीन घंटों में ही मौन युद्ध टूटने लगा-

यह बात मैंने मनीष को बतायी थी, इसलिये जब भी पापा मम्मी का झगड़ा होता तब मैं तटस्थ इंपायर बना दी जाती--

       रात्रि काफी हो गयी थी। न्यूरो सर्जन जांच कर जा चुके थे। स्थिति काफी क्रिटिकल थी। यदि दवाओं ने रिस्पांस नहीं किया तो कुछ भी हो सकता था। ऐसे में मरीज पैरालाइज्ड भी हो सकता था या मर भी सकता था। पापा को मम्मी के बगल में बिस्तर डाल कर सुला दिया था लेकिन वह बार बार उठ जाते थे। 

भैया बंगलुरु में थे। मेरी एम एस करने के बाद यहीं पर मनीष से मेरी शादी हो गयी थे वह मेरे सीनियर थे। 

प्रत्येक शनिवार को हम बच्चों के साथ पापा मम्मी के घर आ जाते थे और रविवार को रात्रि में वापिस होस्पिटल के बंगले में आ जाते थे। 

अभी उस दिन रजाई मैं दुबके हुए मैच देख रहे थे और मम्मी, पापा की डिमांड पर बड़बड़ाते हुए पकोड़े तल रहीं थीं। मनीष ने पापा को छेड़ते हुए कहा था कि--

-- आप मम्मी को ज्यादा तंग मत किया करो, कहीं उन्हें कुछ हो गया तो? 

पापा हंसते हुए बोले थे।

--तुम्हारी मम्मी को कुछ नहीं होगा। बुढ़िया जानती है कि मेरे जैसे बुढ्ढे को उसके सिवा कोई नहीं झेल सकता और उसके जाने के बाद मेरा ध्यान उस जैसा कोई रख भी नहीं पायेगा और इसी चिंता में कभी मुझे छोड़कर जायेगी ही नहीं। 

और धीरे हंसते हुए बोले

-एक बात कहूं मनीष हर कड़वी चीज, जहर नहीं होती दवा भी होती है-

तभी ऐसा लगा कि कोई दरवाजे से वापिस लौट गया हो। थोड़ी देर में पकोड़े और चाय लिए मम्मी खड़ी थीं, उनके चेहरे पर एक अजीब सी ललाहट नजर आ रही थी। यह कप तुम्हारे पापा के लिए है। पापा ने आश्चर्य से कप उठाकर होंठों से लगाया -चुस्की लेते ही मम्मी की ओर देखा। दोनों की नजर टकराई। एक अजीब सा नजारा था। पापा के प्याले में उस दिन चाय की जगह उनकी पसंद की शुगर सहित काफी थी।

       मैंने एक निगाह ग्लूकोज की बोतल पर डाली, धीरे धीरे खाली हो रही थी। पापा सोने का नाटक मेरे डर से कर रहे थे क्योंकि चद्दर के हिलने से में समझ रही थी। मनीष और मैंने कहा था कि आप दोनों हमारे साथ रहने चलिए। भैया भाभी ने भी कहा था किंतु पापा ने मनाकर दिया था - - 

--बेटा अभी तक तो हम तुम सबके लिए जीते रहे, बस कुछ दिनों की बात है - - हम अपने लिए अपने अनुसार जीना चाहते हैं

हमारी समझ में नहीं आई उनकी यह बात, तब पापा ने बताया कि - - 

--नौकरी और तुम लोगों की पढ़ाई, शादी के समय के दबाव के बीच मैं और तुम्हारी मां एक दूसरे को वह समय नहीं दे पाये, अब हम बचे दिनों को अपनी तरह से जीना चाहते हैं। 

घर आ कर मनीष मुझे छेड़ रहे थे, कि-

--तुझसे ज्यादा रोमांटिक तेरे पापा-मम्मी है, सीख उनसे--

मैंने मनीष से कहा---

---पापा का कहना सही है, हम मध्यम वर्गीय लोगों को घर की जिम्मेदारी के बीच उनका आपसी प्यार कहीं दबा रह जाता है , अब उन्हें जीने देना चाहिए - -

एक दिन मम्मी का फोन आया कि तुम अस्पताल से से घर आना। मैं घर पहुंची तो देखा तो पापा पलंग पर बैठे हैं और मम्मी चाय लेकर आ रही थीं, सिर पर जूड़ा बना रखा था,

--क्या बात है मम्मी आज तो पापा की फेवरिट हीरोईन साधना बनी हुई हो-

मम्मी का चेहरा लाल हो गया और बोली - -

---तेरे पापा सच में सठिया गये हैं, देखो करवा चौथ के लिए कौन सी साड़ी लाये है

और अलमारी से लाल रंग की भारी बनारसी साड़ी निकाल कर दिखाने लगी--

--देख बेटा, अब बताओ अपने पापा को, ये उम्र है मेरी यह साड़ी पहनने की

मां के शब्दों में उलाहना कम मिठास ज्यादा थी। मैंने पापा की ओर देखा, वह मंद मंद मुस्करा रहे थे फिर बोले--

--अच्छा बेटा तुम ही बताओ, यह रंग मम्मी पर खूब जमेगा न--

कहते कहते पापा की आंखों की कोरों में कहीं नमी थी, शायद कहना चाहते थे कि जिस उम्र में उसके लिए लाना चाहता था तब मजबूरी बस ला न सका लेकिन अब--मैं उन आंखों की मौन भाषा को समझ गयी थी। मैंने पापा का साथ देते हुए कहा-

---मम्मी , जब तुम यह पहनोगी, इस जूड़े के साथ, कसम से आज भी कालोनी के लोग आहें भरेंगे। 

मम्मी शर्माती हुई किचन में चलीं गयीं--

-तुम बाप - बेटी भी

मैं जानती थी, मां अंदर से बहुत खुश थी, अब उनमें बहुत कम झगड़े होते थे।

उस दिन रविवार था, मनीष ने बच्चों के साथ भोपाल लेक पर पिकनिक का प्रोग्राम बनाया तो मैंने मनीष से कहा कि--

--पापा - मम्मी को साथ ले लें

मनीष हां कहा तो मैंने फोन लगाया और पापा से शाम का प्रोग्राम पूछा तो पापा बोले थे-

--बेटा, आज कालोनी में सत्यनारायण की कथा है, इसलिए तुम लोग घूम आओ।

हम लोग पैडल बोट लेकर मस्ती कर रहे थे, इतने में एक मोटर बोट तेजी से हमारे ऊपर पानी उछालते निकल गयी, हम लोगों ने देखा कि एक बुजुर्ग दम्पत्ति एक दूसरे को पकड़े बैठे हुआ थे। वह बुजुर्ग महिला लाल साड़ी पहने अपने डर से अपने पति से चिपकी बैठी थी और वह बुजुर्ग अपने हाथों में अपनी पत्नी को संभाले हुए थे। 

जब बोटिंग करके बाहर तो देखा बाहर बर्फ के एक गोले बिक रहे थे, मनीष भी बच्चों के लिए बर्फ का गोला लेने गये और थोड़ी देर में खाली हाथ हंसते हुए आये, मैंने पूछा - -

--क्या हुआ, वह मेरा हाथ पकड़ कर बोले-

--आओ तुम्हें सत्यनारायण की कथा दिखाऊ

मैं कुछ समझ पाती, सामने देखा मम्मी वही लाल साड़ी पहनें, जूड़ा बनाये पापा के साथ एक बेंच पर एक दूसरे के साथ बर्फ का गोला खा रहीं है। मैं हतप्रभ रह गयी, मनीष का हाथ पकड़ कर वापिस ले आयी, उन लव बर्डस को डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी। 

मैंने मनीष के कंधे पर सर रख दिया, उस ढलती हुई शाम की लाल लाल किरणें मौसम को सुंदर बना रहीं थी, मैंने मनीष से कहा--

--सच में प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती, तुम भी मुझे सारी उम्र प्यार करोगे? 

मनीष ने हंसते हुए मेरे हाथों को अपने हाथ में लेते हुए धीरे गाल पर चुंबन अंकित कर अपने हां का इजहार कर दिया था।

        सुबह हो रही थी, मेरी हल्की सी नींद लग गयी थी, सिस्टर बोतल चेंज कर रही थी। उसकी आहट से नींद खुली। मैंने देखा पापा स्टूल पर बैठे मम्मी का हाथ धीरे - धीरे सहला रहे थे।

मनीष भी आ गये थे, थरमस में से काफी पापा को दी। पापा की आंखों में एक अजीब सी कसक थी-

---बेटा, मैंने काफी छोड़ दी है, कल से चाय ही पीऊंगा-

ऐसा लग रहा था जैसे वह हमसे नहीं मम्मी से कह रहे हों कि तुम उठ जाओ अब तंग नहीं करूंगा। न जाने क्यों पापा की यह हालत देखकर आंख से आंसू छलक आये।

         मैं डाक्टर भी थी और बेटी भी---डाक्टर के रूप में वह सभी ट्रीटमेंट दे रही थी जो उस स्थिति में पॉसिबल था लेकिन बेटी के रुप में हार रही थी क्योंकि मैं जानती थी कि क्या हो सकता है।

       तीन दिन हो गये थे-कभी आशा जगती। कभी निराशा-बस एक पापा थे जो आशा की ज्योति जलाये बैठे थे।

--बेटा मम्मा टेस्ट मैच खेल रही है। बस दो दिन और, देखना बुढ़िया एकदम उठकर बैठ जायेगी। वो जानती है इस बुढ्ढे को उसकी - - उसकी बहुत जरूरत है। वह कुछ भी देख सकती है लेकिन अपने इस बुड्डे इस तरह अकेला नहीं देख सकती।

     हम सभी अपनी छलकती आंखों को लिए गैलरी में आ गये थे- हे प्रभु प्यार के इस विश्वास को न टूटने देना, वरना पापा बिखर जायेंगे-। दवायें चेंज की थी और आज पाँचवाँ दिन था, संध्या हो रही थी, अचानक पापा की आवाज आई -

-- रीनू-

     मैं दौड़कर अंदर गयी-मम्मी की आंखें खुली हुई थीं और पापा को देख रहीं थीं और पापा अपने जीवन साथी के हाथ थामे आंखों में आंसू लिए मुस्करा रहे थे, सच में प्यार उम्र की मोहताज नहीं होती, मैं इंपायर बन कर उन्हें विजयी घोषित कर रही थीं। सच में पापा मम्मी नदी के दो पाट थे, जिन्हें सिर्फ एक धारा जोड़े थी-प्यार की धारा--जिस में उम्र की कोई सीमा नहीं होती।


           


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