मोहे श्याम रंग दै दे (पार्ट-2)
मोहे श्याम रंग दै दे (पार्ट-2)
चित्रा को देखने में आभास ऐसा खो गया कि उसे ध्यान ही नहीं रहा कि पवित्रा और दोनों बच्चे उसे बहुत गौर से देख रहे थे।
तभी सौरभ अपने कमरे से बाहर आया और उसकी पीठ पर एक धौल ज़माते हुए बोला,
"क्यूँ बे, आज इस वक़्त कैसे ?"
सौरभ के टोकते ही आभास को यूँ एहसास हुआ जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।
अब वह बुरी तरह झेंप गया। कहीं सौरभ उसके मन के भाव ताड़ ना ले इसलिए चिंटू के गाल पकड़कर खींचते हुए बोला,
"चॉकलेट खाओगे ?"
"आज का चॉकलेट का कोटा तो पूरा हो गया, चित्रा मासी ले आई थी। आपकावाला कल के लिए रख देते हैं " मिंटू ने कहा।
साथ ही बिना पूछे ही सौरभ को उस साँवली सलोनी का परिचय भी मिल गया कि ये चिंटू मिंटू की मासी है, मतलब पवित्रा भाभी की बहन। सोचकर ही सौरभ खुश हो गया।
तभी चित्रा चाय और नमकीन लेकर आ गई। एक बार फिर वही काली कज़रारी आँखें। उफ्फ्फ।
कैसे संभाले खुद को आभास।
तभी पवित्रा भाभी ने चित्रा और आभास का औपचारिक परिचय करवाया।
"आभास, ये मेरी बहन चित्रा है। सूरत से आई है। यहीं टेक्नोवा में एरिया मैनेज़र के पोस्ट के लिए ज्वाइन करने। और चित्रा ये हैँ आभास, सौरभ के बेस्ट फ्रेंड।"
चित्रा ने अबके अपनी कटोरे जैसी आँखें उठाकर आभास को देखा और मुस्कुराकर आँखें झुका ली।
और आभास ने पलांश में ही दिल का जोर से धड़कना और दिल की धड़कन का यकायक रुक जाना एकसाथ ही महसूस कर लिया।
चाय नाश्ते के दौरान भी दोनों की निगाहेँ कई बार टकराई जिसे और किसी ने तो नहीं पर पवित्रा ने ज़रूर गौर किया था।
थोड़ी देर बाद आभास सौरभ को सबके रूटीन
चेकअप की रिपोर्ट पकड़ाकर जाने को हुआ तो सौरभ भी उसके साथ बाहर निकल आया। अगले दिन रविवार था। इसलिए अक्सर शनिवार को दोनों
दोस्त अक्सर कोई फ़िल्म देखते या यूँ ही घूमने निकल जाते थे।और एक इसी दिन सौरभ की
मंगेतर कुनिका अपनी माँ से मिलने जाती थी।
वरना बाकी दिन शाम को उसे ऑफिस से लाने
से लेकर वह और कुनिका कभी फोन पर बात
करने में व्यस्त रहते तो कभी किसी रेस्टुरेंट में
साथ साथ जाते।
कभी कभी ज़ब कुनिका अपनी माँ से मिलने भोपल जाती तो उस दिन सौरभ और आभास या तो टेनिस खेलते या यूँ ही घूमते।
पर आज आभास का मन कर रहा था कि आज घर
में ही रहे और चित्रा की आवाज़ सुने। पर सौरभ ज़ब उसके साथ बाहर निकल आया तो वो किस बहाने से रुकता।
आभास को समझ नहीं आ रहा था कि सौरभ से चित्रा के बारे में कुछ कैसे पूछे। वो कहीं उसे गलत ना समझ ले।कुछ देर इधर उधर की बात करने के बाद आभास ने बहाने बहाने से चित्रा के लिए पूछ ही लिया।
"वो चित्रा भाभी कौन सी कंपनी में ज्वाइन करने वाली हैँ?"
"अरे, उसे चित्रा भाभी मत बोल, अभी उसकी शादी नहीं हुई। अभी अभी उसकी सगाई टूटी है अहमदाबाद में। इसलिए तो यहाँ आ गई है, वहाँ रिश्तेदार वगैरह बहुत बात बना रहे थे तो भाभी ने उसे यहाँ बुला लिया।वैसे भी उस काली कोयल से कौन करेगा शादी। तभी तो नौकरी करके अपना कुछ मार्किट वैल्यू बढ़ा रही है ताकि कोई ढंग का लड़का इससे शादी कर ले "।
सौरभ का ऐसा कहना आभास को बिल्कुल पसंद नहीं आया। जबकि वो अभी अभी मिला था उस
मनमोहिनी छवि से। ना जाने कौन सा मन का नाता जोड़ बैठा था आभास चित्रा से।
वैसे पहली नज़र के प्यार पर आभास का भरोसा
नहीं था और ना ही उसकी उम्र थी पहली नज़र के
भावुकता भरे प्यार की। बस एक कशिश थी चित्रा में जो उसे बार बार अपनी ओर खींच रही थी।
उस रात घर आकर आभास के दिलो दिमाग़ पर सिर्फ चित्रा ही छाई हुई थी। उसका ताम्बई रँग और
आँखों की कशिश जैसे उसे उसके बारे में और जानने को उकसा रही थी।
वो सोच रहा था कि किस बहाने और एक बार चित्रा से मिले। कल सौरभ के घर किस बहाने से जाए।
रात को सोते हुए वह सौरभ के घर जाने के बहाने के साथ याद करने लगा ज़ब वो पिछले साल अपोलो फार्मेसी में आभास ने मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव के पद पर ज्वाइन करने आया था तो रेंट पर इस सोसाइटी में अच्छा घर मिल गया था। सौरभ के बड़े भैया सुशांत का प्रॉपर्टी का बिज़नेस था और इसी वजह से रेंट और बाकी और औपचारिकता निभाने के चक्कर में ही उसकी सौरभ से मुलाक़ात हुई थी और हमउम्र होने की वजह से दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे।
अगला दिन आभास ने मुश्किल से काटा। मन तो कई बार किया कि सौरभ के घर चला चले। पर जाता तो किस बहाने। इसलिए किसी तरह मन मारकर रह गया।
अगले दो दिन थोड़ी व्यस्तता में बीते। तीसरे दिन भगवान ने खुद उसका काम आसान कर दिया।
शहर में कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए पवित्रा भाभी ने उससे ऑक्सीमीटर के लिए पूछा तो सौरभ ने कहा कि वो खुद लेकर आएगा।
शाम को जब वो सौरभ के घर पहुँचा तब तक सौरभ ऑफिस से नहीं आया था। ये देखकर उसने चैन की साँस ली। पर थोड़ी देर में उसे अपना आना व्यर्थ लगने लगा क्यूँकि पवित्रा भाभी ने उसे बताया कि चित्रा अभी तक ऑफिस से नहीं आई है।
व थोड़ा उदास होकर निकला ही था कि लिफ्ट से निकलते ही फिर से दिल की धड़कन बढ़ गई। सामने चित्रा खड़ी थी शायद ऑफिस से वापस आ रही थी।
उसने इसबार हिम्मत करके चित्रा को गौर से देखा तो साँवली सलोनी सूरत पर बड़ा ही सुरुचिपूर्ण हल्का मेकअप कर रखा था उसने। ऊपर से मुस्कुराते हुए उसकी धवल दांतो की पंक्तियाँ जैसे
उसे और भी आकर्षक बना रही थी।
आभास ने हाय हैलो के बाद पूछा कि सूरत कैसा लग रहा है तो चित्रा ने कहा बस व्यस्तता की वजह से कहीं घूमने का मौका ही नहीं मिला। तो तय हुआ कि शनिवार को आभास उसे सूरत घुमाएगा।
घर आते हुए आभास सोच रहा था। वैसे तो चित्रा बहुत सौम्य है। पर उसकी आँखें कितनी चँचल है।
फिर ज़ब वो शनिवार को उससे मिलने को मान गई तो उसे एकदम से महसूस हुआ कि वह भी आभास में थोड़ी रूचि रखने लगी है।
खैर, किसी तरह शनिवार आया। यह इंतजार भारी पड़ रहा था आभास को।
शनिवार को ज़ब वो तैयार होकर सौरभ के घर को रवाना हुआ तो उसे ख्याल आया कि उसके घर जाकर कहेगा क्या कि चित्रा को कहाँ ले जा रहा है। उसने सोचा, चित्रा को फ़ोन करके पूछ ले। पर चित्रा ने ज़ब फोन नहीं उठाया तो उसके घर जाने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
खैर, ज़ब सौरभ के घर पहुँचा तो आशा के विपरीत चित्रा के साथ पवित्रा भाभी, चिंटू मिंटू और यहाँ तक कि सौरभ भी तैयार था। उसे देखते ही बोल पड़ा।
"अबे आभास, तुने मुझे क्यूँ नहीं बताया कि तुम आज सबको घुमाने ले जा रहे हो।"
अब भला आभास क्या जवाब देता। उसने ज़ब चित्रा को देखा तो वो शरारत से मुस्कुरा रही थी।
उसे चित्रा की ये अदा भी बेहद प्यारी लगी।
रास्ते में, रेस्टोरेंट में कई बार चित्रा से निगाहेँ टकराई, तो कई बार हाथ टकरा गए तो लगा
यूँ ही दोनों साथ साथ चलते रहें तो कितना अच्छा हो। उसने एक चीज गौर किया कि मुस्कुराते, हँसते बीच बीच में चित्रा उदास सी हो जाती थी। उसने निश्चय किया कि कभी अकेले में मौका मिलेगा तो वो उससे इतने चुप चुप रहने और उदासी की वजह ज़रूर पूछेगा।
कुछ दिन इसी उहापौह में गुजरे कि कैसे मिले चित्रा से। उसके ऑफिस जाए या फ़ोन करे ?
कहीं चित्रा उसे छिछोरा ना समझ ले, यही सोचकर मन को मार लिया उसने।
कुछ दवा कंपनी दवा के साथ प्यारे प्यारे खिलौने भी उपहार के तौर पर देती थी जो आभास अक्सर चिंटू मिंटू को दे दिया करता था। बस उसे बहाना मिल गया।
अगले दिन चिंटू मिंटू को कुछ खिलौने देने के बहाने ज़ब सौरभ के घर गया तो दरवाजा चित्रा ने ही खोला। भरी भरी आँखों को देखकर लग रहा था अभी अभी रोकर आई है। सौरभ तिलमिला कर रह गया। दिल तो किया उसे अभी गले से लगा ले। पर प्रकट में कुछ नहीं बोल पाया।
बच्चे तो खिलौने देखकर खुश हो गए पर पवित्रा भाभी बहुत अनमनी सी थी। उसने ज्यों ही पूछा कि सब ठीक है ना?
बस पवित्रा भाभी रोने लगी। थोड़ा संयत होकर बोली।
"आज पापा का फ़ोन आया था। माँ की तबियत गिरती जा रही है। जबसे चित्रा का रिश्ता टुटा है माँ बहुत टूट सी गई हैं "।
आभास सुनकर सांत्वना देते हुए बोल नहीं पाया कि वह चित्रा को प्यार करने लगा है और उससे प्यार करना चाहता है। कहता भी कैसे?
कुछ भी कहने से पहले चित्रा के मन की बात जानना ज़रूरी था।इसलिए तभी कुछ कह नहीं पाया पर एक निश्चय के साथ वापस आया।
अगले दिन ज़ब चित्रा ऑफिस से बाहर निकली तो आभास ने उसे फोन किया वह उससे मिलना चाहता है और ऑफिस के गेट पर उसका इंतजार कर रहा है।
चित्रा ने उसे अपने ऑफिस के पासवाले कैफे में बुला लिया।
इधर उधर की औपचारिक बातों के बाद आभास सीधे अपने मन की बात बोल उठा।
"चित्रा, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुमसे शादी करना चाहता हूँ "
यह सब आभास बस एक साँस में कह गया।
पर ये क्या ।?
सुनकर चित्रा बड़े प्यार से मुस्कुराई जैसे उसके लिए यह कोई नई बात नहीं हो। जैसे कि उसे पहले से पता हो कि आभास उसे प्यार करता है। शायद लड़कियों को पता चल जाता है अगर किसी लड़के के दिल में उसके लिए प्यार हो तो।
चित्रा ने उसकी बात सुनकर बड़े आराम से कहा,
"यह बातें मैं पहले भी कई लड़कों से सुन चुकी हूँ। पर बात शादी तक आते आते लड़के को ना हो पर लड़कों की माँ और बहन या कभी भाभी को मेरे साँवले रँग से शिकायत ज़रूर हो जाती है। फिर बाद में लड़का भी यही दुहाई देकर छोड़ जाता है। प्लीज आभासजी, मैं और एक बार अपना अपमान नहीं कराना चाहती।"
बोलते बोलते चित्रा हिचकियों से रोने लगी तो आभास उसका दर्द महसूस करके बहुत दुखी हो गया। उसका प्यार निश्छल था। वो तो चित्रा को बहुत सारा प्यार और मान सम्मान देना चाहता था, ना कि रुलाना चाहता था।
चित्रा को यूँ रोता देखकर आभास की समझ में नहीं आ रहा था कि वो चित्रा को कैसे यकीन दिलाए कि वो सच में उससे प्यार करता है। और उसका ताम्बई रँग ही उसे बेहद पसंद है।
वापसी में दोनों चुप थे। आभास का कई बार जी किया कि चित्रा को गले लगा ले या हाथ पकड़कर चले। पर कहीं चित्रा ये ना समझ ले कि वो भी अन्य लड़कों की तरह है, जिनके संपर्क में चित्रा इसके पहले आ चुकी थी।
घर आकर आभास ने सबसे पहले माँ को फ़ोन लगाया और सारी बातें बताई तो माँ बहुत खुश हुई। वो तो ना जाने कबसे अपने बड़े बेटे की शादी करवाना चाहती थी।बस आनन फानन में छोटे बेटे विभास को लेकर आ गईं।
इस बीच आभास ने सौरभ, पवित्रा भाभी और भैया को अपने मन की बात बता चुका था। अब सबकुछ चित्रा पर निर्भर करता था
शनिवार को तय समय पर ज़ब आभास अपनी माँ और भाई के साथ चित्रा से मिलने पहुँचा तो आभास की माँ आशादेवी चित्रा को देखकर चौंक गई। इसी लड़की का रिश्ता तो उनके भाई के बेटे प्रणव के लिए आया था और उसकी कशिश भरी आँखें और मासूम सा चेहरा देखकर उन्होंने भाभी से कहा भी था ये अहमदाबाद वाली लड़की की फोटो मुझे बहुत पसंद आई। इस पर भाभी ने मुँह बिचकाकर कहा,
"अरे, वही काली कलूटी। ना बाबा ना। दिन में भी घर में रात बना रहेगा और जो सुबह सुबह सामने पड़ गई तो दिन का सत्यानाश।
उस वक़्त अपनी भाभी की ओछी सोच पर आशादेवी को बहुत बुरा लगा था। तब क्या पता था कि ये सलोनी मूरत उनके घर की शोभा बनने वाली है।
उन्होंने बहुत प्यार से अपना खानदानी कँगन चित्रा को पहनाते हुए कहा,
"बेटा, मैं तो तुमसे पहले ही मिल चुकी हूँ। क्या पता था की आगे चलकर तुम मेरे घर की रौनक़ बननेवाली हो "।
सुनकर चित्रा शरमा गई और आभास उसकी शरमाने वाली अदा पर सौ जान से कुर्बान हो गया।
चित्रा की मुस्कुराहट और आँखों की चमक उसकी स्वीकृति की मुहर लगा चुके थे।
आगे आभास ने सगाई से शादी तक का सफ़र जल्दी तय करने की पूरी कोशिश की और लगभग दो महीने बाद शादी के बाद वाली बेहद खूबसूरत शाम को चित्रा ने एक राज की बात बताई कि उसे भी पहली नज़र में ही आभास बहुत अच्छा लगा था। बस वो उसके प्यार को परखना चाहती थी इसलिए ख़ामोश थी।
सुनकर एक तरफ जहाँ आभास को बहुत ख़ुशी हो रही थी वहीँ चित्रा पर बेहद प्यार आ रहा था।
आज उसने बड़े हक से आग्रह किया कि चित्रा उसे वही गाना सुनाए जो उसने पहली बार सुना था और अपना दिल हार बैठा था।
चित्रा ने उसके आग्रह को मान देते हुए बड़े प्यार से गाया।।
"मोरा गोरा रँग लैइ ले
मोहे श्याम रँग दैइ दे,
छुप जाऊँगी रात ही में
मोहे पी का सँग दैइ दे "
गाते गाते चित्रा शरमाकर आभास के सीने में मुँह छुपा लिया तो आभास ने भी उसे अपने बाँह के अंकवार में समेट लिया। दूर गगन में चाँद अपनी रुपहली चाँदनी इनपर बरसा रहा था जैसे दो सच्चे प्यार करनेवालों को आशीर्वाद दे रहा हो।

