मोहे पिया मिलन की आस
मोहे पिया मिलन की आस
"कागा सब तन खाइयो, के चुन चुन खाइयो मास
दो नैना मत खाइयो, मोहे पिया मिलन की आस"
गीत को गुनगुनाती राधिका हर रोज अपने पति के दिए उपहार स्वरूप उनके मन पसंद लाल रंग की साड़ी को पहनकर गंगा किनारे आ जाती।
जो भी उसको ऐसे सजा सँवरा हुआ देखता कोई पगली, कोई बावरी तो कोई व्यंग मुस्कान करता हुआ जिसके जो मन आता कहता चला जाता। लेकिन राधिका इन सब बातों से बेपरवाह एकटक अपने गीत को गुनगुनाती हुई वहाँ तब तक खड़ी रहती जब तक कि सूरज ना ढल जाए....... सूरज ढलने के बाद वो घर को लौट जाती। लेकिन अब उसके इस सफर में उसका साथ उसका तीन साल का बेटा रोहन भी देता।
राधिका की उंगली थामे उछल कूद करता चुपचाप जाकर राधिका के साथ गंगा तट पर खड़ा होकर कभी अपनी माँ को तो कभी गंगा मैया को देखता।
एक दिन उसने अपनी तोतली भाषा में राधिका से पूछा, "माँ हम गंगा मैया के पास क्यों आते है?"
राधिका ने मुस्कुराते हुए कहा, "ऐसे ही"
फिर उसने दूसरा सवाल पूछा, "माँ ! मेरे पापा कहां है, वो कैसे दिखते है वो आते क्यों नहीं हमसे मिलने?"
इतना सुन राधिका जड़वत वही खड़ी हो एकटक अपने बेटे के मुख को निहारने लगी वो आश्चर्यचकित रह गयी क्योंकि दूसरा सवाल उसने इन तीन सालों में पहली बार पूछा था
उसके जवाब देने से पहले ही रोहन ने सवाल पलट दिया और उसकी निगाह चॉकलेट पर जा टिकी उसने राधिका का आँचल खींचते हुए कहा, "मां मुझे चॉकलेट चाहिए"
राधिका ने रोहन को चॉकलेट दिलाया और घर आ गयीं।
बालमन अपने सवाल को भूल चॉकलेट पाकर खुश हो गया।
हाथ मुँह धोकर कपड़े बदल राधिका ने खाना बनाया लेकिन पूरा समय उसके दिमाग में रोहन का ही सवाल गूंजता रहा|
तभी रसोई में खाना खाने आयी राधिका की सासु मां ने जमीन पर बिछी चटाई पर बैठते हुए कहा, "राधिका! तू गंगा किनारे जाना क्यों नहीं छोड़ देती बेटा....ऐसा करने से लोग तुझे पागल बोलते है, ये सुनकर मेरा दिल दुखता है बिटिया, उसने तो परदेस जाते ही हम सब से मुँह मोड़ लिया कभी एक फोन तक नहीं किया, पता नहीं उसे ये भी पता है कि नहीं वो एक बेटे का बाप बन चुका है हमने तो सन्तोष कर लिया है तू भी अब भूल जा उसे मत जाया कर गंगा किनारे।"
राधिका ने सास के आगे खाने की थाली परोसती हुई बोली, " माँजी मुझे फर्क नहीं पड़ता....... कि लोग मेरे या उनके बारे में क्या बोलते है मैं तो इतना जानती हूँ हमारा प्यार सच्चा है और वो एक ना एक दिन जरूर लौटकर आएंगे। उन्होंने मुझसे वादा किया था और मैंने उनसे .....की मैं उनका इंतजार करूंगी। तो मैं अपनी आखिरी सांस तक ये वादा निभाऊंगी, आप खाना खाइए मेरी चिंता मत किया कीजिये।"
राधिका अपने सास ससुर की इकलौती बहु थी। उसके सास ससुर बहुत ही व्यवहार कुशल और अच्छे इंसान थे उन्होंने राधिका को हमेशा अपनी बेटी की तरह प्यार किया.......परिवार में सिर्फ राधिका उसके सास ससुर और बेटे को लेकर कुल चार लोग थे। राधिका की शादी अमर से हुई और वो सिर्फ दो महीने ही साथ रह पाए। दो महीने बाद अमर के एक मित्र ने उसे विदेश में नौकरी दिलाने की बात कर अपने साथ विदेश लेता गया.....लेकिन उसके बाद ना वो मित्र लौटकर वापस आया ना ही अमर और ना ही उनसे जुड़ा कोई सन्देश।
नई नई शादी हुई थी राधिका की अमर के साथ....दोनों सिर्फ दो महीने ही एक दूसरे के साथ रह पाए थे कि एक दिन अमर ने घर आकर सबको बताया कि वो अपने एक मित्र के साथ विदेश काम करने जा रहा है सब कुछ हो गया है सिर्फ इतना ही इसके अलावा कुछ भी डिटेल में नहीं बताया था कि वो क्या काम करेगा कहाँ और किसके साथ रहेगा? बस इतना ही कहा, "की जल्दी ही आकर तुम सबको भी गाँव से वहाँ लेकर चलूंगा तब तक तुम मेरा इंतजार करना और मां बाबूजी का ख्याल रखना।"
राधिका के सास ससुर ने अपने बेटे को बहुत समझाने की कोशिश की
उन्होंने कहा, "क्या जरूरत है जब यहाँ तेरी अच्छी खासी नौकरी है तो उसे छोड़कर विदेश जाने की....हमें अधिक पैसों की क्या जरूरत जितना है उतने में हमारा गुजारा अच्छे से हो जाता है और आगे भी हो जाएगा"
लेकिन अमर कहाँ मानने वाला था ? उसने तो ठान रखा था उसे बड़ा आदमी जो बनना था बड़ा घर बड़े सपने सब पूरे करने थे ।
राधिका ने भी रात को कमरे में कहा," सुनिये जी मुझे तो माँ बाबूजी की बात सही लग रही है आप अपने सपने यहाँ रह कर भी तो पूरे कर सकते है।"
राधिका को अपनी बांहों में भरते हुए अमर ने कहा, "ये इतना आसान होता तो मैं ऐसा सोचता ही क्यूँ.... ये यहाँ रहकर बिल्कुल भी सम्भव नहीं।" जानेवाले दिन अमर ने लाल साड़ी उपहार में लाकर राधिका को लाकर दिया और कहा, "की पहनकर तैयार हो जाओ बाहर चलते है।"
राधिका तैयार होकर अमर के साथ घर से बाहर निकली। अमर उसे अपने साथ गंगा किनारे लेकर आया और वहाँ उसने राधिका से कहा, "जब तक मैं ना आऊँ तब तक तुम मेरा इंतजार करना चिंता मत करना किसी बात की"
तब राधिका ने गर्दन झुकाये हुए कहा, "कहीं विदेश जाकर कोई विदेशी पसन्द आ गयी तो मैं क्या करूंगी।?"
राधिका की ठुड्डी को अपने हाथों से पकड़कर ऊपर करते हुए अमर ने कहा, "तुम इस बात की बिल्कुल भी चिंता मत करना मैं तुमसे वादा करता हूं मेरे जीवन में तुम्हारे सिवाय कोई नहीं आ सकता। मेरा प्रेम सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए है। हमारा प्रेम हमेशा अमर रहेगा।"
और राधिका शर्माते हुए अमर के सीने से लग गयी। सीने से लगकर हाथों से शर्ट के बटन को मिजते हुए उसने कहा, "सुनिये मुझसे ज्यादा इंतजार मत कराइयेगा, और जल्दी आइयेगा, मेरा मन यहाँ आपके बिना बिलकुल भी नहीं लगेगा।"
दोनों बाजुओं से राधिका को अपने बांहों में जकड़े अमर ने कहा, "मन तो मेरा भी नहीं लगेगा लेकिन अच्छे भविष्य के लिए थोड़ी जुदाई तो सहनी पड़ेगी। अच्छा अब घर चलो चलता हूँ माँ बाबूजी से भी मिल लेता हूं।" और दोनों वापिस आ गए।
उस दिन से आज तक पूरे तीन साल हो गए राधिका अमर का इंतजार ही करती रह गयी। कुछ गाँव वाले कहते अमर ने विदेशी से शादी करके वही बस गया तो कोई कुछ कहता सौ मुँह सौ बातें होती। लेकिन राधिका का मन कोई भी ना भटका पाता। ससुर जी की पेंशन का सहारा था कि घर खर्च चल जाता कभी किसी के आगे उसके परिवार को हाथ नहीं फैलाने हुए।
अमर के विदेश जाने के बाद पता चला कि राधिका गर्भवती है, अमर इस खुशख़बरी से भी वंचित ही था।
एक दिन सावन के महीने में गांव की सभी औरतें और बहुएँ बगीचे में इकट्ठा होकर गीत गाते हुए झूला झूल रही थी राधिका भी उन्हें देखकर वहाँ पहुंची। उसे देखते ही सभी औरतें आपस में फुसफुसा कर बातें करने लगी।
तभी राधिका की सहेली ने उसका हाथ पकड़कर कहा ,"तू वहाँ क्यों अकेली खड़ी है चल आ झूला झूलने, और आज तो मैं तेरे मधुर आवाज में गाना भी सुनूँगी समझी। आज तेरा कोई बहाना नहीं चलेगा।"
तभी उनमें से एक औरत ने कहा, "अरी ऐसी सुहागन से तो विधवा भली.....इसे तो ये तक पता नहीं की इसका पति कहां किस हाल में है जिंदा भी है कि नहीं"
तभी दूसरी औरत ने कहा, "अरे मैंने तो सुना है कि उसने विदेश में ही दूसरी शादी कर ली है।"
सावन का झूला पूजा पाठ व्रत बिना पति के तो नहीं जँचते। बिना पति के इन सब चीजों को करने का क्या मतलब।
राधिका वहाँ से दौड़ी दौड़ी रोती हुई गंगा किनारे आ गयी। वहाँ रेडियो पर गाना चल रहा था, "बिन साजन झूला झूलूँ मैं वादा कैसे भूलूँ।"
तभी उसे महसूस हुआ उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। तभी उसके कानों में रोहन की आवाज गयी माँ ये देखो पापा आ गए।
राधिका ने पलटकर देखा, "तो अमर उसके सामने खड़े थे और अमर की उंगली थामे रोहन मुस्कुराते हुए खड़ा था।"
राधिका भौचक्की अमर को एकटक निहार रही थी उसे अपने निगाहों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था।
अमर ने राधिका को खींचकर अपने सीने से लगा लिया। और आज राधिका फुट फुट कर खूब रोयी।
रोते हुए ही वो बोले जा रही थी कहां रह गए थे इतने दिन लगा दिए वापिस आने में और भी अनगिनत सवालों की झड़ी खड़ी कर दी उसने ....
तभी रोहन ने कहा, "माँ सूरज ढलने वाला है घर चले।"
रोहन की आवाज से राधिका की जैसे तन्द्रा टूटी वो तीनों घर वापस आये घर पर मिलने आने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। अमर पहले से देखने में कमजोर हो गया था। सभी के पूछने पर अमर ने जो बताया उसको सुनकर सबके होश उड़ गए।
उसने बताया कि "वहाँ जाने के बाद उसके मित्र ने उससे उसका फोन और पैसे छीन लिए...... और उसको बंधुआ मजदूर बना लिया। जैसे तैसे कुछ अच्छे लोगों की मदद से वो उसके चंगुल से छूट पाया और उन्हीं लोगों ने उसे कुछ पैसे और इंडिया की फ्लाइट टिकट देकर यहाँ भेजा है।"
अमर की बातें सुनकर और उसके वापिस घर आ जाने से राधिका और अमर के रिश्ते को लेकर अनर्गल बातें करने वालों के मुँह पर ताला लग गया था वो अपनी ही नजरों में शर्मिंदा थे।
सबके जाने के बाद राधिका रसोई और घर के काम जब समेट कर खाली हुई तो अपनी सास के कमरे में अपनी रखने गयी देखा रोहन अपनी दादी के साथ सोया था....राधिका जैसे ही तेल लेकर उनके पैरो की मालिश के लिए बैठी....
तभी राधिका की सास ने कहा, "बहु तुम पानी रख कर जाओ......मेरे पैरों में आज दर्द नहीं है और हाँ आज से रोहन मेरे साथ ही सोएगा..."
खुशी से राधिका तेज कदमों से दौड़ती हुई कमरे में गयी.... जब राधिका ने कमरे में प्रवेश किया तो अमर को देखते उसके दिल की धड़कनें तेज हो गयी..... अमर बेड पर लेट कर टीवी देख रहा था......
कमरे के दरवाजे को बंद कर राधिका वही दरवाजे से टिक कर एकटक अमर को निहारे जा रही थी
दरवाजे की आवाज से जब अमर की नजर राधिका पर गयी तो उसने उठकर राधिका को अपनी बांहों में भर लिया और कहा, "राधिका अब तुम्हारे इंतजार की घड़ियां खत्म हो गयी, अमर की बांहों का आलिंगन पाकर राधिका का तन मन दोनों पुलकित जो उठा.....
टीवी पर गाना चल रहा था
"पहले मिलन की यादें लेकर आयी है ये रात सुहानी
दोहराते है चांद सितारे मेरी तुम्हारी प्रेम कहानी"
लेकिन आज अमर और राधिका के सच्चे प्यार की जीत थी पूरा परिवार खुश था।
प्रिय पाठकगण उम्मीद करती हूँ कि मेरी ये रचना आपको पसन्द आएगी। कहानी पूर्णतया काल्पनिक है। कहानी का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि बिना सच को जाने किसी के भी बारे में अनर्गल बातें नहीं करनी चाहिए। ना ही फैलानी चाहिए।
