मन्नत और मौन, दोस्त कौन
मन्नत और मौन, दोस्त कौन
रामपाल और रंजीत बड़े गहरे दोस्त थे। रामपाल थोड़ा खाते-पीते घर से था, जबकि रंजीत अपेक्षाकृत गरीब परिवार से ताल्लुक रखता था। लेकिन दोनों की दोस्ती गहरी थी। रंजीत रामपाल से तीन-चार साल छोटा था, फिर भी दोनों का एक-दूसरे के घर आना-जाना और साथ खेलना नियमित था। वे अपनी छोटी-बड़ी बातें साझा करते, एक-दूसरे का उत्साह बढ़ाते।
रंजीत मैट्रिक में एक-दो बार फेल हो गया था। रोज़गार की चिंता उसके मन में थी, लेकिन उसकी बड़ी इच्छा थी फौज में जाना। जहाँ भी भर्ती निकलती, वह भागकर जाता। कभी किसी कारण से वह रह जाता, पर हार नहीं मानता। सुबह-सुबह दौड़ना, फिजिकल फिटनेस बढ़ाना—रामपाल उसका उत्साह बढ़ाता और उसे प्रोत्साहित करता।
एक बार रंजीत फौजी भर्ती के सिलसिले में गांव से बहुत दूर चला गया। रामपाल ने तय किया—“मैं रोज़ मंदिर जाऊंगा, नंगे पैर फूल चढ़ाऊंगा, और अगर रंजीत फौज में चयनित हो गया तो सत्यनारायण की कथा करवाऊँगा।” रामपाल की यह आध्यात्मिक मन्नत लगातार जारी रही।
और इस बार रंजीत फौज में चयनित हो गया। रामपाल खुशियों से फूला नहीं समा रहा था। उसने कल्पना की— "वह जब गांव आएगा, मैं स्टेशन पर रिसीव करूंगा, उसका भारी संदूक खुद उठाऊँगा, वह मुझे मिठाई देगा… शायद थोड़ी दारू की महफिल भी जमा लें… कितना मज़ा आएगा!"
उत्साहित होकर रामपाल रंजीत के घर चला गया। दरवाज़ा रंजीत की माँ ने खोला, चाय-पानी हुआ। रामपाल ने उत्सुकता में पूछा— "माँ, रंजीत कहाँ है?"
माँ ने सहज भाव से कहा— "बेटा, रंजीत तो काम के सिलसिले में पास के गांव के लोहार के पास गया है। कुल्हाड़ी लेकर…"
रामपाल के हाथ-पाँव ठंडे हो गए। उसके गुस्से और निराशा का कोई ठिकाना नहीं था। जिस दोस्त के लिए उसने इतने दिन मन्नतें मांगी, अब उसके परिवार वाले सफलता की खबर छुपा रहे थे l
