जीजा,साली जी उपहार चाहिए
जीजा,साली जी उपहार चाहिए
यह भी मेरे बचपन की ही एक छोटी-सी घटना है। मैं एक छोटे कस्बे में रहता था—सच कहूँ तो कस्बा भी नहीं, एक छोटा-सा देहात। मैं तब शायद स्कूल में था, शायद मैट्रिक में। मैं स्वभाव से शर्मीला था, लोगों से बातचीत करने में संकोच होता था, पर गपशप सुनने का बड़ा शौक था।
एक दिन मैं कपड़े सिलवाने दर्ज़ी की दुकान पर गया। दर्ज़ी ने कहा कि थोड़ा समय लगेगा—लगभग आधा घंटा। मैं वहीं बैठ गया। दुकान पर पास ही दो लड़कियाँ खड़ी थीं और आपस में बेख़बर होकर अपनी ही दुनिया में बातें कर रही थीं।
अचानक सामने से एक बुज़ुर्ग आदमी गुजरा। लड़कियों में से एक ने हँसते हुए कहा— “जीजा… हमारे जीजा जा रहे हैं!”
दूसरी लड़की बोली— “न तुमने उससे बात की, न उसने तुमसे… ये क्या चक्कर है?”
पहली लड़की ने बताया— “ये आदमी अक्सर दुकान के सामने से गुजरता है और मुझे देखकर गाना गाता है— ‘साली जी… जीजा जा रहा नौकरी पर, उपहार चाहिए तो मांग ले।’ मैं हमेशा शरमा कर सिर झुका लेती थी। ये आदमी फौज से रिटायर है… और ये हरकत चार–पाँच बार कर चुका है।”
यह बात सुनकर मुझे भी थोड़ा अजीब लगा। और एक दिन उस लड़की का सब्र टूट गया। जब वह बुज़ुर्ग दोबारा गाते हुए निकले, तो लड़की ने सीधा जवाब दे दिया—
“जब आप फौज में नौकरी करते थे, तब तो कभी अपनी ‘साली’ की तरफ नजर नहीं उठाई… अब रिटायर होकर पूछते हैं कि ‘उपहार चाहिए?’”
उस दिन के बाद वह आदमी गाना बंद कर गया।
लेकिन इस पर दूसरी सहेली बोली— “कभी-कभी किसी आदमी को खरी-खोटी सुना दो, तो भी वह नहीं सुधरता।”
यह बात मेरे बाल-मन में घर कर गई। मुझे समझ आया कि—
छोटी-छोटी बातों पर ट्रिगर होना ठीक नहीं होता, पर कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर जवाब देना भी जरूरी होता है।
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