अमेरिकन बहू ने पहने भारतीय गहने
अमेरिकन बहू ने पहने भारतीय गहने
अमेरिका के पिट्सबर्ग में आज नैंसी की बेटी जेनिफ़र की शादी का खूबसूरत समारोह सजा था। शादी तो अमेरिकन रीति से हो चुकी थी, पर आज का कार्यक्रम भारतीय परंपराओं को समर्पित था। जेनिफ़र दुल्हन की तरह सजी बैठी थी—हाथों में सुनहरा कंगन, नाक में नथ, कानों में झुमके। गहनों में एक अलग ही चमक थी। हॉल में मौजूद लोग उत्सुकता से पूछ रहे थे कि ये अनोखे आभूषण कहां से आए।
जेनिफ़र मुस्कुराकर कहती— “ये मेरे दादा-दादी ने भारत से भेजे थे। इनकी कहानी बड़ी दिलचस्प है।”
नैंसी का पति पारिजात भारतीय मूल का था, नैनीताल का रहने वाला। अमेरिका में एक मल्टीनेशनल कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी उसे मिली थी। लंबा, बेहद हैंडसम और शांत स्वभाव वाला पारिजात ऑफिस में जल्द ही सभी का चहेता बन गया—और वहीं उसकी मुलाकात नैंसी से हुई।
पहली मुलाकात के बाद कॉफी डेट्स और फिर लंच—दोनों एक-दूसरे के इतने करीब आ गए कि दोस्ती कब प्रेम में बदली, किसी को पता ही नहीं चला।
एक दिन नैंसी ने कहा— “हमें शादी कर लेनी चाहिए, पारिजात।”
पारिजात घबरा गया। “नैंसी, मैं हिंदू परिवार से हूँ… तुम्हारे क्रिश्चियन होने से घर वाले शादी स्वीकार नहीं करेंगे।”
नैंसी गुस्से में बोली— “तुम इतने डरपोक हो? जब शादी करनी नहीं थी तो प्यार क्यों किया?”
बहुत बहस हुई, पर प्यार जीत गया। दोनों ने शादी कर ली और पिट्सबर्ग में बस गए।
नैंसी बार-बार भारत जाने की बात करती— “मैं तुम्हारे माता-पिता से मिलना चाहती हूँ। बस एक बार।”
पारिजात हमेशा टालता रहता। तीन साल बाद आखिरकार उसने हिम्मत की। पर बोला— “कोई स्वागत की उम्मीद मत रखना… माता-पिता मेरी शादी से खुश नहीं हैं।”
नैंसी ने हंसकर कहा— “स्वागत नहीं चाहिए। मैं सिर्फ मिलने आ रही हूँ।”
दोनों नैनीताल पहुँचे और एक होटल में ठहरे। घर गाँव में था—क़रीब पाँच किलोमीटर दूर। रिश्तेदार मिलने आए, पर पारिजात के माता-पिता से मिलने की हिम्मत उसी में नहीं थी।
तब उसके भाई अमित ने पहल की। वह नैंसी को अपने साथ गाँव ले गया।
नैंसी ने हाथ जोड़कर नमस्ते की— “बाबूजी… माताजी…”
सामने खड़े थे जमुना दास और रामा देवी—उम्र के भार से झुके, पर चेहरे पर अपार प्रेम।
रामा देवी अचानक नैंसी को गले लगाकर रो पड़ीं— “कितनी सुंदर बहू है मेरी… पारिजात ने जिंदगी में एक काम अच्छा किया!”
जमुना दास ने भी उसे गले लगाया— “बहू, तुम हमारे घर आती तो देर किस बात की? हम कैसे इनकार करते?”
नैंसी ने चौंककर कहा— “लेकिन पारिजात कहता था आप शादी स्वीकार नहीं करेंगे।”
जमुना दास हँस पड़े— “अरे मैं तो स्कूल टीचर हूँ। थोड़ा सख्त जरूर था, पर दिल छोटा नहीं है। आजकल तो पूरा संसार एक हो चुका है। धर्म-परंपरा की सीमाएँ मिट गई हैं। हम उसके प्यार के दुश्मन क्यों बनते?”
नैंसी को पहली बार लगा—इतना स्नेह उसे अमेरिका में भी नहीं मिला।
सारे गाँव में खबर फैल गई— “अमेरिकन बहू आई है!” गाँव वालों के लिए बड़ा भोज हुआ। सबने नैंसी से ऐसे व्यवहार किया जैसे वह हमेशा से इस परिवार का हिस्सा हो।
वापस लौटते समय रामा देवी अपने कमरे से एक छोटा सा डिब्बा लाई। उन्होंने नैंसी के हाथों में रखा और कहा—
“ये हमारी परिवार की पीढ़ियों से चले आ रहे गहने हैं। मुझे मेरी सास ने दिए थे। अब मैं तुम्हें दे रही हूँ। जब तुम्हारी बेटी की शादी हो—तो ज़रूर पहनाना। शायद उस दिन तक हम इस दुनिया में न हों। यह हमारी आखिरी इच्छा है।”
नैंसी की आँखें भर आईं। उसने झुककर सास के पैर छुए।
पिट्सबर्ग के वेडिंग समारोह में नैंसी उन गहनों को जेनिफ़र को पहना रही थी—कंगन, नथ, झुमके।
जेनिफ़र चमकते चेहरे से सबको बता रही थी— “ये दादी-दादा के दिए हुए हैं। इनकी एक बहुत प्यारी कहानी है।”
आज नैंसी ने अपने सास-ससुर से किया वादा पूरा किया— भारतीय प्रेम, परिवार और स्वीकार्यता की उस कहानी को
