मन का प्रेम
मन का प्रेम


औरतें मन की खुशी को तालों मेंं बंद करके उसकी चाबी किसी समंदर मेंं फेंक देती हैं।क्योंकि उनको पता होता है की दुनिया जहाँ के सारे कानून मन की खुशी पाने के लिए नही बनाये गए है बल्कि मन की खुशी ना मिले उस के लिए कई सारे कानून बने है।हाँ,वे कानून भी अपनी एफ आई आर खुद लिखते रहते हैं।क्या नैतिक है और कैसे अनैतिक है इस के लिए वह जब तब ढेरों दलीलें देते रहते हैं....
औरत मन ही मन उन दलीलों पर दलीलें देती रहती है।लेकिन उन कानूनों के आगे उसकी एक भी दलील नही चलती।जिंदगी बीत जाती है उसकी यह लड़ाई लड़ते लड़ते।उसके मन के प्रेम का क्या?तन के प्रेम के आगे वह मन का प्रेम कही पीछे छूट जाता है.....तन के प्रेम की अपनी जरूरतें होती है।जरूरतें तो कोई भी हो कैसे भी हो वह हर किसी को जमीं पर ले ही आती है।शायद मन के प्रेम की नियति भी यही होती है।मन में रहना और बस मन में ही रहना.....