V Aaradhya

Abstract Tragedy

4  

V Aaradhya

Abstract Tragedy

ममता कभी बंजर नहीं होती

ममता कभी बंजर नहीं होती

10 mins
219


आज वेदिका के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, ख़ुशी से जैसे वह फूली नहीं समा रही थी। उस कागज पर लिखे हर्फ़ ने जैसे उसकी किस्मत बदल दी थी।

हृदय के अंतस में एक तरफ जहाँ ममता का सागर हिलोरे ले रहा था तो मन की ऊपरी परतें अब तक के तानों, उलाहनों और कई तरह के उलटे सीधे उपनामों के तीखे दंश से लहूलुहान हो चुकी थीं। ऐसे जख्म पर डॉक्टर सुरुचि के शब्द मानो रुई के ठंढे फाहे की तरह सुकून दे गए थे। वर्षों से क्लान्त मन जैसे इन्हीं पंक्तियों को सुनकर पल्लवित हो गया था।

"बधाई हो वेदिकाजी, आप माँ बननेवाली हैं "

इससे मधुर संगीत वेदिका के लिए और कोई हो सकता था भला?


वेदिका अहलादित मन से जैसे ही अस्पताल से बाहर निकली लगभग दो साल का एक बच्चा अपनी माँ की गोद में चढ़ने की ज़िद कर रहा था और माँ किसी से फ़ोन पर बात करने में व्यस्त थी। वेदिका को देखकर ना जाने क्यूँ मुस्कुराया। उसे देखकर वेदिका मुस्कुराने ही वाली थी कि उसे अब तक अपने लिए लोगों द्वारा इस्तेमाल किये जुमले याद आने लगे।

"देखो उसे बच्चे के अन्नप्राशन पर मत बुलाओ, उसके घर बच्चे को क्यूँ भेज दिया, इसे तो बीमार पड़ना ही था उसने जो देख लिया था। "

इस तरह से माँएं वेदिका के पीछे उसे डायन, बाँझ और ना जाने किन किन सुंदर नामों से पुकारती थीं इसका अंदाजा वेदिका को कुछ कुछ होने लगा था तब उसने खुद ही अपने आपको बच्चों को प्यार करने से रोकना सीख लिया था।

कई बार तो वेदिका ने मम्मीयों को दबी ज़ुबान से अपने बच्चों को डाँटते हुए भी सुना था कि "कितनी बार मना किया है, वेदिका आँटी के घर मत जाओ पर तुम मानते नहीं, अब गए तो टांग तोड़कर रख दूँगी। सोचते सोचते वेदिका की आँखें गीली हो गई। और एक बार फिर उसने हाथ में पकड़े हुए उस कागज की ओर देखा बड़े ही आत्मविश्वास से उस बच्चे की ओर देखकर मुस्कुराई जो अब तक अपनी माँ की गोद में चढ़ चुका था और गलबंहियाँ डाले झूम रहा था।


तब तक रितिक भी गाड़ी पार्किंग से निकाल लाया था। गाड़ी में बैठते ही वेदिका अपनी रिपोर्ट एक तरफ रखकर रोने लगी। वर्षों से अपने लिए सुने जानेवाले ताने उलाहने जैसे आज अपनी सारी शिकायतें, सारे दंश इन आँसुओं के ज़रिये बहा देना चाहते थे।

"तुम औरतों का तो कुछ समझ ही नहीं आता। ख़ुशी में भी रोते हो और गम में भी। अरे यार ख़ुशी मनाओ कि अब घर में एक नया मेहमान आनेवाला है, पर तुम तो रोने लगी।" वेदिका उसकी बात सुनकर थोड़ा सा मुस्कुराई तो रितिक को उसके रोए रोए चेहरे पर हँसी इतनी प्यारी लगी कि उसका मन किया अभी उसे प्यार से गले से लगा ले। पर तभी वेदिका ने खुद उसका हाथ पकड़कर कहा, "अब जल्दी घर चलो रितिक, मुझे अपने कान्हाजी को शुक्रिया अदा करना है। आज भगवान की असीम कृपा की बदौलत ही मेरे गोद में भी कोई नन्हा मुन्ना खेलने आनेवाला है।"

सुनकर रितिक ने भी गाड़ी स्टार्ट कर दी। गाड़ी की रफ़्तार के साथ ही वेदिका का मन भी अतीत के गालियारे में घूमने लगा।


नौ साल पहले जब वह शादी करके ससुराल आई थी तो घर की बड़ी बहू को सास ने बड़े ही शौक से अपनाया था। और फिर लगभग सभी बुजुर्ग महिलाएँ वेदिका को प्रणाम करने पर "दूधो नहाओ पुतो फलो" का ही आशीर्वाद देती रही थी। उनकी दुआएं अब जाकर फलीभूत हो रहीं थीं।

वेदिका ने सोचा, कुछ दुआओं को कबूल होने में वक़्त लगता है। इस दौरान ना जाने कितनी बार उसे जिल्ल्त झेलना पड़ा था। कभी मनहूस, कभी बंजर, कभी बाँझ जैसे विशेषण उसके नाम के साथ जुड़ते चले गए थे। शादी के एक साल तक तो ज़्यादा ज़ोर नहीं था किसी का पर उसके बाद सास का आग्रह आने लगा, "मुझे दादी कब बना रहे हो" कुछ सालों में यह आग्रह कब दबाव बन गया वेदिका को इसका पता तब चला जब छोटे देवर की शादी के बाद उसने सास को कहते सुना, "अब जल्दी ही पोते का मुँह दिखाना, बड़ी बहू से तो कहकर हार गई पर उधर की तो धरती ही बंजर निकली।"

ऊपर से मीठा बोलनेवाली सास ने भी वेदिका के लिए अपने मन के किसी कोने में उसके निःसंतान होने की कमी को आखिर अपने शब्दों को जहर का जामा पहनाकर उगल ही दिया था। वेदिका का अंतर्मन आर्तनाद कर उठा। वो चीख चीख कर कहना चाहती, भले ही शरीर से वो माँ बनने में अक्षम है पर उसका मन भी मातृत्व को तरसता है, "ममता कभी बंजर नहीं होती।"

पर जब लोगों की सोच ही बंजर हो चली हो तो वेदिका कैसे समझाए।


उस दिन तो सास की बात सुनकर वेदिका को लगा कि क्या सिर्फ एक बच्चा ना दे पाने की स्थिति में उसके सारे स्त्रियोचित गुण व्यर्थ हो गए ?

दबे ढके शब्दों में बंजर कहकर बाँझ ही तो कहा था उसे। वेदिका बहुत रोई थी उस दिन अपनी कमतरी पर।

वो भी क्या करती? शादी के बाद दो साल तक तो दोनों प्यार में ऐसे खोये रहे कि बच्चे का सोचा ही नहीं। बाद को ससुराल और मायके दोनों जगह के लोगों का दबाव बनने लगा तो वो और रितिक भी बच्चे के लिए सोचने लगे। पर अगले दो साल तक भी जब कोई लक्षण नज़र नहीं आए तो उन दोनों ने डॉक्टर को दिखाया। रितिक के सारे टेस्ट रिपोर्ट नॉर्मल थे। पर वेदिका के दोनों ट्यूब बँद थे, इस वजह से गर्भ नहीं ठहर रहा था। यह सुनकर सास ने पूरा घर सर पर उठा लिया। कई डॉक्टर के इलाज का नतीजा भी कुछ खास नहीं निकला। सारे डॉक्टर एक ही बात कहते, ट्यूब इस तरह बँद है कि ऑपरेशन का भी कोई फायदा नहीं। "मैं तो पहले ही कहती थी कुछ गड़बड़ है, अब पता चला ये बहू तो बाँझ है। लगता है मैं पोते का मुँह देखे बगैर ही इस दुनिया से चली जाऊँगी। "


और फिर कुछ ही महीनों में देवर का ब्याह हो गया। सास का पूरा लाड़ दुलार अब छोटी बहू रागिनी पर बरसने लगा, "दूधो नहाओ, पूतों फलो" का आशीर्वाद अब रागिनी को मिलता और वेदिका एक तरह से अलग थलग सी पड़ने लगी थी। सबकी उपेक्षा समझ तो रही थी। दो एक बार रितिक से बच्चा गोद लेने की बात कही भी पर रितिक ने अब तक मुखर होकर कोई जवाब नहीं दिया था। लिहाज़ा वेदिका खुद में ही सिमटती जा रही थी।

उन्हीं दिनों वेदिका ने गौर किया कि रागिनी अब उससे कुछ कम बात करने लगी थी। शाम की चाय दोनों जेठानी देवरानी साथ पीती थीं, उस वक़्त भी रागिनी चाय पीने का मन नहीं है दीदी, कहकर दूध पीने लगी थी। दिल की सरल वेदिका का इस ओर ध्यान ही नहीं गया कि अब जब भी रागिनी और वो रसोई के अलावा फुरसत में साथ बैठते सास किसी ना किसी बहाने से रागिनी को अपने पास बुला लेती थी। वेदिका का माथा तो तब ठनका जब उसने घर में आई एक पड़ोसन को सास से कहते सुना, "सुनीताजी, अब तो कुछ महिनों में आपके घर भी किलकारी गूंजनेवाली है फिर आपको सतसंग में आने की फुर्सत कहाँ मिलेगी। "


वेदिका पर एक और व्रजपात हुआ जब उसने सास को कहते सुना, "बस दुआ करो सब शुभ शुभ को हो जाए। जब घर किसी निपुत्तरवाली का साया हो तो थोड़ा डर तो लगा ही रहता है। " वेदिका समझ गई निपुत्तर किसके लिए कहा गया है, अपने कमरे में आकर रोने लगी। अपना दुःख किससे कहती। माँ की बहुत याद आ रही थी। उनका भी पिछले साल देहांत हो गया था। भाई भाभी के दो बच्चे थे। वो अपनी गृहस्थी में रमे हुए थे। ले दे कर एक रितिक ही बचा था, उसे वो अपना दुखड़ा सुनाकर परेशान नहीं करना चाहती थी। तभी एक बात अच्छी हुई कि रितिक का ट्रांसफर पुणे हो गया। उसकी कंपनी ने पुणे में नया ब्रांच खोला था और उसे ब्रांच मैंनेज़र बनाकर भेज रहे थे। इस खबर से जहाँ वेदिका खुश थी, उसने गौर किया उसकी सास उससे ज़्यादा खुश थी कि उनके होनेवाले पोते पर अब वेदिका का मनहूस साया नहीं पड़ेगा।


पुणे आकर कुछ महीने तो यूँ ही ठीक ठाक कट गए। पर जब यहाँ भी लोगों को मालूम पड़ा कि उसकी शादी को नौ साल हो गए हैं तो माँओं ने अपने बच्चों को उसकी नज़रों से बचाना शुरु कर दिया। देखकर वेदिका का दिल एक बार फिर टूट गया। पर अब तक वो अपने आपको अभिशप्त समझकर खुद को समेटना सीख गई थी।

लगभग हर रात वो अपनी बदकिस्मती पर तकिया भिगोती और अगर रितिक देख लेता तो उसे समझाता कि,

"क्या हम दोनों का प्यार एक दूसरे के लिए काफ़ी नहीं जो वो एक बच्चा ना होने की कमी को अपनी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी कमी मान बैठी हो "।

पर वेदिका कैसे कहती रितिक से कि उसका दिल भी एक बच्चे को अपनी गोद में खिलाने को तरसता रहता है। वो अपने माथे से ये बाँझ का ठप्पा हटाना चाहती है।

अब घर में अकेले वेदिका का जी घबराने लगा तो उसने सोचा अपने पुराने शौक को जीवंत किया जाए। रँग, कुची लाने मार्किट गई तो रास्ते में कुछ महिलाओं को डॉक्टर सुरुचि के बारे में बोलते हुए सुना कि बँद ट्यूब के सफल ऑपरेशन से उन्होंने कितनी ही माँओं की उम्मीद पूरी की है, कितनों की गोद हरी की है। आकर उसने रितिक को बताया तो वह इतना खुश हुआ कि अगले ही दिन ऑफिस से छुट्टी ले ली और उसको लेकर डॉक्टर सुरुचि के पास ले गया। उसकी ख़ुशी और उत्साह देखकर वेदिका को एहसास हुआ कि बच्चे की ख्वाहिश रितिक को भी है।


डॉक्टर सुरुचि सच में अपने काम में बहुत पारंगत थी। एक तो वो अपने उत्साहवर्धन से अपनी पेशेंट के अंदर सकारात्मक ऊर्जा भर देती थी फिर उनके इलाज की आधुनिक तकनीक, अनुशासित स्टाफ सब मिलाकर एक सफल डॉक्टर के साथ वो एक बेहद संवेदनशील महिला भी थी। वेदिका को देखकर वो समझ गई ये मानसिक रूप से भी बहुत टूटी हुई है। इसलिए उससे बड़े ही प्रेम से पेश आती और उनके इलाज की गारंटी तो थी ही। क्यूँकि वो विदेश से खास इसी तरह की समस्या की स्पेशल ट्रेनिंग लेकर आई थी। और आज इलाज के लगभग डेढ़ साल बाद वेदिका की प्रेग्नेंसी की रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। आज वेदिका के पैर जैसे ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। अचानक वेदिका की तंद्रा टूटी। उसने सुना रितिक उसे उतरने को कह रहा था। वो अतीत में ऐसी खोई कि उसे पता ही नहीं चला कि कब घर आ गया।


उसे रितिक जिस तरह सहारा देकर गाड़ी से उतार रहा था उसे देखकर वेदिका को उसके भोलेपन पर प्यार आ गया। उसने हल्की सी झिड़की देते हुए कहा अभी तो शुरुआत है अभी इतना सहारा देने की ज़रूरत नहीं। रितिक घर के अंदर आते ही बोला, "आज से अपनी बेगम का हम पूरा ध्यान रखेंगे, कोई काम नहीं करने देंगे।" वेदिका यह सब देखकर ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी। आज उसके कान्हाजी ने उसकी वर्षों की मुराद पूरी कर दी थी। अब पड़ोस की महिलाएँ अपने बच्चों को उसके पास भेजने से नहीं रोकती थीं बल्कि वेदिका को होनेवाले बच्चे के लिए क्या खाना है, क्या क्या एहतियात बरतना है, ये सब समझा जाती। सासुमाँ का फोन लगभग रोज़ आने लगा था जिसमें वेदिका के लिए लाड टपक रहा होता। उसका नाम उन्होंने बंजर धरती रखा था, शायद सासुमाँ यह भूल चुकी थी।


वेदिका सोचती कल तक जो मनहूस थी, अपशकुनी थी, बाँझ थी, वो अब सबकी आँखों का तारा बन चुकी है। सबका इतना प्यार दुलार पाकर वो खुश तो थी पर सबकी दोहरी मानसिकता उसे परेशान भी कर रही थी। एक रितिक ही था जिसने हर परिस्थिति में उसका साथ दिया था। किस्मत ने भले उसे कई जगह खुशियाँ देने में कंज़ूसी की थी पर रितिक जैसा जीवनसाथी देकर जैसे खुशियाँ किस्तों में मिली थी उसे। जिसका पहला किस्त वो रितिक को पापा बनाकर लौटनेवाली थी।


कुछ महीनों बाद वेदिका ने जब एक नन्ही परी को जन्म दिया तो फूल सी कोमल उस मासूम को कलेजे से लगाते ही उसके अंदर जैसे मातृत्व सिरज आया।

वो कुछ कुछ समझने लगी थी कि माँ बनना सच में एक स्त्री की ममता को एक आयाम देता है। बदल जाती है स्त्रियाँ और बदल गई है अब वेदिका भी। क्यूँकि उसका पूरा समय उसकी "ख़ुशी" जो ले लेती है। मातृत्व की गरिमा ने वेदिका के व्यक्तित्व को और भी लवण्यमयी बना दिया है।

अब सब खुश हैं वेदिका से। सिर्फ रितिक को शिकायत है कि वेदिका अपनी बिटिया ख़ुशी के प्यार में अपने पति को कम समय देने लगी है अब। पर अंदर ही अंदर वेदिका की ख़ुशी से रितिक भी बहुत खुश है। इधर वेदिका कहती है कि... ख़ुशी के रूप में उसने रितिक को अपने प्यार की एक खूबसूरत सी बानगी ही तो दी है। दोनों पति पत्नी की अपनी अपनी शिकायतें... नन्हीं बिटिया ख़ुशी की भोली खिलखिलाहटें और इनके आपस का प्यार , यही तो है अब वेदिका का छोटा सा संसार।


(समाप्त )


प्रिय सखियों... एक स्त्री के लिए माँ बनना कुदरत का सबसे बड़ा वरदान हो सकता है। पर स्त्री में निहित ममता उसका एक नैसर्गिक गुण है। ममता तो एक भाव है प्रेम का वातसल्य का और ममता कभी बंजर नहीं होती।





Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract