मलाल
मलाल
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
आज से पहले उसके मुख से न तो इतने अभद्र शब्द निकले थे और न ही इतनी गंदी गालियाँ। उसकी एक मात्र शुभचिंतक ने भी ऐसे शब्द न तो कभी उसके मुख से सुने थे और न ही कभी किसी और के। फ़िर भी वह संयत रही।
"कुछ ... तो करो न।" एक और गाली बकते हुए पूरी ताक़त से उसने उसे पीछे ढकेलकर टेबल से सेनेटाइज़र की बोतल उठा कर गले में उड़ेलने की कोशिश की।
"नहीं, अब मैं तुम्हें कोई भी ग़लत क़दम उठाने नहीं दूंगी। तुमने अब तक मुझे अपनी सच्ची दोस्त माना है, तो आज इस दोस्त की बात तुम्हें माननी ही होगी।" उसकी मज़बूत कलाई को अपनी हथेली से पूरी ताक़त से दबा कर उस पर नियंत्रण पाते हुए वह उससे बोली, "तुम एक बार ख़ुदक़ुशी की कोशिश कर चुके हो और एक बार इस अस्पताल से भागने की कोशिश कर चुके हो ।"
"तू छोड़ मुझे मेरे हाल पर। तुझे भी पॉज़िटिव होना है... मरना है क्या कोरोना वॉरिअर का तमग़ा लेकर बिना पीपीई पहने।" इतना सुनने के अलावा वह उसका ज़ोरदार चाँटा भी सह गई। लेकिन वह समझ रही थी, उसके कोबिड महामारी के लक्षणों का दर्द, ख़ुश्क गले की पीड़ा, उसके बदन का दर्द और उसकी ग़रीबी की सीमाएं। अब भी वह संयत रही।
उसकी मज़बूरी थी कि नर्स होते हुए भी नियमानुसार वह उसके नज़दीक़ अधिक समय तक नहीं रह सकती थी कॉलेज के दिनों के अपने इस होनहार मित्र का हौसला बढ़ाते रहने के लिए।
कोरोना पीड़ितों की सेवा संबंधित सभी प्रशिक्षण और इंटरनेट पर उपलब्ध वीडियो भी ग़रीब मरीज़ों के काम न आ पाने का उसे बहुत मलाल था।