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Harish Bhatt

Abstract

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Harish Bhatt

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मकड़जाल

मकड़जाल

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जमाना देखेगा तो क्या कहेगा। इस जमाने के चक्कर में कभी खुलकर अपने जज्बातों को जाहिर नहीं कर पाए। बचपन से ही जमाने के नाम पर डराया, धमकाया जाता रहा है। कभी पढ़ाई के नाम तो कभी घूमने-फिरने को लेकर और तो और दोस्तों को लेकर कुछ ज्यादा ही। अरे कहां जा रहे है, किसके साथ जाना है। जमाना क्या कहेगा, बस यूं ही फालतू घूमते रहते हो। कुछ घर परिवार की चिंता भी है। चलो घर की छोड़ो अपना तो ध्यान रखो। समय बीत जाने के बाद बहुत पछताओगे। उम्र के साथ-साथ जमाने की दहशत पूरी तरह से मन में बैठती चली गई। बड़े होने के साथ-साथ जमाने की अहमियत भी समझ आने लगी साथ ही दोस्ती का मतलब भी।

हिन्दी फिल्मों में भी जमाने की अहमियत को फिल्माया गया है। कभी ‘छोड़ दो आंचल जमाना क्या कहेगा’, तो कभी ‘जमाने मारे जवां कैसे-कैसे’ के साथ ही जमाने से बगावत करते हुए ‘जमाने को दिखाना है’ और ‘अगर तुम मिल जाओ, तो जमाना छोड़ देंगे’ इनसे भी समझ आता है कि सदियों से इंसान अपने खुद के बुने रीती-रिवाजों के मकडज़ाल से निकलने के लिए छटपटा रहा है। लेकिन क्या किया जा सकता है कि इस जमाने के चक्कर में अगर दोस्त को छोड़ दिया तो कुछ मिलने वाला नहीं है, सिवाय दुख-दर्द के और दोस्ती में जमाना छोड़ दिया तो समझो आगे का सफर मुश्किल भरा है। अगर मन में कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश है और इरादे मजबूत हैतो जमाना कुछ नहीं कर सकता। आखिर वह कौन होता है। फिर जमाने से डरने का कोई पुख्ता कारण भी होना चाहिए। फिजूल में ही जमाने से डरने रहने का कोई मतलब नहीं होता। पुरानी परम्पराओं की झूठी दुहाई देने वाले ही जमाने के साथ चलने की बात करते रहते है। क्योंकि उनमें वह जज्बा ही नहीं होता कि वह कुछ नया कर सकें। पुराने ढर्रे पर चलते हुए कभी भी अपनी मंजिल पर नहीं पहुंचा जा सकता। इस जमाने के चक्कर के अपने जज्बातों का कत्ल कर देना तर्कसंगत नहीं है। अगर जमाने को आपकी चिंता होती तो वह बेफिजूल की बातों को कभी तूल नहीं देता। कभी सोचिए तो मालूम चल जाएगा इस जमाने की वजह से कितनों के अरमान मिटटी में मिल गए। किसी का भी मनोबल तोडऩा हो तो बस जमाने को बीच में ले आइए। लेकिन यह भी सच्चाई है जिसने जमाने की परवाह नहीं की और अपने लक्ष्य पर अडिग रहते हुए सफलता के शिखर के छूकर इतिहास बनाया दिया। तब जमाना खुद-ब-खुद उसके कदमों में झुका है। ऐसा भी नहीं है जमाना बिलकुल ही खराब हो। लेकिन जब खुद अपने ही इरादे कमजोर हो तो जमाना भी क्या साथ देगा। वैसे भी जमाना भी उसी के साथ चलता है जिसके मन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो।


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