"मक़बूल "
"मक़बूल "
मक़बूल अक्सर अपने बाबा जानी का बहुत ही लाडला था।बहुत फरमा बरदार बेटा,बाबा जानी को नाज़ था बाबा जानी जितने रंगीन मिज़ाज थे ।अक्सर नई लडकियों को अपने हरम में रखे रखतें थे ।उनका सबसे वफ़ादार बेटे पर हरम की एक रंगीन मिज़ाज सायरा की नज़र में चढ़ जाता है ।वो लड़की सायरा मक़बूल को बहुत उकसाती है अपने त्रिया चरित्र से मक़बूल भी आख़िर इंसान ही था। बहक जाता है।बाबा जानी की सबसे ज़्यादा पसंदीदा बेगम के साथ ख़ूब रंगरलियां मनाने लगता है ।
सायरा मक़बूल को अक्सर उसकी वफ़ादारी पर तंज कसती है और मर्दानगी को ललकारती रहती है।।एक दिन मक़बूल के सिर पर ख़ून सवार हो जाता है वो "बाबा जानी" कत्ल कर देता है। पर सायरा को यहाँ तक भी चैन नहीं आता है।मक़बूल धीरे- धीरे ख़ून की होली खेलता चला जाता है ।
त्रिया चरित्र मक़बूल को बहकाकर गैंग वार करवाती है उसका सीधा सा फंडा रहता है। मक़बूल तुम डॉन बन जाओ ।बाबा जानी का वफ़ादार दोस्त को उसके बेटे को जो मक़बूल की बहन का होने वाला पति रहता है सबको मार देता है।
ये पिक्चर इतनी सटीक थी इसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है "इरफ़ान खान" जैसे अभिनेता मर कर भी "अमर" हैं ज़ेहन से ये किरदार कभी भूल ही नहीं सकती