मजबूरी
मजबूरी
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मिसेज दास सात-आठ दिनों से परेशान थी उनकी काम वाली महरी नही आ रही थी। आठवे दिन सवेरे घंटी बजने पर जब मिसेज दास दरवाजा खोली तो बारह -तेरह साल की पतली-दुबली कमजोर सी लकड़ी सामने खड़ी थी। मिसेज दास के कुछ पूछने से पहले लड़की बोली माँ की तबियत खराब है वो काम पर नही आयेगी इसलिए मुझे भेजी है। क्यों, क्या हो गया तेरी माँ को मिसेज दास ने रूखे स्वर में पूछा ?
लड़की ने कहा माँ को बुखार आ रहा है बहुत कमजोर हो गई है डॉक्टर ने काम करने से मना किया है इसलिए मैं आई हूँ। मिसेज दास ने कहा तुम छोटी हो इतने बड़े घर का काम कैसे करोगी ? स्कूल जाया करो वहाँ आजकल खाना भी मिलता है। ममता ने तुरंत जवाब दिया स्कूल में तो मेरे को बस खाना मिलेगा काम करूँगी तो घर मे सब खायेंगे। ममता के इस सपाट उत्तर से मिसेज दास को लगा मजबूरी ने कम उम्र में लड़की को कितना समझदार बना दिया है वो मन ही मन सोची अगर मैंने काम नही कराया तो दूसरी जगह जाएगी पता नही कैसे लोग मिले अच्छा है मैं काम करवा लेती हूँ उसे काम के साथ पढ़ा भी दिया करूँगी और वह उसे अंदर बुलाकर काम बताने लगी।