मेरे प्रिय शिक्षक
मेरे प्रिय शिक्षक


आज का दिया विषय मेरे मेडिकल अध्ययन काल के अविस्मरणीय शिक्षक डॉ पी माल्शे के जीवन को सर्वोत्तम परिभाषित करता है।उनसे हुई मेरी मुलाकात अविस्मरणीय है।
डॉ पी माल्शे हमारे मेडिकल कॉलेज के नियमित शिक्षक नहीं थे वह बाहर अपनी निजी प्रैक्टिस व चैरिटेबल हॉस्पिटल में सेवा दिया करते थे।
पता नहीं कब से लेकिन वह हमारे कॉलेज में अतिरिक्त क्लासेज देने आया करते थे या यूं कहिए कि हमारे सीनियर्स ने उन्हें फार्माकोलॉजी और मेडिसिन पढ़ाने के लिए बाहर से बतौर ट्यूटर क्लासेस देने के लिए आमंत्रित कर दिया था जो बहुत पुराने समय से अब तक चला आ रहा था।
चेहरे पर एक न भूलने वाली मुस्कान लिए वे अपना स्कूटर लिए साथ में बैग में नोट्स की शीट्स लिए वे अलग-अलग बैच को अलग-अलग समय पर पढ़ाया करते थे।
पांच साल वहां रहकर किये अध्ययन काल में मैंने उन्हें कभी भी हताश निराश व वह बेवजह किसी को चिल्लाते हुए नहीं देखा।
कैसा भी मौसम हो कितनी भी गर्मी है, कितना भी जाड़ा हो वह बिना किसी बात की फिक्र किए हमें नियमित पढ़ाने आते थे।
वह एक दिन की शीट के मात्र ₹10 हमसे पे करते थे, महीने के ₹300।
और बदले में देते थे हमें वह ज्ञान जो आज मैं सोचूं तो अन्यत्र दुर्लभ है।
इतनी कम फीस पर भी कुछ शरारती स्टूडेंट्स उनकी दी हुई शीट्स बाहर से फोटो स्टेट करा लेते थे और उनसे नहीं लेते थे। जब कुछ पढ़ने वाले स्टूडेंट्स इस बात को उन्हें बताते तो वह बड़े आराम से कहते कोई बात नहीं बच्चा पढ़ तो रहा है इससे ज्यादा और क्या चाहिए।
हर कॉलेज की परंपरा की तरह कि शिक्षकों का कुछ विद्यार्थी सम्मान करते हैं और कुछ हमेशा उनका मखौल उड़ाते रहते हैं यहां पर भी कुछ वैसा ही था कुछ शरारती तत्व उनकेपढ़ाने में हमेशा व्यवधान उत्पन्न करते थे।
उनकी बढ़ती लोकप्रियता के चलते कॉलेज के कुछ नियमित शिक्षकों और कुछ उपद्रवी छात्रों ने यह चाहा कि वह कॉलेज आना बंद कर दें, इसके लिए उन्हें तरह-तरह से परेशान करना चाहा।
लेकिन उनके लेक्चरर्स बहुत सटीक और उपयोगी होने की वजह से एक छात्रों के बड़े वर्ग ने हमेशा उनका साथ दिया।
इस पर भी कुछ लोगों ने जब सुबह के समय की उनकी क्लासेज ना होने देने के लिए लेक्चर हॉल्स में ताले लगा दिए और वहां पहुंचे हम बेहद परेशान दिखे तो उन्होंने बहुत सहजता से इसका हल निकाल लिया उन्होंने बाहर सीढ़ियों पर हमें क्लासेज देना शुरू कर दिया।
मुझे अच्छी तरह से याद है लगभग एक माह तक हमने बिना किसी परेशानी के सीढ़ियों पर क्लासेज अटेंड की।
कुछ उपद्रवी विद्यार्थियों के अपशब्द जब हमें ही सुनाई देते थे तो भला उनके कान तक कैसे ना पहुंचते होंगे, उन सभी को वह सहजता से अनदेखा कर अपने पढ़ाने का कार्य जारी रखते ।
मैंने उनके चेहरे से वह ओज भरी मुस्कान कभी गायब नहीं देखी।
अपनी पत्नी के साथ शायद उनके पारिवारिक मतभेद थे जैसा कि उस समय अफवाह बना करती जो कि बाद में निर्मूल साबित हुई।
इस विषय पर भी बहुत से विद्यार्थी उन पर तंज कसा करते लेकिन वह इन सब बातों से बिल्कुल विचलित नहीं होते।
यहां तक कि एक बार उनका स्कूटर भी किसी ने बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया था हम लोगों को देखकर बहुत गुस्सा आ रहा था पर उस समय भी उनकी मुस्कान देखने लायक थी जैसे फिक्र का उनके जीवन में कोई स्थान ही नहीं था।
अनगिनत बातें थी जो उनके सरल व्यवहार की पर्यायवाची थी।
हमें हमारे प्रोफेशनल कोर्स तक ही न पढ़ा कर उन्होंने बाद में भी सभी जुझारू अच्छा कैरियर बनाने की इच्छुक प्रतिभावान विद्यार्थियों की हर संभव मदद की।
उनके कहने से ही सिटी हॉस्पिटल की विख्यात पीडियाट्रिशियन ने हमें निशुल्क उपयोगी क्लासेस दी और अपने हॉस्पिटल में बारी-बारी से ट्रेनिंग का अवसर भी।
एक बार इलेक्ट्रिक शार्ट सर्किट से उनके निजी हॉस्पिटल में भयंकर आग लग गई जिससे उस बिल्डिंग को बेहद नुकसान पहुंचा।
पहली बार सबने उन्हें उदास देखा था स्वभाविक है जिसका इतना भयंकर नुकसान होगा तो वह दुखी तो होगा ही।
घोर आश्चर्य.... उन्हें अपने बिल्डिंग के क्षतिग्रस्त होने का इतना दुख नहीं था जितना उनके पेशेंट्स की केस हिस्ट्री मिट जाने का।
यह सब बातें काल्पनिक लगती हैं कि कोई व्यक्ति कैसे व्यक्तिगत हानि को महत्वपूर्ण नहीं मानता लेकिन मैंने अपने उन शिक्षक को चिंताओं से परे संयत होकर उन समस्याओं का हल निकालते हुए देखा था।
और हुआ अभी आने वाले 6 महीनों में उन्होंने अपना हॉस्पिटल फिर से चालू कर दिया था।
धुए में तो नहीं, क्योंकि उन्होंने कभी धूम्रपान करा ही नहीं था डॉक्टर थे तो फिर भली-भांति जानते होंगे कि इसके क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं, लेकिन मैंने उन्हें हर फिक्र को सहजता से दूर भगाते देखा था।
आज भी वह मेरे शिक्षक अपनी प्रैक्टिस जारी रखे हुए हैं और प्रोत्साहन का एक शब्द भी जो अब बड़ी मुश्किल से मुझ तक पहुंच पाता है, क्योंकि वह थोड़े वृद्ध भी हो गए हैं, मेरे लिए अपार खुशियां दे जाता है।
आज के समय में जब शिक्षा का व्यवसायीकरण हो चुका है और अधिकांशतः शिक्षक धन के स्वार्थ में अपना छात्रों से भावनात्मक रिश्ता खत्म कर चुके हैं और स्वयं भी परेशानियों के घेरे में घिरे रहते हैं, मेरे माल्शे सर का उदाहरण अनुकरणीय है जिन्होंने चिंता को सकारात्मक कैसे लिया जाए यह सभी को अप्रत्यक्ष रूप से सिखाया।