मेरा प्यार
मेरा प्यार
सुनो जी....
अब क्या हुआ....
आज आप बहुत अच्छे लग रहे हैं.....!!!
क्यों ....कितनी लंबी लिस्ट है सामान की.....???
क्यों ऐसा क्यों कह रहे हैं आप......!!!
नहीं मुझे लगा... अक्सर तुम मेरी तारीफ जब करती हो... उसके बाद उतनी ही लंबी लिस्ट होती है सामान की...
जी नहीं ऐसी कोई बात नहीं है....
तो कौन सी बात है...??
आज मुझे आपसे कुछ कहना है.....
बताओ.... पतिदेव जी मोबाइल देखते हुए कहते हैं...
आज आपको मेरी कविता सुननी ही पड़ेगी ....
पूरे डेढ़ महीने हो गए हैं लेकिन आपने मेरी एक भी कविता नहीं सुनी....
बगल में गुप्ता जी को देखिए उनकी पत्नी केवल दो- दो ही लाइन लिखती हैं ...लेकिन वह सुबह से शाम तक कितने चाव से सुनते हैं और आप.... आपने आज तक मेरी एक भी कविता नहीं सुनी...।
आज मैं आपको सुना कर रहूँगी.....
यह सुनते ही वह बोले....अरे पता है तुम्हें...!!
आज गुप्ता जी सुबह छत पर मॉर्निंग वॉक में मिले तो ..मैंने पूछा क्या हाल-चाल है आपके ..भाभी जी कैसी हैं ...??
यह सुनते ही वह बोले....
अरे भैया क्या बताएँ...
लॉक डाउन चल रहा है... घर के अंदर बैठे हैं..
दिन भर कविता शायरी में ही दिन गुजरता है ..ना सुनो तो खाना भी ना मिले इसलिए जबरदस्ती सुनकर वाह-वाह करना ही पड़ता है....
यह सुनकर मैंने कहा ..ऐसा नहीं हो सकता..
आप लोग अपनी पत्नियों की कला नहीं समझते ना ही कोई कदर है...
इतने में पतिदेव जी का फोन बजने लगता है... फोन उठाते हुए वह इशारों में बोले ..चुप एकदम आवाज ना आए...
मैं अपनी कविताओं को हलक में दबा कर बैठ गई..
बात खत्म होते ही मैं फिर अपनी बात पतिदेव जी के सामने कविता सुनाने की रख दी...
इतने में पतिदेव बोले ...अच्छा सुनाओ कितने लाइन की है ...??
मैंने कहा बारह लाइन की...
वह बोले दो- दो लाइन के लिखा करो...
लिखने में आसान और सुनने में आसान..
यह सुनते ही मैंने कहा..
रहने दीजिए ..मत सुनिए ...।
उस दिन भी आपने यही कहा था और मैंने दस मिनट में भिंडी काटी थी ...जिसमें मेरी उँगली भी कट गई थी और आप दो ही लाइन सुन कर चले गए थे..।
मैंने आपकी शर्ट की सारी बटन टाइट की। सारा घर का काम खत्म किया कि आज आप मेरी कविता जरूर सुनेंगे.. लेकिन जब भी मैं सुनाने बैठती हूँ ..आपके फोन आ जाते हैं... इस पर पतिदेव जी ठहाका मार के हँसते हुए कहते हैं.. उनको भी पता चल जाता है कि तुम्हारी कविता शुरू होने वाली है...।
यहाँ पर सबको मेरी कविताएँ बहुत अच्छी लगती हैं..।
यह सुनते ही वह आश्चर्य से बोले..
कौन कहता है ..उनको भ्रम है....
अच्छा चलो सुनाओ....
मैं जैसे ही सुनाने बैठती हूँ.. इतने में फिर उनका फोन लगा... पतिदेव जी कहते हैं ..चुप हो जाओ.....
डी. डी. ओ. साहब का फोन है... इस पर फिर मैं अपनी कविताओं को समेटकर एक किनारे बैठ जाती हूँ...
बात खत्म होते ही वह बोले ..
अच्छा मैं आज शाम को आऊँगा..
आते ही सुनूँगा... पक्का.....।
शाम को उनके आते ही मैं अपनी कविताओं को लेकर उत्सुकता से तैयार थी....
उनके आते ही मैं उनकी आँखों में आँखें डाल कर खड़ी हो गई.. इस पर वह बोले ..हाँ हाँ.. मुझे याद है ..तुम्हारी कविताएँ सुननी हैं.. चलो सुनाओ......।
मैंने अभी चार लाइन ही सुनाई थी....इस पर वह खुश होते हुए बोले ...अच्छा सुनो अब मैं इस कविताकार के ऊपर दो गाने की पंक्तियाँ सुनाना चाहता हूँ......।
मेरे प्यार की उमर हो इतनी सनम...
तेरे नाम से शुरू तेरे नाम पे खतम...
.. उनके मीठे गले से यह गाने की पंक्तियां सुनते ही मैं प्यार की वादियों में खो गई और एक बार वह फिर से कामयाब हो गए... मेरी सारी कविताओं को सुनने से बच गए... और अंत में हंसते हुए बोले.. चलो तुम्हारी कविताओं की चार लाइन आज मैंने सुन ली... बाकी की फिर कभी...।।

