क्या खोया क्या पाया
क्या खोया क्या पाया
मौरंग ला जल्दी..
सीमेंट कब लाएगा घोला बना कि नहीं....??
और ईटे.. वह क्या तेरा बाप लाएगा... जरा जल्दी जल्दी काम किया कर..
जी अभी लाया... यह कहता हुआ.. जीतू दौड़ गया...
जरा देर में वह अपने नन्हे कंधों पर सफेद बोरी में मौरंग ढोता हुआ तीन मंजिले पर चढ़ गया।
बाकी काम करने वाले जो वयस्क थे.. वह सब आपस में बैठकर कभी तंबाकू पीटते.. कभी आपस में हंँसी मस्करी करते ..लेकिन वह नन्हा जीतू कुछ ना कुछ करता ही रहता.।
इस आस में कि आज तो टाइम पर दिहाड़ी मिल ही जाएगी और कुछ कमाई हो जाएगी।
मसाला बना कि नहीं ..जरा देर में यह मिस्त्री की आवाज आती..
इस पर जीतू दौड़ता हुआ मसाला बनाने की ओर भाग जाता.।
हर तरफ जीतू जीतू ही सुनाई पड़ता मानो और लोग काम करने नहीं केवल जीतू से ही काम कराने आए हैं।
यह सब शोभा देवी अपनी खड़ी बालकनी से देख रही थी। लगातार एक महीने यह सब देखती रही।
अचानक एक दिन उसने अपनी बालकनी से उस जीतू को आवाज देकर अपने पास बुलाया।
शोभा देवी के मुंह से अपना नाम सुनकर जीतू अपनी अबूझी आंँखों से उस बालकनी की ओर ताकने लगा।
उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसे बुला रही है या किसी और को..!!!
उसने अनसुना करते हुए अपनी बोरी में सीमेंट भरनी शुरू कर दी।
इतने में फिर से शोभा देवी ने आवाज दी जीतू जरा इधर आओ।
इस पर जीतू ने शोभा देवी को देखते हुए कहा..
जी आंटी अभी आऊंँगा.. काम खत्म होने पर.. नहीं तो अभी सब लेबर मिस्त्री चिल्लाने लगेंगे मेरे ऊपर और उन्हें सांत्वना देकर वह उस तीन मंजिले मकान की ओर बढ़ चला।
और शाम होते ही वह शोभा देवी के पास उनके घर आ गया।
जीतू को अपने सामने देख शोभा देवी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई लेकिन उसे इस तरह काम करते और उसके मासूम चेहरे को देखकर कहीं न कहीं उनके दिल में उदासी भी छा गई थी।
शोभा देवी ने जीतू को अपने पास बिठाते हुए पूछा..
जीतू तू यह सब करके कितना कमा लेता है और तुझे इस तरह मजबूरी में काम करने की क्या आवश्यकता है..?? अभी तो तुम्हारी उम्र पढ़ने-लिखने की है।
यह सुनकर जीतू तुरंत बोल पड़ा...
आंटी पढ़ना लिखना हमारे नसीब में नहीं..
हम तो काम करने का नसीब लेकर आए हैं।
यह सुनकर शोभा देवी के चेहरे पर आश्चर्य जनक भाव उत्पन्न हो गए..
इतने में दरवाजे पर दस्तक होती है ..
शोभा दरवाजा खोलने जाती है तो देखती हैं कि सामने रिक्शे पर 25-25 किलो की दो बोरी आटे की आई हैं जो कि शोभा ने खुद मंगवाई थी।
यह देखकर शोभा उस रिक्शेवाले से बोली..
क्या आप यह बोरियांँ अंदर रख देंगे। यह सुनकर वह बूढ़ा रिक्शावाला बोला नहीं मेम साहब मैं नहीं रख पाऊंँगा।
यह सब घर के अंदर खड़ा जीतू देख रहा था।
वह झट दौड़कर शोभा देवी से बोला....
आंटी लाइए में रख दूंँ। मैं तो इतना बोझ रोज उठाता हूंँ। और वह फुर्ती से दौड़ता हुआ 25 किलो की बोरी लेकर शोभा देवी के घर की सीढ़ियाँ ऊपर चढ़ता हुआ रख आया और दोबारा फिर उसी फुर्ती से दौड़ता हुआ आया और दूसरी बोरी भी लेकर रख कर हाथ झाड़ता हुआ आ खड़ा हुआ। यह देखकर शोभा देवी जीतू से बोली..
क्या तू मेरे पास रहेगा। मेरे पास बहुत से बच्चे आते हैं पढ़ने। मेरा यही काम है जो गरीब हैं। उनको मैं निशुल्क शिक्षा देती हूंँ और तुम भी मेरे पास रह कर वह शिक्षा ग्रहण कर सकते हो और एक अच्छी जिंदगी जी सकते हो। यह सुनकर जीतू कहने लगा.. यदि मैं पढ़ाई लिखाई में लग जाऊंँगा तो मेरे घर में मेरी मांँ की देखभाल कौन करेगा। यह सुनते ही शोभा देवी बोली..
क्यों अभी तुम यहांँ हो तो कौन देखभाल कर रहा है..!!
यह सुनकर जीतू बोला..
आंटी पढ़ने लिखने का मेरा तो बहुत बड़ा सपना है और यह सब जब मेरे नसीब में नहीं है तो मैं मजदूरी करता हूंँ जिससे कुछ कमा लेता हूंँ। मैं बचाए हुए पैसों से ही सोच रहा था।मैं अपनी मांँ को यही ले आऊंँगा और हम दोनों यहीं रहेंगे।
यह सुनकर शोभा देवी बोली..
तो ठीक है..तुम अपनी मांँ को ले आओ यहीं पर।
वह.मेरे पास रहेंगी और यह तुम्हारा सपना है पढ़ाई का.. उससे बड़ा मेरा भी सपना है कि मैं गरीब बच्चों को शिक्षा दूंँ और अगर इन्हीं बच्चों में से कोई अच्छा इंसान बन जाता है तो समझो मेरा यह देखा हुआ ख्वाब साकार हो जाएगा। मैंने अपनी पूरी जिंदगी इसी काम को समर्पित की है। यह सुनकर जीतू बोला जी मैं अपनी मांँ को यही आपके पास ले आऊंँगा। तब मेरे लिए सब आसान हो जाएगा और दूसरे ही दिन जीतू गांँव से अपनी मांँ को लेकर आ गया।शोभा देवी ने जीतू की मांँ को सब कुछ बताया।
शोभा देवी की बातें सुनकर जीतू की मांँ बहुत खुश हो गई। और उसने शोभा देवी से विनम्र प्रार्थना की कि दीदी मुझे आप अपने पास रख ले। मैं आपका घर का कामकाज संँभाल लूंँगी और आप बच्चों को शिक्षा दीजिए क्योंकि यदि आप की दी हुई शिक्षा से मेरा जीतू कुछ बन जाएगा तो मेरी जिंदगी स्वार्थ हो जाएगी। हमने बहुत गरीबी देखी है। इसकी जिंदगी मजदूरी में ही बीती है।
हांँ पढ़ने में यह बहुत अच्छा था। लेकिन स्थिति ने हमें इसी मुकाम पर लाकर छोड़ा। कमाई का कोई जरिया ना होने के कारण मजदूरी के पैसों से ही काम चलाते हैं।
यह सुनकर शोभा देवी बोली..
आज से यह सब काम बंद।अब जीतू केवल पढ़ाई करेगा और तुम मेरे घर का काम देखो जिससे मैं इन बच्चों को शिक्षा दूंँगी और तरह-तरह के काम से सिखाऊंँगी। जिससे यह स्वाबलंबी होकर अपने पैरों पर खड़े हो सके। समय ने करवट ली और जीतू बहुत प्रखर बुद्धि का था। वह पढ़ाई में अव्वल निकलता चला गया और अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होकर सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करने लगा। उसकी दिन रात की कड़ी मेहनत ने रंँग दिखाया और वह सरकारी नौकरी के लिए चुन लिया गया। यह देखकर शोभा देवी और जीतू की मां बहुत खुश हो गए। मानो उन सब के आंँखों का ख्वाब आज पूरा हो गया।
सफलता की हर सुबह उन्हें अच्छी जिंदगी देने को तैयार थी...।
सच बात है......
शिक्षा क्या नहीं कर सकती !
लगन मेहनत इंसान को जमीन से उठाकर आसमान पर बिठा सकती है। यदि मनुष्य अपनी पूरी ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा के साथ अपने लक्ष्य को पाने के लिए दिन रात एक कर दे तो ऐसा कोई मुकाम नहीं जो हासिल ना हो पाए....।
आज जीतू के लिए यह पंक्ति बिल्कुल सटीक बैठती है..
खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से पूछे बोल तेरी रज़ा क्या है।