बारिश
बारिश
अल्हड़ सी मंजरी खेतों की मेड़ों पर दौड़ती चली जा रही थी.. कभी खेतों की बालियों से बातें करती... कभी धनिया पुदीना को पुचकार लेती..
और यही कहती हुई सब को एकटक देखते हुए फिर अचानक खड़ी हो जाती...
देखा ..आज भी काले बादल घुमड़ कर केवल गर्जना करके चले गए.. तुम लोगों को एक बूँद पानी भी नहीं नसीब हुआ....।
पिछले एक साल से ऐसा ही हो रहा है ...
लेकिन चिंता मत करो ..ओ खेतों की बालियों... ओ मेरे खेतों की साग सब्जियों और ऊपर बैठी जामुन के पेड़ पर गौरैया.. जिसका उसने नाम टपक रखा था..। उस टपक को भी अपनी बातों में लपेट कर कहती..
इंद्रदेव अब तो तरस करो और बारिश कर दो... यह कहते हुए फिर से वह हँसते हुए मेड़ों पर वापसी की ओर दौड़ने लगती..।
घर आकर वह फिर से वही चाक घुमाने लगती... जिस पर वह अपने हाथों से सुंदर-सुंदर कुल्हड़ बनाती और उन्हीं कुल्हड़ में वह हर आने-जाने वाले को चाय पिलाती बदले में उसे कुछ पैसे मिल जाते...।
इसी सबसे रामदेव ..जो मंजरी का पिता थे। उन दोनों का जिंदगी का गुजारा चलता..।
आज फिर से वह खेतों की मेड़ों पर दौड़ती हुई कहती जा रही थी..
ओ मेरी बालियों ..ओ मेरे खेतों... बताओ.. तुम सब कैसे हो... मुझे पता है इस कड़ी धूप और गर्मी से तुम्हारा हाल बेहाल है ..लेकिन चिंता मत करो..।
मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना रोज करती हूँ .. इतने में ही वह गौरैया उड़कर मंजरी के पास आ जाती है.. अरे टपक तुम कैसी हो गौरैया को देखते ही तुरंत मंजरी बोली ...
गोरैया कभी मंजरी के कंधे पर बैठ जाती.. तो कभी उसके हाथों पर.. मंजरी उसे बड़े प्यार से सहलाते हुए कहती है..
अरे टपक आओ तुम मेरी हथेली पर ..मुझे पता है तुम्हें प्यास लगी है और वह अपनी हथेली पर अपनी टपक गौरैया को लेकर दौड़ती हुई उसी तालाब के पास जाती है.. जहाँ पानी खूब लबालब भरा रहता था। लेकिन इस चिलचिलाती गर्मी से इस बार वह तालाब भी सूख कर आधा रह गया था । लेकिन मंजरी उस तालाब के ढलान पर धीरे-धीरे उतरते हुए अपनी टपक गौरैया की चोंच को थोड़ा झुका कर उसे पानी पिलाती है..।
जिससे सुस्त गौरैया चहक उठती है और उसकी आंँखों में चमक आ जाती है..। मानो वह अपनी भाषा में मंजरी को धन्यवाद करते हुए कह रही हो कि मुझे प्यास लगी थी..। अब मेरी प्यास इस पानी से मिट गई और उसे धन्यवाद देती हुई बहुत खुश हो रही है..। बार-बार वह चूँ-चूँ करके आवाज़ कर रही है..।
उसे इस ताजगी से भरा देख मंजरी बहुत खुश होती है..।
इसी तरह से कुछ दिन बीत गए..
लेकिन आज अचानक सुबह से ही बादलों की गड़गड़ाहट बहुत तेज थी। काले बादलों ने सब तरफ अंधेरा सा कर दिया..। यह देखते ही मंजरी बहुत खुश हो गई और वह फिर से उन्हीं मेड़ों पर दौड़ कर खेतों को संदेशा देने चल पड़ी..
इतने में ही इतनी तेज बारिश शुरू हो गई कि हर तरफ पानी ही पानी दिखने लगा । जरा देर में सब तरफ जैसे पानी से खेत डूबने लगे। यह देख मंजरी बहुत खुश हो गई और वह अपने प्यारे खेतों के बीच नाचने लगी और सबसे चिल्ला चिल्ला कर अपनी खुशी का इज़हार करने लगी..
मेरे खेतों की बालियों देखो... मेरी प्रार्थना रंग लाई..!!!
देखो कैसी तेज बारिश हो रही है और वह उन्हीं खेतों के बीच में नाचने लगी । बरसती हर बूँदों को अपनी हथेलियों पर लेकर खूब दूर झटक देती। कभी उन्हीं बूँदों से बातें करने लगती। मंजरी को बारिश शुरू से ही बहुत पसंद थी।
आज वह मानो बरसती हर बूँदों को अपने गले लगा रही थी... और उससे कहती जा रही थी..
ओ बरखा रानी तुम हो मेरे दिल की प्यारी महारानी..
तुम जल्दी जल्दी आया करो यूँ ना तरसाया करो..
तुम्हारे आने से ही खेत सोना उगलेंगे होगी नई कहानी
तुम्हें ही तो धरती को धानी चुनर है पहनानी..
इतने में टपक गौरैया भी उसकी हथेली पर आकर बैठ गई। लेकिन तेज बारिश होने के कारण उसके पंख भीग गए..। पता नहीं क्यों ..आज वह गौरैया भी मंजरी के साथ मस्ती करने को आतुर थी.. इतने में मंजरी ने एक केले के पत्ते को तोड़कर बहते पानी में रखकर उस पर गौरैया को बैठा दिया । अब गौरैया और मंजरी दोनों साथ-साथ खेल रहे थे और इस बारिश का आनंद ले रहे थे..।
.. अब यह बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। मंजरी और गौरैया दोनों पानी में बहुत देर भीगे हैं। जिससे दोनों को ठंड सी लग गई..। आज मंजरी गौरैया को भी अपने साथ-साथ घर ले आई..। घर आते ही उसके पिता कहने लगे.. मंजरी तू कहाँ गई थी..??
इतना भीग कर आई है.. तुझे बुखार हो जाएगा ..।
यह सुनते ही मंजरी अपने बाबा की बात को टालते हुए कहती है ..ना बाबा ..मुझे बुखार नहीं होगा ..।
ठंड भी नहीं लगेगी । अभी मैं अपनी जादुई चाय बनाती हूँ और वह झट से जुट गई.. चाय बनाने..।
देसी अदरक की महक पूरे घर में महक उठी... जैसे ही उसने अंगीठी पर.. चाय का पानी चढ़ाया.. सारी सामग्री डालने के बाद जैसे ही दूध डाला। चाय का तुरंत कड़क रंग आ गया और वह भी अपनी मस्ती में उबलने लगी..।
पास बैठी गौरैया भी बार-बार अपने पंख झटक रही थी..। जिससे पानी की बूंदें हर तरफ फैल रही थी। यह देख मंजरी बहुत खुश हो रही थी..। जरा देर में चाय बन कर तैयार हो गई और फिर उसी चाय को पीते ही मंजरी की सारी ठंड गायब हो गई और उसने एक कटोरी में धीरे-धीरे अपनी टपक गौरैया को भी पिलाया.. चाय पीते ही वह भी फुर्र-फुर्र हर तरफ उड़ने लगी..।
यह देख मंजरी के पिता बोले..
अरे वाह..! मंजरी तेरी चाय में तो बड़ा जादू है..!!
यह सुनकर मंजरी बोली बारिश में चाय का मजा ही कुछ और है बाबा ..इसी बात पर आप भी लो और वह अपने पिता के हाथ में चाय का कुल्हड़ थमाते हुए बोली..।
यह सुनते ही मंजरी के पिता बोले..
चल आज अपनी दुकान भी अच्छी चल जाएगी..।
देख बाहर कितने लोग खड़े हैं। यह सुनकर मंजरी बहुत खुश हो गई और वह बड़ी फुर्ती से सभी के लिए चाय बना कर देते हुए कहती है.....
यह लो बाबूजी मेरे देसी कुल्हड़ की चाय के क्या कहने..
जो भी पिए बार-बार वह आए यहीं पीने के बहाने..
अब बारिश भी थम रही थी... मानो जाते जाते वह यही कह रही थी.....
फिर आऊँगी तुम्हारे खेतों को हरा-भरा करने ..और तुम्हारी अँगीठी पर चाय की चुस्कियों को बढ़ाने..।
मंजरी अब भी छिटपुट गिर रही फुहारों को अपने हाथों में लिए उन्हीं बूँदों से बातें कर रही थी.. जो जाते-जाते उसके खेत और उसकी चाय की दुकान की बरकत को हरा भरा कर गई थी..।
समाप्त..