जो उसी प्रकार जोर-जोर से अपने पत्ते हिलाकर प्रसन्न हो रहा है। जो उसी प्रकार जोर-जोर से अपने पत्ते हिलाकर प्रसन्न हो रहा है।
जैसे पतझड़ के पत्तें...लावारिश...नहीं– नहीं खाक होते हुए । जैसे पतझड़ के पत्तें...लावारिश...नहीं– नहीं खाक होते हुए ।
लेखक: सिर्गइ नोसव अनुवाद: आ. चारुमति रामदास लेखक: सिर्गइ नोसव अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
लेकिन इस चिलचिलाती गर्मी से इस बार वह तालाब भी सूख कर आधा रह गया था लेकिन इस चिलचिलाती गर्मी से इस बार वह तालाब भी सूख कर आधा रह गया था
" अगर पेड़ की इतनी लालसा है तो बाहर पार्क में क्यों नहीं चले जाते?" " अगर पेड़ की इतनी लालसा है तो बाहर पार्क में क्यों नहीं चले जाते?"
धीरे-धीरे उसे मीठे बोल का महत्व समझ आने लगा धीरे-धीरे उसे मीठे बोल का महत्व समझ आने लगा