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Charumati Ramdas

Horror Crime

3  

Charumati Ramdas

Horror Crime

धनु कोष्ठक - ४

धनु कोष्ठक - ४

9 mins
184

लेखक: सिर्गइ नोसव 

अनुवाद: आ. चारुमति रामदास 

18.57

 “नहीं, बस, कॉफ़ी के बदले ग्रीन टी – प्लीज़.”

 “नींद डिस्टर्ब हो गई है?” ‘तालाब’ ने फ़ौरन पहचान लिया.

होटल के रेस्टॉरेंट में छोटी सी मेज़ पर बैठते हैं.

कपितोनव का अपनी अनिद्रा के बारे में विस्तार से बताने का कोई इरादा नहीं है.

“उम्मीद करता हूँ कि आरामदेह कमरे से बाहर खींच कर लाने के लिए आप मुझसे नाराज़ नहीं हैं? शायद, आप ऑपेरा सुनना चाहते थे? दूसरे अंक में पहुँच जाएँगे, समझ लीजिए कि पहला तो गया.”

“नहीं, नहीं, मैं ऑपेरा का शौक़ीन नहीं हूँ.”

वेट्रेस चीनी की केतली ले आई.

कपितोनव ग़ौर करता है कि अगर केतली को ढक्कन के बल उलटा कर दिया जाए, जिससे उसका पेंदा ऊपर आ जाए और टोंटी को अपनी ओर रखा जाए, तो वह किसी हद तक ‘तालाब’ के चेहरे जैसी लगेगी. सुस्ताई हुई नाक, गोल-गोल गाल, एकदम समाप्त होता हुआ माथा, जैसे ‘तालाब’ चौबीसों घण्टे सिर के बल खड़ा रहा हो. खोपड़ी पर बाल सिर्फ समकोण बनाती हुई छोटी-छोटी मूँछों के रूप में थे, जैसे ‘तालाब’ की नाक के नीचे कोई टेप चिपका दिया हो. मगर उसकी आँख़ें बड़ी ज़िन्दादिल थीं और नज़र – पैनी.

हो सकता है कि बाथ-हाऊस में नंगा ‘तालाब’ विदूषक के रूप में चल जाता, मगर यहाँ काले कड़क सूट में, गहरे लाल वास्कट में, जिसके नीचे से बैंगनी टाई गुज़र रही है, वह बिल्कुल लॉर्ड जैसा लग रहा था.

 “तो, एव्गेनी गिन्नादेविच, क्या हाल हैं?” ‘तालाब’ ने दिलचस्पी लेते हुए पूछा. “प्रगति कैसी है, येव्गेनी?”

 “प्रगति से कोई शिकायत नहीं है, वलेंतीन ल्वोविच. सब ठीक है.”

 “समझ गया. यहाँ निमंत्रित किये जाने से आपको आश्चर्य तो नहीं हुआ, येव्गेनी गिन्नादेविच?”

 “आश्चर्य तो हुआ.”

 “ ‘काला-वन’ 8  व्यक्तिगत रूप से आपको बुलाने के पक्ष में था. उसने ज़ोर दिया, मगर प्रस्ताव मैंने रखा. क्योंकि आपके ‘आइटम’ के बारे में मुझे क्रूप्नोव ने बताया था. क्रूप्नोव की याद है?”

 “हाँ, उसने टूरिस्ट-सेन्टर में प्रोग्राम किया था, हम अक्टूबर में वहाँ मिले थे.”

 “वह तो – ठीक ठाक है, वह रिंग्स के करतब दिखाता है. हाथ का लचीलापन, जैसा कहते हैं. मगर आप, मतलब, सीधे दिमाग़ से, बुद्धि से, है ना? वह बहुत प्रभावशाली था, मगर हमारे दर्शक को आश्चर्यचकित करना मुश्किल है.

 “वो, वहाँ एक कॉमन मेज़ थी,” कपितोनव पिछले साल के प्रसंग को याद करते हुए कहता है, “आपका क्रूप्नोव आराम फ़रमा रहे लोगों के पास बैठ गया, मैंने भी करामात दिखाई. ऐसे ही, उत्सुकतावश.”

 “मतलब, व्यावसायिक प्रदर्शन नहीं करते हैं.”

 “बेशक, नहीं. ऐसे ही कभी-कभी मेज़ पर बैठे-बैठे, ग्रुप में.”

 “मगर मेज़ पर बैठे-बैठे भी व्यावसायिक रूप से किया जा सकता है. आजकल तो इसीका ज़्यादा चलन है. कॉर्पोरेट्स माइक्रोमैजिशियन्स को ऐसे ही बुलाते हैं. मेज़ पर ही, ग्रुप में बैठे-बैठे”.

 “ओह, तो यही हैं ‘माइक्रोमैजिशियन्स’? पहले कुछ और नाम था...”

 “प्रेस्टिडिजिटेटर्स... मगर, लगता है कि ये नाम पसन्द नहीं था. मगर ‘माइक्रोमैजिशियन्स’ – ख़ुद ब ख़ुद ज़बान से उछलता है. नौजवानों को, पता है, प्रेस्टिडिजिटेटर्स कहलाना पसन्द नहीं है, उसमें कोई प्रेस्टिज नहीं है, वे तो ये शब्द कहना भी नहीं जानते, देखिए, आप भी तो भूल गए...मगर, माइक्रोमैजिशियन्स, सबको अच्छा लगता है. ये कब का प्रचलित हो गया है. काफ़ी समय से. मगर हम, वैसे नहीं हैं, मतलब - माइक्रोमैजिशियन्स- प्रेस्टिडिजिटेटर्स, हम - काफ़ी विस्तृत, विस्तृत हैं...तो आप, मतलब, सोची हुई संख्या बूझ लेते हैं?”

 “दो अंकों वाली.”

 “आप तो मैथेमेटिशियन हैं?”

 “हाँ, मानविकी के विद्यार्थियों को लेक्चर्स देता हूँ...और, जहाँ तक इस करामात का सवाल है, इसमें किसी ख़ास मैथेमैटिक्स की ज़रूरत नहीं है.”

 “ऐसे कैसे नहीं है, अगर संख्या मैथेमैटिकल है? या, कैसे? आप मुझे दिखाइए, डेमो बताइए. क्या अभी कर सकते हैं?”

 “आसान है. मन में एक संख्या सोच लीजिए, दो अंकों वाली.”

 “ तीन अंकों वाली नहीं चलेगी?”

 “दो अंकों वाली. तीन अंकों वाली से नहीं होता. दस तक की संख्या भी ले सकते हैं, मगर तब उस संख्या को टेलिफ़ोन नंबर की तरह सोचना पड़ेगा, जैसे – 07, 09.... दो अंकों वाली सरल हैं, ज़्यादा समझ में आती हैं.”

 “ठीक है. सोच ली.”

 “उसमें नौ जोड़िये.”

 “एक सेकण्ड. जोड़ लिये.”

 “सात घटा दीजिये.”

”घटा दिये.”

 “आपकी संख्या थी 36”.

 “नॉट बैड. नॉट एट ऑल बैड. मगर ये जोड़ना और घटाना क्यों? मगर, मैं ये किसलिए पूछ रहा हूँ. ये तो आपका सीक्रेट है.”

 

”ओह नहीं, कोई सीक्रेट-वीक्रेट नहीं है, सिर्फ इसके बिना ये होता नहीं है.”

 “शायद, क्यों कि मैं ताश के पत्तों पर काम करता हूँ. आप तो जानते हैं कि मेरी मुख्य ख़ासियत - प्लेयिंग कार्ड्स हैं? इसीलिये, हाँ?”

 “क्या – इसीलिये?”

 “36. क्योंकि एक साधारण पैक में 36 पत्ते होते हैं. मैंने नहीं सोचा, ये अपने आप सोच लिया गया.”

 “मुझसे किसी ने नहीं कहा कि आप पत्तों पर काम करते हैं. मुझे कैसे मालूम कि आप ताश के पत्तों पर या हैट से निकले ख़रगोश पर काम करते हैं”

 “मूलतः ताश के पत्तों पर. ख़रगोश – एकदम अलग विधा है. हालाँकि, पता है, मैं चूहों पर भी काम करता हूँ. मेरी ज़ूज़्या सारे पत्ते पहचानती है. एक-एक पत्ता! कभी देखिये ज़ूज़्या को. चलिए, एक बार और. मैंने सोच लिया.”

 “आठ जोडिए.”

 “आहा, अब आठ हो गए.”

 “दो घटाइये.”

 “घटा दिये.”

 “54”.

 “क्योंकि ये है ताश का पूरा पैक, दोनों जोकरों के साथ. मैं तो फिर से उलझ गया.”

 “आप हर संख्या को ताशों से ही जोड़ देते हैं.”

 “ भाड़ में जाए! ये है करामात! आइडियोमोटोरिक्स, सब साफ़ है.”

 “नहीं, यहाँ कुछ और है.”

 “हाँ, मेरे चेहरे पे सब लिखा है. आप, बस उसे पढ़ना जानते हैं. मैं पार्टीशन के पीछे रहूँगा, तब कुछ नहीं हो सकेगा”.

 “हो जाएगा.”

 “ठीक है, हम जाँच करेंगे... पक्का? मगर...काम की बात, सहयोगी. मैं चाहता हूँ कि आप हमारे साथ रहें, न कि उन मुफ़्तख़ोर बदमाशों के साथ, जो गिल्ड (व्यवसायी-परिषद) में सत्ता के पीछे भागते हैं. याद रखिये: ‘काला-वन', कोई और नहीं. उसे पकड़े रहिये. वो – हमारी पार्टी का है. और हमें किसी भी क़ीमत पर अपने आदमी को प्रेसिडेंट चुनना है. अगर ज्युपितेर्स्की का आदमी सत्ता में आ जाता है, तो हम सब ख़तम हो जाएँगे. गिल्ड के लिए ये विनाशकारी होगा. देखिए, किस किसको उन्होंने बुलाया है. आपने देखा है? – उसने ब्रीफ़केस से कॉन्फ्रेन्स के सदस्यों की सूची वाला ब्रोश्यूर निकाला – ये सब कमीने हैं! कम्पार्टमेंट-चीटर्स! पढ़िये: ‘ताश के पत्तों को किसी भी तरह से रखिए, मास्टर जीतेगा’! ये आपको कैसा लगा? ‘मास्टर’. मैं ख़ुद भी ताश के पत्तों पर काम करता हूँ, और मैं धोखेबाज़ों और जादूगरों को पहचान सकता हूँ. और चीज़ों में भी ऐसा ही है! जेबक़तरे अपने आप को माइक्रोमैजिशियन्स-मेनिप्युलेटर्स कहते हैं. और वो ऐसा भी दिखाते हैं कि हमारे संगठन में उनका एक ख़ास वर्ग है! जानते हैं, जहाज़ को पानी में जैसे छोड़ेंगे, वह वैसे ही तैरेगा. जैसी नींव रखेंगे, वैसी ही ज़िन्दगी मिलेगी. यहाँ हर वोट महत्वपूर्ण है. इसीलिए मैं आपके साथ यहाँ हूँ. क्या मैं आप पर निर्भर रह सकता हूँ?”

 “आपके यहाँ तो मामला बेहद उलझा हुआ है...मैंने सोचा भी नहीं था.”

 “सोचिए भी नहीं. आपका पसन्दीदा सब्जेक्ट है – मेन्टल मैजिक. बेकार की बातों के बारे में आपको सोचना भी नहीं चाहिए. आपके बारे में सब कुछ सोच लिया गया है. आप सिर्फ मुझे पकड़े रहिए और किसी पे भी यक़ीन मत कीजिए. सिर्फ मुझ पर, मतलब, मेरे ज़रिए – ‘काला-वन’ पर”.

 “आप मेन्टल मैजिक कह रहे हैं? क्या इसे इस नाम से जाना जाता है?”

 “तो, फिर और कैसे? मेन्टल मैजिक. और, अगर आपके पास लोग आएँ और आपको पटाने की कोशिश करें, कि किसके साथ दोस्ती करनी चाहिए, किसके ख़िलाफ़ वोट देना है, तो मेरी बात याद रखिए: यहाँ किसी पर भी यक़ीन नहीं करना है, सिर्फ मुझ पर और मेरे ज़रिए काला-वन पर.”

 “मैंने डेलिगेट्स की लिस्ट देखी है. असाधारण हैं...अगर नरमाई से कहूँ तो.”

 “साधारण ही ज़्यादा हैं. और, असाधारण कौन हैं?”

 “कोई नेक्रोमेंसर ...”

 “महाशय नेक्रोमेंसर,” ‘तालाब’ दुरुस्त करता है. “ये हमारा आदमी है, वो सही वोट देगा...”

“काल-भक्षक...”         

 “अरे, आप तो रिमोटिस्ट्स के बारे में कह रहे हैं,” ‘तालाब’ मुँह टेढ़ा करते हुए कहता है. “एक तीसरा भी है, वो भी आज ही आया है.”

 “हाँ, मैंने उसे देखा है. उसने रिसेप्शन पे रजिस्ट्रेशन करवाने से इन्कार कर दिया”.

 “क्या आपने देखा कि वो कहाँ गया?”

 “बाहर सड़क पे.”

 “सड़क पे किस तरफ़? हमने उसे खो दिया.”

 “पता नहीं, बस, चला गया.”

 “मैंने उसे बनाया है. कई लोगों को पसन्द नहीं आया है कि मैंने उन्हें बुलाया है. आपको वह कैसा लगा?”

 “मेरे ख़याल से, पागल है.”

 “सभी रिमोटिस्ट तिलचट्टों जैसे हैं...”

 “माइक्रोमैजिशियन्स भी?”

 “इसके विपरीत हैं, माक्रो. मगर हम सब...वो भी, और आप भी, और मैं, और हमारे अन्य भाई-बन्धु...हम सभी नॉनस्टेजर्स हैं....आप, बेशक, जानते हैं कि नॉनस्टेजर्स कौन होते हैं?...”

 “कौन?”

 “नहीं जानते?...नॉनस्टेजर्स की कॉन्फ्रेन्स में आए हैं और नहीं जानते? ख़ुद नॉनस्टेजर हैं और नहीं जानते?”

 “ओह, तो मैं नॉन्स...नॉन्सेन्स...टे?...”

 “नॉनस्टेजर. मतलब, जिसे कम से कम सामान की ज़रूरत होती है या किसी सामान की ज़रूरत नहीं होती – वो नॉनस्टेजर्स होते हैं. फिर वो माइक्रो हैं या माक्रोमैजिशियन्स हैं ये महत्वपूर्ण नहीं है. मेन्टलिस्ट्स भी वैसे ही होते हैं. आपको तो किसी विशेष सामान की ज़रूरत नहीं है ना? हाँ, अगर, खोपड़ी वाले डिब्बे की बात न करें तो?...”

 “मुझे विश्वास नहीं है कि खोपड़ी वाले डिब्बे की भी ज़रूरत है.”

 “चलो, इस बारे में हम और बात करेंगे. बिल, प्लीज़,” उसने वेट्रेस को बुलाया.

 “और, आपके यहाँ ये बॉम्ब का क्या किस्सा था?” कपितोनव पूछता है.

”बॉम्ब तो नहीं था, मगर ग़ैरकानूनी तरीक़े से कॉन्फ्रेन्स में रुकावट डालने की कोशिश की गई थी. मगर हम इसे आसानी से नहीं जाने देंगे. वैसे, ऑपेरा के बाद डिनर है – ना जाने की अपेक्षा देर से जाना अच्छा है. तो, आप दूसरे अंक तक पहुँच जाएंगे. प्रोग्राम होटल में ही हो रहा है. शायद, गाना शुरू भी हो गया.”

 “कुछ सुनाई तो नहीं दे रहा.”

 “आपके कान बेहद संवेदनशील हैं...जाइए. वहाँ संगीत की आवाज़ में नींद आ जाएगी.”

 “क्या आप जा रहे हैं?”

 “नहीं, मैं थियेटर नहीं जाता. सर्कस भी नहीं जाता.

 “ऑपेरा का नाम क्या है?”

 “केग्लिओस्त्रो”.       

 “ ऐसे किसी ऑपेरा के बारे में नहीं जानता. क्या ये उसीके बारे में है?”

 “ शायद. और, क्या आप दूसरे ऑपेराज़ को जानते हैं? सांस्कृतिक कार्यक्रम की ज़िम्मेदारी मेरी नहीं है. किसी विषय को ध्यान में रखकर बनाया गया है. फिर भी – हमारा आदमी है.”

आती हुई वेट्रेस अभी फ़ोल्डर मेज़ पर रखने भी नहीं पाई थी – ‘तालाब’ पलक झपकते ही उसके हाथ से फ़ोल्डर छीन लेता है और, बिल बाहर निकाले बिना, हौले से जिल्द के नीचे कुछ घुसा देता है और फ़ौरन फ़ोल्डर लौटा देता है. 

ऐसी फ़ुर्ती से चौंक गई वेट्रेस कुछ पल उससे मुँह मोड़ने वाले ‘तालाब’ के सामने बुत बनकर खड़ी रहती है – फिर संभलकर मुड़ती है और काऊन्टर की ओर चली जाती है.

 “सुनिए,” आईने में दूर जाती हुई वेट्रेस की ओर देखते हुए कपितोनव कहता है, “ये यहाँ इतने सारे आईने क्यों हैं? मेरे कमरे में तो ज़रूरत से ज़्यादा हैं.”

 “हॉटेल के पार्टनर्स में से एक – ‘नेव्स्की मिरर्स’ कम्पनी है.”

 “आह, तो ये बात है...मगर, फिर भी, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि मेरे एक वोट में क्या रखा है? या फिर आप सबको ऐसे ही....पटाते हैं?”

 “पटा रहा हूँ सिर्फ आपको, क्योंकि आप आख़िरी हैं. बाकियों को, जिनकी ज़रूरत है, सब पटाए जा चुके हैं.”

वेट्रेस फिर से फ़ोल्डर लेकर आ गई, चेहरे पर परेशानी के लक्षण थे.

 “माफ़ कीजिए,” वह ‘तालाब’ से मुख़ातिब होती है, जो उसकी तरफ़ देख ही नहीं रहा है, “मगर इसमें पैसे नहीं हैं...”

 “तो फिर क्या है?” सिर घुमाए बिना ‘तालाब’ पूछता है. 

 “ कार्ड 9 (यहाँ नक्शे से तात्पर्य है – अनु.) ...”

 “अफ्रीका का?”

 “ नहीं...”

 “यूरोप का?”

 “नहीं...खेलने वाला कार्ड...”

 “हुकुम का?... चिड़ी का?...ईंट का?...”

 “पान की छक्की...” वेट्रेस बुदबुदाती है और कपितोनव को खुला हुआ फ़ोल्डर दिखाती है, क्योंकि ‘तालाब’ पहले ही की तरह दूसरी ओर देख रहा है.

कपितोनव वाक़ई में पान की छक्की देखता है.

 “बन्द कीजिए,” अनिच्छा से ‘तालाब’ कहता है. “इधर दीजिए. ये क्या है?”

फ़ोल्डर को हथेलियों पर संभालते हुए, वह बिना खोले ही, उसे मेज़ पर रख देता है.

 “आप मेरी खिंचाई क्यों कर रही हैं,” ‘तालाब’ कहता है, “सब वैसा ही है जैसा होना चाहिए.”

वेट्रेस फ़ोल्डर खोलती है और उसमें पान की छक्की के बदले हज़ार रूबल्स का नोट देखती है. कपितोनव भी, जिसे गवाह बनाया गया था, यही देखता है.

 “नो चेंज,” ‘तालाब’ उठता है. “चलिए, साथी.”

 “ऐसा कैसे?” वेट्रेस उत्तेजना से पूछती है.



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