मेरा पिया घर आया..
मेरा पिया घर आया..
"अरे,, चलना साथ.. क्या करेगी सारा दिन घर में अकेली".. पैकिंग करते हुए माँ ने कहा..
"हमें नहीं जाना माँ.. आप लोग जा रहे हैं न.. अब सब का जाना जरूरी है क्या.." हम ने जरा ठुनक कर कहा..
"ना जाने अकेले रहना क्यों पसन्द है इस लड़की को.. लोगों से मिलने जुलने में क्या बुराई है,, तू इसे कुछ समझाता क्यों नहीं.. अब भाई की सिफारिश ली गई"..
"ओह हो माँ,, रहने दो न,, उसका दिल नहीं है कहीं जाने का तो आप जिद कर रही हो.."
"है न गुड़िया.." भाई ने मुस्करा कर हमें देखा..
"ये तुम्हारी गुड़िया बुढ़िया होते आ गई,, तुम्हारे लाड़ प्यार में बिगड़ कर.. करो तुम दोनों अपनी मरज़ी का.."
"अच्छा ठीक है.. अभी आप चले जाओ,, शादी में हम चलेंगे.."
" बड़ा एहसान करोगी,," माँ का मूड कुछ ठीक हुआ..
"गुड़िया"
" जी भाई.."
" एक पार्सल आएगा शायद.. ले लेना ख्याल से.. वैसे घर में ही रहोगी न.. या कहीं जाने का प्लान है.."
"अरे नहीं भाई.. कहीं नहीं जाना है.. हम ले लेंगे आपका पार्सल.."
" अच्छा हम चलते हैं.. मैं रात तक आऊंगा.. माँ का शायद पक्का नहीं है.. ओके. पर खाना मत बनाना.. ठीक है.."
" जी भाई.."
उनके जाने के बाद किचन साफ़ किया.. एक ब्लैक टी बनाई.. और लेकर टीवी के सामने बैठ गए.. माँ की घनिष्ट सहेली की बेटी की सगाई थी.. उनके कोई बेटा नहीं था तो माँ ने भाई को साथ लिया.. हम पर ज्यादा जोर नहीं चलता.. तो हमारी सारी कसर भाई पूरी कर देते हैं.. और हम बच जाते हैं.. सवेरे जल्दी उठकर उनकी तैयारी में हम चाय नहीं पी पाए थे.. न्यूज लगाया.. कि देखे क्या बवाल मच रहा है.. वैसे तो हमारे न्यूज रीडर से हमें सारे जहां की खबरें मिल ही जाती हैं.. इसलिए कम ही देखते हैं.. चाय के खत्म होते तक सारे समाचार खत्म.. मतलब हमारी तरफ़ से.. टीवी बंद किया और रेडियो में एफएम लगा कर काम में लग गए.. अकेले के लिए क्या बनाते.. सोचा जब भूख लगेगी तब देखेंगे.. घर की साफ़ सफाई की जरा विस्तार से... नहाने के लिए जा ही रहे थे कि डोर बेल बजी.. दरवाज़ा खोला तो दूधवाले भैया थे.. दूध लिया और दरवाज़ा बंद करके फिर अपने गंतव्य की ओर.. करीब ग्यारह बजे तक फ्री हुए.. भूख का एहसास हुआ तो सोचा क्या बनाएँ.. वैसे सच है अकेले के लिए कुछ बनाने का मन ही नहीं होता.. आलू बड़े पसन्द है.. तो बस झट से दो आलू की सब्जी और दो रोटी बनाकर खाने बैठे ही थे कि फिर डोर बेल बजी.. लगा कि पार्सल वाला होगा..दरवाजा खोला तो वही था.. बस अब फुर्सत हुए.. क्योंकि अब कोई नहीं आएगा.. दिल भी यहि चाह रहा था.. आज अकेले हम उनके साथ रहना चाहते थे.. कम ही वक्त होता है ऐसे जब हम एकदम तन्हा हों.. और आज ये मौका मिला!
ना जी ना.. कुछ और मत सोचिए.. हमारा मतलब था कि फ्री होकर उनसे कॉल या चैट कर पाएंगे.. और बस जल्दी जल्दी खाना शुरू किया.. एक ही रोटी खा पाए कि फिर दस्तक..
उफ्फ.. अब ये कौन है?? पक्का माधुरी होगी.. अब तय किया कि उस से झूठ बोलेंगे की हमें कहीं जाना है.. और उसे चलता करेंगे.. दस्तक फिर हुई..
"अरे यार आ रहे हैं न..डोर बेल से चिपक गए क्या" कहते हुए दरवाज़ा खोला...
उफ्फ.... ये कोई ख्वाब है.. पलकें झपकाना भूल गए.. दरवाजे को न पकड़े होते तो पक्का गश खाकर गिर जाते... वैसे अच्छा होता गिर जाते तो.. उनकी मजबूत बाहें सम्भाल लेतीं.. हमारी मनपसंद शर्ट,, मतलब ब्लैक शर्ट और नेवी ब्लू जींस पहने जानलेवा मुस्कान के साथ जनाब हमारे सामने थे..
" वापस चले जाएं क्या?? अंदर ही नहीं आने दे रही हो..." मुस्कराते हुए उन्होंने कहा..
"हम अब भी सदमे में थे,,, लगभग हकलाते हुए हमने कहा,, आप,,,, "
"जी हम,, पर लगता नहीं की आपको हमें देखकर कोई खास खुशी हुई है.. इसलिए अब तक द्वार पर ही रोक रखा है.. "
"हमे तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दिया.. आप सच में आए हैं क्या??? "
उन्होंने जोर से हमारे गालों पर चिकोटी काटी..
"आऊच..." हम चिंहुक उठे..
"अनन्या,, यार अब तो अंदर आने दो न.. "
" जी, जी, आइए न.."
हमारी बदहवासी का आलम ये कि हमने उन्हें बैठने के लिए ही नहीं कहा...
"परमीशन हो तो तशरीफ रखें न??"
"आँ,,,, हाँ,, हाँ,, जी बैठ जाइए.. हम जैसे सोते से जागे..."
वो बैठ गए... "अनु तुम भी बैठो न."
"जी,," कहते हुए हम बैठने को हुए तो वो चीख ही पड़े..
"अरे अरे,, गिर जाओगी न,, सोफ़े पर बैठो यार.."
हम सम्भल कर बैठ गए.. हमारी नजरें उन पर से हट ही नहीं रहीं थीं..
"अनु,,, "
"जी,,"
"पानी मिलेगा... "
" जी,,,"
हमने उन्हें अपना खाली गिलास पकड़ा दिया.. अचानक वो उठे,, हमें कांधे से पकड़ कर उठाया और कस कर गले लगा लिया..
"अनु प्लीज़ होश में आओ यार.... ये क्या हुआ तुम्हें.. होश ही खो बैठी हो..."
काफी देर बाद जब हमें सच का आभास हुआ तो अनायास उनसे लिपट गए.. आँखे भर आईं.... और जब भावनाओं का ज्वार थमा,, तब हम ने सवालों की झड़ी लगा दी...
"आप अचानक,, बिना किसी सूचना के.... बताना तो था न"
"अरे अरे,, रुको भई... पहले पानी तो पिला दो यार... कब से खाली गिलास पकड़ा रखा है.."
"उफ्फ... आपको अचानक देखकर तो हम सच में होश खो बैठे.."
"लीजिए पानी,,"
"धन्यवाद,,, "
"अच्छा अब बताइए..."
" हम नागपुर आए थे एक मित्र के मित्र की शादी में.."
"मित्र के मित्र.. ऐसी मित्रता निभाने की आपको क्या सूझी... "
"मित्रता नहीं अनु,, हम अपना प्यार निभाने आए हैं... सिर्फ और सिर्फ तुमसे मिलने... शादी तो एक बहाना है.. इतनी दूर आने के लिए कोई बहाना भी तो चाहिए न.. आज शादी है कल सवेरे जल्दी ही वापसी.. ऐ,, फिर खो गईं... अब क्या हुआ.. खुश नहीं हो क्या,, यूं अचानक आने से.."
"प्लीज़,, ऐसे मत कहिये न.. आपको तो सोचकर ही हम ना जाने कितने खुश हो जाते हैं,, और आज तो आप सामने हैं हमारे.. क्या करें क्या कहें कुछ सूझ ही नहीं रहा.."
"माँ और भाई कहां हैं.. कोई नजर नहीं आ रहे.."
"आज सवेरे ही वे लोग एक सगाई में गए हैं.. भाई आ जाएंगे रात तक..."
"मतलब तुम अकेली हो.. उनके होंठ गोल हुए सीटी बजाने वाले अंदाज में..."
हमने शर्म से नजरें झुका ली..
"अनु.."
"जी.."
"यूं ही सिर झुकाए बैठना है या कुछ कहोगी भी.. "
"आप क्या खाएंगे.."
"उन्हें जोर की हँसी आई.. मुझे दिन रात बुद्धू कहती हो.. पर सबसे बड़ी बुद्धू इस वक्त मेरे सामने बैठी है..."
भूख तो बहुत लगी थी, पर तुम्हें देखकर सारी भूख मिट गई..
"बोलिए न क्या बना दें आपके लिए.."
"जो तुम्हें पसन्द हो..'
"हमारी पसन्द आपको कहां पसन्द आती है.. आप तो मीठा खाते हैं.. हम नमकीन.."
"आज तुम जो बनाओगी वो खा लेंगे..'
"अच्छा.. आप बैठिए,, हम जल्दी से कुछ बनाकर लाते हैं..'
"ओये नकचढी,, हम क्या पागल हैं जो मीलों दूर से सिर्फ तुमसे मिलने आए हैं, तुम रसोई में रहो और हम यहां अकेले बैठे.."
"तो आप टीवी देखिए न.. हम बस अभी आते हैं.."
"नहीं..."
तो..
"हम चलते हैं किचन में.. तुम बनाना हम देखेंगे.. '"
"फिर तो बन गया खाना.. हम बुदबुदाये..'
"क्या कहा तुमने.."
"ना, ना, कुछ नहीं.. ओके चलिए... अब धीरे धीरे हम अपनी रौ में आ रहे थे.. पर अंदर से तो बदहवास थे.."
"दूध तो था ही.. एक तरफ खीर की तैयारी की.. इन्होंने कभी...
पाटवडी नहीं खाई थी शायद... मसाले तैयार थे..तो दूसरे चूल्हे में उसकी तैयारी शुरू कर दी.. हालाकि पराठे और पूरी इन्हें ज्यादा पसन्द नहीं सो चपाती ही बनाने का सोचा.. जल्द बाजी और इनकी मौजूदगी से जरा विचलित हो रहे थे.. इसलिए गर्म बर्तन को हाथ से उठाने की गलती कर गए..
"अनु... ये क्या पागलपन है.. रहने दो कुछ मत करो.. हम बाहर से मंगा लेते हैं खाना.."
"नहीं,, अब ध्यान रखेंगे...'
"प्लीज़ अनु,, मान जाओ न.."
"अच्छा हम वादा करते हैं,, अब कोई गलती नहीं होगी.." हम ने खुद को संयत किया, और पूरे मनोयोग से बनाना शुरू किया..
"ऐ अनु."
"जी.."
"बर्फ है न.. "
"जी,, है तो सही.. पर आप क्या करेंगे.."
बिना ज़वाब दिए इन्होंने फ्रिज से बर्फ निकाल ली...
"क्या करेंगे बताइए न.."
"तुम अपना काम करो..'
हमने भी ध्यान नहीं दिया.. खीर में मेवे डाल रहे थे.. और...
"उफ्फ,,,, ये क्या है."
इनकी शरारत शुरू हो चुकी थी.. पीछे से हमारे कुर्ते के अंदर इन्होंने बर्फ डाल दी..
"आप चाहते हैं या नहीं कि जल्दी किचन से फ्री होकर साथ बैठे..."
"अजी बिल्कुल चाहते हैं..."
"तो आपसे हाथ जोड़कर विनती है कि बस कुछ देर जाकर आराम करिए, सफ़र की थकान मिटा लीजिए,, बाकी..."
"बाकी क्या???"
बाकी बाद में होता रहेगा.. हमारे होंठो पर शायद नटखट मुस्कान थी...
"ओये होए,, बल्ले बल्ले.. जियो सोणियो.." एक जबरजस्त चुम्बन देकर ये चले गए...
इन्हें भगाने का यही तरीका था... हम ने फटाफट सारा खाना तैयार किया.. चावल ये खाते नहीं तो थोड़ी सी वेज बिरियानी बना दी.. सब कुछ तैयार करके इन्हें देखने कमरे में गए तो ये सो रहे थे... कल से सफ़र कर रहे थे.. और सीधे हमारे पास चले आए,, थकान हो गई होगी.. कितनी सुकून की नींद सो रहे थे.. होंठो पर मुस्कान थी जैसे कि कोई प्यारा सा सपना देख रहे थे...
हम ने सोचा तब तक हम खुद को तैयार कर लेते हैं.. हम ने चेंज किया... खुद को जरा सा सँवारा.. और इन्हें जगाने आ गए.. दिल तो बिल्कुल नहीं चाह रहा था,, पर जगाना जरूरी था.. वक्त कम था.. हमने धीरे से उनके बालों को सहलाया... उठिए... खाना खा लीजिए...
"उफ्फ... अनु... ये ख्वाब है या हकीकत.. '
"हकीकत है जनाब... चलिए खाना खा लीजिए.."
"यार तुम भी न... इतनी स्वादिष्ट स्वीट डिश सामने है,, उसे ही खा लेता हूं.. समय की बचत हो जाएगी.."
हमने उनका हाथ पकड़ा,,,, "आप उठ रहे हैं या नहीं,,'
"नहीं,, क्या कर लोगी???"
हम ने जोर से उनका हाथ खींचा... और बदले में उन्होंने हमें..
इतनी समीपता की तो कल्पना भी नहीं की थी... हम उनके सीने में अपना चेहरा छिपाए अपनी धड़कनों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे थे..
"सुनो...'
"जी.."
"तुम कितनी भी संयमित होने का प्रयास कर लो,,,पर तुम्हारी धड़कनों की बेतरतीबी मुझे बखूबी महसूस हो रही है..."
"वो कैसे,,,,'
"बता दूँ,,, सचमुच जानना चाहती हो."
"धत,", कहते हुए हम उठने लगे... पर उनकी बाहों का कसाव और बढ़ गया..
"प्लीज़,, उठिए भी.."
"नहीं,, ऐसे ही लिपटी रहो.. ज्यादा तीन पांच की न तो खाना बाद में,,, पहले तुम्हें ही खा जाऊँगा.. इसलिए ज्यादा कसरत करने की जरूरत नहीं समझीं...
अनु... '
"जी..'
"यार अब ये दूरी बर्दाश्त के बाहर होती जा रही है.."
"तो.."
"जल्दी से मेरी दुल्हन बनकर आ जाओ न..."
"आपको क्या लगता है,, हम नहीं चाहते कि जल्दी मिलें,,, अंगारों पर लोटते है,, जब आपकी याद सताती है.."
भावावेश में हमने कसकर उन्हें पकड़ लिया... दो तड़पते तरसते दिल ने एक दूसरे के दिल की तड़प को महसूस किया..
"अनु,,, चलो खाना खाते हैं.. ' हमारे माथे को चूमते हुए उन्होंने कहा...
बस यही बात है कि हमने उन्हें रब का दर्जा दे रखा है.. हमने उनकी थाली तैयार की...
"अरे इतना सब.... "
"कहां इतना है,,, जल्दी में कुछ कर ही नहीं पाए,,"
एक दूसरे को खिलाते हुए खाना खत्म किया... वक्त बड़ी तेजी से गुजर रहा था...
"अनु अब जाना होगा यार...वहां पहुंचते रात होगी..."
उनके जाने के ख्याल से ही गंगा जमुना बह निकलीं...
"अनु,, प्लीज़,, ऐसे कमजोर मत बनो,, जाते हुए तुम्हें ऐसे देखूँगा तो सफ़र मुश्किल होगा न,,,," फोन पर बात करते हुए जैसे तुम खिलखिलाती हो न,, वैसे ही हँस दो.. तुम्हारी उस खिलखिलाहट से मैं जी उठता हूं.."
"अभी आते हैं,,,," हम ने अपना चेहरा धोया..
"लीजिए,, हाजिर है आपकी अनु.."
" ये हुई न बात,,, सदा ऐसे ही हँसती, मुस्कराती,, खिलती सी रहा करो.. मैं तुम्हारा यहि रूप याद करता हूँ हमेशा.... अच्छा अब इजाजत.. और हाँ सुनो,,"
"जी...."
"माँ और भाई को बता देना की मैं आया था.... भूलना नहीं."
"जी,, बता देंगे..."
जाते जाते एक बार फिर गले लगा कर उन्होंने प्यार किया और चले गए,, जब तक नजरों से ओझल नहीं हुए,, हमारी निगाहें उनका पीछा करतीं रहीं..
अंदर आकर शिव से उनके लिए प्रार्थना की.. जो कि हर पल करते हैं... ऐसी मुलाकात थी हमारी..... एक फिल्मी डायलॉग याद आ रहा है,, जो हमारे रब जी पर सटीक बैठता है..
,,,,, लड़कियां शादी के बाद अपने पति को परमेश्वर मानती हैं..... हम वो खुशनसीब हैं जिसने परमेश्वर को पति के रूप में चुना है,,,,,

