कुछ लिखो
कुछ लिखो
अजीब जिद किए बैठे हो कि कुछ लिखो... वैसे भी दिल दिमाग काम नहीं कर रहा,,, पर दोस्तों को कौन समझाए... खुद तो कुछ करेंगे नहीं, पर सामने वाले के सर पर सवार हो जाते हैं कि लिखो लिखो लिखो...
दिल तो कर रहा है कि हम भी वही करें जो कभी किसी ने किया था,,, ठीक ठीक नहीं पता किसने किया था,, पर क्या किया था ये जरा जरा याद है...
शायद युवराज के किसी वीडियो में देखा था,,, की वो कोई किताब पढ़ रहे हैं, शायद चंपक जैसी कोई कॉमिक्स...
चिड़िया उड़.... पहले पेज से आखिर तक शायद यहि लिखा था और आखिर में लिखा था कि चिड़िया उड़ गई...
वैसे एक बात तो तय है, प्रोफेसर साहब पढ़ेंगे तो कहेंगे कि तुम्हें कुछ याद नहीं रहता, कहानी कुछ और है,,, याद की तो ऐसे कहेंगे जैसे उनकी खुद की याद माशा अल्लाह है,, आए बड़े..
ओह,,, हम शायद फिर भटक गए,,, कोई नहीं,,, वापस आते हैं अपनी जगह,, आना ही पड़ेगा,,, वो छोड़ने वाले नहीं हैं..
यार काफी दिन हो गए कुछ लिखो न...
देखो अमित मुझसे अब नहीं लिखा जा रहा...
अपने दोस्त के लिए इतना नहीं कर सकती हो...
ये खूब कही आपने,, दोस्ती है तो क्या कुछ भी करें..
तुम जानती हो मुझे.. मेरे दिमाग को भी और दिल को भी, कहीं कुछ और हावी हुआ न तो सोच लो...
ओये,, हूल किसे दे रहे हैं आप,,
तुम्हें और किसे,,,, अच्छा चलो प्यार से कह रहा हूं कुछ लिखो..
ओके, हम दोनों का वार्तालाप लिख दें,,
अरे वाह,,, जरूर. मेरे लिए ही तो है,,,
हां सही है,,, कोई पढ़ेगा भी नहीं आपके सिवा..
प्रतिलिपि जी अलग लट्ठ लेकर खदेड़ देंगीं हमें की कुछ भी लिखने के लिए ये कोई तुम्हारी रफ नोटबुक नहीं है..
हे शिव...
ओये अमित,, ये शिव हमारे है,, आप क्यों कह रहे हैं..
हद है,, शिव तो सबके हैं,, देखो साहिबा ज्यादा नखरे मत करो, कुछ भी लिखो,,
ओके ओके.. अरे एक बात तो भूल ही गए... कुछ दिन पहले हमने आपको एक पिक्चर भेजी थी,,, उसके बारे में कुछ कहा नहीं आपने,,,
यार क्या कहता,,, तुम तो जानती हो इस राह में मैं एकतरफ़ा सफ़र कर रहा हूं,, मेरे लिए ये वन वे है...
मतलब??
मतलब ये कि तुम्हारी पिक्चर को देखकर मेरे अन्दर के कवि ने कुछ लाइन लिखी,,,
सच में,,
हां न,,
तो हमें भी बताओ...
नहीं,
क्यों,
तुम नाराज हो सकती हो..
अरे, ऐसा क्या लिख दिया कि नाराज हो जाएंगे....
वही एकतरफ़ा वाली बात,,, दाल गल ही नहीं सकती न,,
बस बस,, हम समझ गए,,आपने जिस मूड में लिखी हो हम दोस्त की तरह पढ़ेंगे.. दिखाओ..
पक्का नाराज नहीं होगीं..
नहीं होंगे.
लो पढ़ो....
संगमरमर सा तराशा चेहरा,
झील सी आंखों की गहराई में,
केवड़े सा कलफ समेटे हुए,
जान ले लेंगे वो, अंगड़ाई में
लबों पे शबनमी बूदों की लड़ी,
और गालों पे सुर्खरू मस्ती,
ताज का भ्रम भी आज टूट गया,
जब से देखा ये, हुस्न की कस्ती,
काश तक़दीर भी पलट जाए,
मैं बटन बन के लगूँ सीने में,
क्या खबर, वो हसीन पल आए,
थोड़ा मकसद तो मिले, जीने में...
हम बेसाख्ता हँस पड़े.. ये क्या है अमित.... हद है आपके मारे भी...
ये गलत है साहिबा,,, किसी के ज़ज्बात की यूं हँसी नहीं उड़ाते..
ओके ओके साॅरी,,, पर आप का कुछ नहीं हो सकता..
कुछ हो या न हो, पर मुझे बेहद सुकून मिलता है..
अमित के जाने के बाद हम सोचने लगे,,, क्या सच में एकतरफ़ा इश्क में सुकून मिलता है..
अमित,,,, एक शानदार इंसान,, और बेहतरीन दोस्त,,,,
पर......... शिव मरज़ी।
