मदद
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गरीबों के लिए मुफ्त में भरपेट भोजन कराने की मुहीम में लोग बढ़ चढ़ कर भागीदारी निभा रहे थे। कोई अनाज पहुंचा रहा था तो कोई सब्जियाँ। किराने का सामान और बर्तन दान एवं चंदे से इकठ्ठा कर लिया गया। भोजन बनाने एवं परोसने वालों की भी कोई कमी नही थी। हर घर से स्वस्फूर्त मदद पहुंचाई जा रही थी। सोशल मीडिया में उक्त मुहीम की बहुत सराहना हो रही थी। स्वयंसेवकगण सेल्फी और दान दाता अपने नाम की सूची से स्वयं को गर्वान्वित महसूस कर रहे थे।
पड़ोस की एक बस्ती से लगभग सभी लोग परिवार सहित भोजन करने नियमित रूप से आने लगे। उस रोज सांझ ढ़लने वाली थी जब एक बुजुर्ग महिला बर्तन समेटते स्वयंसेवकों के पास पहुंची। स्वयंसेवक उसे देखकर अफसोस जाहिर करते हुए बोले - "अरे माताजी आपने देर कर दिया, क्षमा करें भोजन तो समाप्त हो गया।"
वह बुजुर्ग महिला अपने हाथ हिलाते हुए बोली - "नहीं नहीं मैं खाना खाने के लिए नही आई हूँ।"
स्वयंसेवक एवं वहां उपस्थित अन्य जनों ने आश्चर्य से एक दूसरे को देखा। वो बुजुर्ग महिला आगे बोलीं - "बेटा तुम लोग कितना नेक काम कर रहे हो, हमारी गरीबों की बस्ती के सभी लोगों को इन दिनों भरपेट खाना मिलने लगा, भगवान तुम सबका भला करे।"
उनकी सराहना सुनकर वहाँ मौजूद सभी के चेहरों पर सुकून और गर्व के भाव उमड़ पड़े। कुछ युवाओं ने उनकी संतुष्टि भरे चेहरे की फोटो और वीडियो बनाना भी प्रारंभ कर दिया। वो बुजुर्ग महिला खाली पड़े बर्तनों की ओर निहारते हुए बोली - "मैं देख रही हूँ आप सभी कितनी मेहनत और जी जान से लोगों को खाना खिला रहे हैं, मैं लाचार बुढ़िया, आपकी और कोई मदद तो नही कर सकती लेकिन हाँ ये जूठे बर्तन अच्छे से मांज सकती हूँ, लाओ ये बर्तन मुझे धोने दो।"
इतना कहते हुए वो बुजुर्ग महिला बर्तनों के पास जाकर बैठ गई। स्वयंसेवकों ने उसे आप रहने दीजिए कहते हुए अपना संकोच प्रकट किया। वो बुजुर्ग महिला मुस्कुराते हुए हाथ हिलाकर बोली - "जब इतने सारे बेटे काम कर रहे हों तो एक माँ को भी मदद तो करनी ही चाहिए न।"
वहाँ उपस्थित सभी लोग स्तब्ध रह गये। उस बुजुर्ग महिला की सहयोग भावना देखकर उन्हें अपने दान, सेवा और सहयोग पल भर के लिए तुच्छ नजर आने लगे।
