मौत का सच
मौत का सच


सात मंजिला रिहायशी परिसर में निर्माण कार्य चल रहा था मजदूर ईंट लाने ,मसाला बनाने और ईंट जोड़ने का कार्य कर रहे थे ।आज रुकमणी अपनी बेटी नूपुर को लेकर काम पर आई थी नूपुर काम में मां की मदद कर रही थी वह कभी माँ को ईंट देती तो कभी मसाला भरा धमेला,इतनी ऊँची बिल्डिंग में उसे लग रहा था जैसे वो आसमान को छू रही हो,उसे माँ के साथ यहां बहुत अच्छा लग रहा था।दोपहर में सब मजदूर खाना खाकर थोड़ी देर आराम कर रहे थे नूपुर ने भी माँ के साथ खाना खाया और कच्ची सीढ़ियों से सातवीं मंजिल में जा पहुंची वहां की हवा ऐसे लग रही थी कि नूपुर को उड़ा ले जाएगी नूपुर को आसमान छूने का एहसास हो रहा था। नूपुर अपने सपनो की दुनिया मे थी कि अचानक ठेकेदार का बेटा वहाँ पहुंच गया और उसने कच्ची सीढ़ी के दरवाजे को बंद कर दिया। नूपुर उसे वहां देख कर सहम गई वह नीचे उतरने के लिए दरवाजे की ओर भागी ठेकेदार का बेटा पीछे से नूपुर की ओर बढ़ रहा था और जब उसके सारे दांव असफल रहे तो उसने गुस्से में नूपुर को सातवीं मंजिल से धकेल दिया और जल्दी-जल्दी नीचे उतर कार स्टार्ट कर चला गया।
अचानक ठेकेदार के बेटे को नीचे
जाते देखकर रुकमणी को शक हुआ वह तुरंत ऊपर गई वहाँ नूपुर को ना पाकर बदहवास सी नीचे गई वहां सड़क में नूपुर की लाश के आसपास भीड़ लगी हुई थी भीड़ से आवाज आ रही थी अरे यह लड़की सातवीं मंजिल से कूदकर क्यों जान दे दी क्या पता आजकल के बच्चों को क्या हो गया है? छोटी-छोटी बात पर जान दे देते हैं। रुकमणी को माजरा समझ में आ गया था वह बदहवास सी ठेकेदार के पास गई और गुस्से में कहा- साहब ये आपके बेटे का करतूत है ,मैंने उसे सीढ़ियां उतरते हुए देखा था ठेकेदार ने मुस्कुराते हुए कहा "तुम तो जानती हो अगर मेरा बेटा जो चाहे वह न हो तो वह कुछ भी कर सकता है" रुकमणी रोते हुवे बोली साहब "आपके बेटे के मन का न हो तो वह किसी की जान ले लेगा क्या?गरीब के जान का क्या कोई मोल नही है!"
ठेकेदार ने बीस हजार रुपये देते हुवे कहा "ये रख ले किसी से मौत का सच ना कहना कोशिश की भी तो तुझे पता है अदालत में तेरा सच मेटे झूठ से हार जाएगा।" रुकमणी के आंसू आंखों में ही रुक गए सोचने लगी सच ही तो है गरीब का सच अमीर के झूठ के सामने कहां टिक पायेगा,नूपुर की मौत का सच उसके ज़मीर में हमेशा के लिये दफन हो गया।