मौन
मौन
कक्षा के विद्यार्थी बहुत जोरों से शोर मचा रहे थे। छुट्टी होने में अभी आधा घंटा शेष था। रमा ने बच्चों से कहा - "चलो आज सब अपनी अपनी स्वयं रचित कहानियां सुनाऐगे, जो बालक सबसे अच्छी कहानी सुनाएगा उसको ईनाम मिलेगा।बच्चे अपनी-अपनी बुद्धि अनुसार कहानियां सुनाते गए । जब अमन ने बोलना शुरू किया तो ऐसा लगा मानो समय ठहर गया हो। अमर ने कहा " एक बार की बात है एक लड़की की शादी एक लड़के से होती है वह लड़का, लड़की को हमेशा मारता रहता। लड़की जब कभी अपनी जरूरत के लिए लडके से पैसे मांगती तो लड़का उसे बेल्ट से मारता। एक दिन लड़की ने छत से गिर कर मर जाने की सोची मगर उसके बेटे ने उसकी जान बचाई।
उसके बेटे ने उसे ये सब सहने के लिए मना किया बोला माँ अबकी बार मैं तुझे बचाऊंगा।
उसी रात लड़का शराब पी कर घर आता है और अपनी पत्नी को मारने लग जाता है उसी बीच उनका बेटा आ जाता है मगर लड़का अपने बेटे को दीवार पर पटक देता है। यह देख लड़की तिलमिला जाती है और लड़के की पिटाई उसी की बेल्ट से कर देती है।
पूरी कक्षा अमन की कहानी बड़ी धयान से सुन रही थी। रमा को गहरा आशय था कि पांचवी कक्षा में पढ़ने वाला अमन इतनी गहरी कहानी कह सकता है।
रमा ने पूछा अमन तुम्हारी कहानी के पात्र सच्चे है क्या ? अमन ने रोते हुए कहा जी- लड़का मेरे पापा, लड़की मेरी माँ और उनका बेटा - मैं खुद हूँ।
पूरी कक्षा ने जैसे मौन धारण कर लिया हो।
छुट्टी की बेल बज चुकी थी परंतु बेल की आवाज भी कक्षा का मौन न भंग कर सकी।