भर पेट खाना

भर पेट खाना

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 कविता और राम की नई-नई शादी हुई थी। दोनों बहुत खुश थे।राम उसको शादी के बाद घुमाने के लिए मनाली ले कर गया। दोनों ने खूब मस्ती की, जब घर आए तो कविता जो कि एक एकल परिवार से आई थी ,संयुक्त परिवार में शादी होने के कारण वहां के तौर तरीके नहीं जानती थी। उसकी सासु मांँ ने कहा "कविता आज तुम्हारी पहली रसोई है इसलिए खाना तुम बनाओगी"। कविता ने अपनी बड़ी जेठानी को ध्यान से देखा जो की सिर झुकाए खड़ी थी। कविता किचन में घुस गई और धीरे-धीरे काम करने लगी।तभी बड़ी भाभी रसोई में आई और बोली कविता खाना जल्दी बनाओ क्योंकि यहांँ पर सभी 12:00 बजे मेज पर आ जाते हैं।12:01 होने पर बहुत गुस्सा होंगे।

कविता अपनी पूरी कोशिश में लगी रही यदि बड़ी भाभी साथ न देती तो खाना ना बन पाता।12:00 बजे से पहले खाना डाइनिंग टेबल पर लगा दिया गयाऔर सब को 12:00 बजते ही बुलाया गया। बड़े जेठ, छोटा देवर ,ससुर और सास सब खाने की मेज पर बैठ गए। कविता अपनी जेठानी को जल्दी-जल्दी काम करते हुए देख रही थी कि जेठानी ने कैसे सबको खाना परोसा। जेठानी ने कविता को जल्दी-जल्दी रोटी बनाने को कहा वह बेचारी अपनी कोशिश में रोटी जल्दी बनाने लगी। लेकिन वह जल्दी काम ना कर पा रही थी। 

कितने सारे जन एक साथ खाना खाने बैठ गए थे फिर भी उन्होंने उनको खाना खिलाया। कविता की सास ने अपनी रौबदार आवाज में कहा बहु आज रोटी लाने में जितनी देर हुई वह कल न हो। उन सबका खाना खत्म हुआ।खाने की मेज पर जब दोनों जेठानी देवरानी का नंबर आया तो दोनों के हिस्से में बचा कूचा ही आया। सूखी सब्जी खत्म हो चुकी थी ,दही का रायता, सलाद व मीठे में हलवा बचा ही न था।कविता रोते हुए बोली "दीदी कल से ध्यान रखूंगी कि हम लोगों के लिए भी कुछ पहले ही रख सकूँ। तभी जेठानी बोली "कविता इसके बारे में कभी कुछ बोलना भी नहीं क्योंकि इन सब लोगों के खाने के बाद जो कुछ बचता है वही हम लोग खाते हैं।"

कविता ने गस्से में पूछा "क्यों हम क्या इंसान नहीं है जो हम बचा कूचा खाए"।

 जेठानी ने कविता को कहा यही परंपरा है। फिर मैंने भी यही सब देखा। तुम नई आई हो इसलिए आदत नहीं है, धीरे-धीरे आदत हो जाएगी। 

ऐसे ही चलता रहा।फिर एक दिन दिवाली आई। विभिन्न पकवान बने। रात में पूजा के बाद सब ने खाना। कविता ने सबको गरम गरम पूरी हलवा सब्जी खिलाई। सब ने झटपट- झटपट खत्म कर दिया।जब कविता और उसकी जेठानी का नंबर आया तो सब्जियां ना बराबर थी।कविता को गुस्सा आया उसने चीखकर कहा"आखिर क्या हम लोग इंसान नहीं है पूरे दिन ताबडतोड काम करते है,आप लोगों के लिए खाना बनाते हैं, क्या हम लोगों को पेट भर खाने की इच्छा नहीं होती ? हम क्या गली के कुत्ते हैं जो हमें

 बासी खाना पड़ता है"। 

कविता की बात सुन कर सब चुप हो गए। राम ने कहा "माफ करना आप दोनों हमने कभी ये सोचा ही नही के आप लोगों को इतनी दिक्कत होती है"।

राम ने तभी बाहर से खाना मंगवाया। दोनों को खाना खिलाया।उस दिन के बाद से उसकी जेठानी व कविता सबके साथ डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाते हैं।

एक आवाज उठाने की देर होती है वरना लोगों को पता ही नहीं चलता कि वह कहांँ गलती कर रहे हैं।


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