डॉ० कुलवीर बैनीवाल

Abstract

4.1  

डॉ० कुलवीर बैनीवाल

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मैं भी फेल हो जाऊं

मैं भी फेल हो जाऊं

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एक बार की बात बताता हूँ रोहतक के एक गाँव चमारिया जिसमें में दो सहेलियाँ सविता और कविता 12वीं की पेपरां देणे जाणे लाग रहीं थी और एक-दुसरे त साथ म बातें करण लाग री थी :- 

कविता : सविता, तू तो कतई भी पढ़ाई ना करती ! पेपरां म पास क्यूकर होवेगी ?

सविता : अरे छोड़ों न यार ! पास हो गयी तो फिर 13वीं ,14वीं, 15वीं के पेपर दो और फिर मिलेगा वही नौकरी वाला पति ।

कविता : तो ? बढिया तो है ।

सविता : क्या बढिया है ? 10 घंटों की नौकरी और तनख्वाह 35 से 40 हजार रूपये । फिर गुरुग्राम, बंगलौर, मुम्बई, पुणे जैसे बड़े शहरों में रहने जाओ । वहाँ पर किराये का घर होगा जिसमें आधी तनख्वाह चली जाएगी । खुद का घर चाहिए तो लोन लेकर 10-15वीं मंजिल उपर घर लो और एक गुफा जैसे बंद घर में रहो । लोन चुकाने में 15-20 साल लगेंगे, न त्योहारों में छुट्टी न गर्मी-सर्दी में । सदा बीमारी का घर । स्वस्थ रहना हो तो ऑर्गेनिक के नाम पर 3-4 गुना कीमत देकर सामान खरीदो सो अलग । और बाकि तू सारा जोड़,घटा,गुणा व भाग कर लें , तेरी समझ में खुद आ जावगा ।

दूसरी तरफ, अगर मैं पेपरां म फेल होगी तो बापू किसी अच्छी खेती आले किसान साथ ब्याह करवा देगा । रुपिये थोड़े-बहुत तो होंगे पर सारे आपणे होंगे, कोई टैक्स का लफड़ा भी ना होवेगा । मुफ्त का बिजली-पानी और डीजल । सारा कुछ ऑर्गेनिक उगायेंगे, खुद की गाय-भैंस का दूध पिवांगे । बीमारी की कोई चिंता ए कौनी और बड़ी बात यो स कि सास, ससुर, पति, बच्चे 24घंटे साथ म रहेगी । 

और सारा म बड़ी बात - सारी सरकारें म्हारी वोटों के चक्कर म हरेक चुनाव त पहले म्हारा छक क लिया सारा लोन ( मतलब चुनाव से पहले का लिया हुआ सारा लोन ) , माफ़ कर देवेगी और उस लोन को चुकाएगा कौन ? वही नौकरी वाला थारा पति( समाज का बैल ) ।

कविता : तूने तो बेबे मेरी आँख ही खोल दी !!! सोचूं सूँ कि मैं भी फेल हो जाऊं ।     

 

नोट :- इस कहानी का किसी भी पात्र से कोई सम्बन्ध नहीं है । इस कहानी में हँसाने हेतु कुछ हरियाणवी शब्दों का प्रयोग किया गया है ।


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