राजा रिशु सनातन एवं प्रजा
राजा रिशु सनातन एवं प्रजा
इस बार ये कहानी एक राजा व उसकी प्रजा के बारे में है। इस कहानी में उस राजा का नाम रिशु सनातन है। राजा रिशु सनातन के राज में उसकी प्रजा खुशहाल जीवन यापन कर रही थी। उसका एक कारण ये भी था कि राजा रिशु सनातन की प्रजा आत्मनिर्भर थी। उनकी प्रजा के लोग स्वयं अपने हाथों की कला से व स्वयं की बनाई हुई मशीनों के माध्यम से उत्पाद बनाते, बने हुए उत्पादों को मार्किट में बेचकर अपने घरों को चलाते थे। प्रत्येक वर्ष होली, दीपावली और दशहरा जैसे त्यौहारों पर बड़े-बड़े मेलों का आयोजन होता था। एक दिन भारी वर्षा हुई। सवेरे उस राज्य के किसान खेतों में गये तो क्या देखते हैं !! कि उनके खेतों में पानी भर गया है जिसकी वजह से उन खेतों की सारी फसलें खराब हो चुकी हैं। सारे किसान परेशान हो गये। एक दिन सभी किसान इकठ्ठे होकर राजा रिशु सनातन को अपनी समस्या बताने के लिए उनके निवास स्थान पर गये लेकिन बाहर पहरा दे रहे पहरेदारों ने उन किसानों को रोक लिया, किसानों को अंदर जाने नहीं दिया गया। उनको ये कहकर रोक दिया कि अभी राजा रिशु सनातन का ये समय आराम करने का हैं इस समय वो किसी से नहीं मिल सकते। पहरेदारों ये बात इसीलिए कह दी क्योंकि उन दिनों ऐसी बीमारी आने की सम्भावना थी जोकि जानलेवा थी। राजा रिशु सनातन उस बीमारी को अपने राज्य में आने से रोकने के लिए प्रयास में दिन-रात लगे हुए थे। राजा ने अपने सभी दरबारियों को सभा में बुलाकर ये साफ़ कह दिया था कि अभी प्रजा में इस बीमारी का पता किसी को न चलें, अगर पता चला तो प्रजा दुखी हो जाएगी व बीमारी के प्रकोप से डर जाएगी। आप सब अपने-अपने इलाकों की जनता पर वे नजर रखें, अगर कोई ऐसी बीमारी से ग्रसित हो जिनके लक्षण निम्नलिखित हो :-
नाक, कान व गले में दर्द रहता हो।
बुखार चढ़ता व उतरता रहता हो।
साँस लेने में दिक्कत रही हो।
अगर ऐसे लक्षणों का कोई प्रजा में दिखाई देवें तो तुरंत उनको हमारे वैद्यजी के पास लेकर आयें जिससे वो समय रहते उनका इलाज शुरू कर सकें। उन्होंने ये भी आदेश दिया कि अपने राज्य के प्रत्येक कोने में हवन-पूजा आदि सुबह व शाम दोनों समय करवाते रहें। हवन में ऐसी सामग्री का प्रयोग किया जाना चाहिए जो जड़ी-बूटियों से निर्मित हो, जिससे बीमारियों की रोकथाम हो सकें व बीमारियाँ आगे न बढ़ पाए क्योंकि राजा रिशु सनातन ने अपने पाठ्यकाल में ये पढ़ रखा था कि "जड़ी-बूटियों से निर्मित सामग्री का प्रयोग अगर हवन-पूजा आदि में वेद के मन्त्रों के साथ किया जाये तो भयंकर बीमारी के प्रकोप से बचा जा सकता है। " दरबारियों ने वैसा ही किया जैसा राजा रिशु सनातन ने आदेश दिया था।
उधर किसान हताश होकर अपने-अपने घरों पर जाने के लिए मुड़े ही थे कि अचानक राजा रिशु सनातन गैलरी में आ गये व वहाँ से देखा कि कुछ लोग निवास स्थान के बाहर खड़े हैं। राजा ने अपने दरबान को भेजकर उन किसानों को अंदर लाने को कहा। राजा ने सबसे पहले उन किसानों की आवभगत(खातिरदारी) राजशाही भोजन खिलाकर की। भोजन के पश्चात राजा ने किसानों की समस्या जानकर उनको आश्वासन दिया कि आप परेशान न होइये। हम इस समस्या से रात को ही अवगत हो गये थे। हमने अपने सभा के मंत्रियों को निर्देश जारी कर दिया है कि वे किसानों की जमीनों का जायजा लेकर आयें व खराब हुई फसलों का रिपोर्ट कार्ड बनाकर दरबार में प्रस्तुत करें। आश्वासन के बाद किसान ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर की तरफ लौटने लगे।
इधर राजा रिशु सनातन जिस बीमारी के प्रकोप से प्रजा को बचाने में लगे हुए थे उसके निदान हेतु वो कुछ विचार कर ही रहे थे कि अचानक एक दरबारी आया और राजा के सामने आकर बोला कि "राजाजी, आपने जो लक्षण बताये थे ऐसे कुछ लक्षण वाले लोग अपने प्रजा में दिखाई दिए हैं। उनको वैद्य जी की निगरानी में भिजवा दिया गया है। " ये संदेश देकर दरबारी चला गया। राजा रिशु सनातन ये सुनकर थोड़े से परेशान हो गये व उसके निदान हेतु विचारने लगे। सोचते-सोचते अगले दिन रात सवेरे के 4 बज गये थे कि अचानक उनके निवास स्थान का अलार्म बजा। अलार्म की आवाज़ से उनका दिमाग उस सोच से बाहर निकला। राजा ने समय देखने के लिए घड़ी की तरफ देखा तो पता लगा कि 4 बज गये है। अपनी दिनचर्या के मुताबिक राजा रिशु सनातन शौच-आदि से निवृत होकर योगा-प्राणायाम करने लगे। जब वो ध्यान में बैठे तो उनको आभास हुआ कि वे अपने राज्य में जो किसान जहर युक्त खेती करते हैं जिससे खेती की उपजाऊ शक्ति तो खत्म होती ही है साथ ही प्रजा की शारीरिक शक्ति भी कमजोर होती है जिससे वो बिमारियों से लड़ने में सक्षम नही रहते। उनकी इस जहरयुक्त खेती को छुड़वाकर जहरमुक्त खेती को अपनाना होगा। जिससे वायुमंडल भी शुद्ध होगा। जिन खेतों में फसल जहरमुक्त होगी उस अनाज को खाकर लोग बलशाली बनेंगे, लोगों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी जिससे वे बीमारियों से लड़ सकने में सहायक होंगे। इतना ध्यान में आभास होते ही उनकी आँखें खुली।
सुबह जैसे ही दरबार लगा तो राजा रिशु सनातन ने सबसे पहले अपने मंत्रियों से किसानों की फसलों का विवरण माँगा, उन्होंने एक सवाल ये भी पूछा कि अपने राज्य में कितने ऐसे किसान जो जहरमुक्त व जहरयुक्त खेती करते हैं ? जो मंत्री ये लेखा-जोखा सम्भालता था उन्होंने राजा रिशु सनातन के सामने आंकड़े रखें कि अपने राज्य के 100 किसानों में से 10 किसान जहरयुक्त खेती करते हैं। जिन किसानों की फसलें खराब हुई हैं उनमें से ज्यादातर किसान वो हैं जो जहरयुक्त खेती करते हैं या जिनकी जमीन उस खेत से मिलती है जिस खेत में खेती जहरयुक्त होती है व जो किसान जहरमुक्त खेती करते हैं उनके खेतों में बारिश का पानी तो भर गया था लेकिन फसलें खराब होने से बच गयी। इस फसल के खराब होने से बचने का बड़ा कारण ये था कि उस धरती की उपजाऊ शक्ति मजबूत है। ये बात सुनकर राजा ने अपने सभादारों से पूछा कि जो किसान जहरयुक्त खेती करते हैं उनको कैसे समझाया जाये कि वे इस जहरयुक्त खेती को छोड़कर जहरमुक्त खेती को अपनाये ? उन सभादारों में से एक ने कहा कि आप उन किसानों को सभा में बुलाइए जो जहरयुक्त खेती करते हैं उनके सामने ये आंकड़े रख दीजिये कि जिस खेत में फसल जहरमुक्त है वो बारिश के पानी में भी खराब नहीं हुई जबकि आप जो जहरयुक्त खेती करते हो तो सबकी फसलें खराब हुई व ऐसे किसानों की भी फसलें खराब हुई है जिनकी जमीन ऐसी जमीन से लगती है जो जहरयुक्त हो। राजा रिशु सनातन ने सभी किसानों को सभा में बुलाया व सभी किसानों को राजा रिशु सनातन ने ऐसा ही कहा जैसा उस सभासद ने कहा था। राजा रिशु सनातन की बाद सुनकर किसानों ने भी राजा को आश्वासन दिया कि आगे से वे लोग भी जहरमुक्त खेती करेंगे जिससे धरती की उपजाऊ शक्ति बढ़े व ऐसी फसलों के अनाज को खाकर लोगों की भी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े। किसानों की बात सुनकर राजा रिशु सनातन ने भी उन किसानों को अपने राजकोष से खराब हुई फसलों के मुताबिक उनकी आर्थिक सहायता भी भेजी। उधर जो भयंकर बीमारी से ग्रसित लोग थे उनमें से 2-3 का स्वर्गवास हो गया व बाकि मरीज ठीक हो गये थे। साथ ही बीमारी से निपटने के लिए हो रहे जड़ी-बूटी वाले हवन-पूजा को 2 से 3 महीनें तक लगातार किया जाता रहा। धीरे-धीरे बीमारी खत्म होने लगी व राजा रिशु सनातन ने "जिन घरों के युवा व युवती का इस बीमारी से स्वर्गवास हो गया था" उनको भी आर्थिक सहायता देकर सांत्वना प्रदान की। वहाँ की प्रजा राजा रिशु सनातन के इस फैसले से जय-जयकार के नारे लगाने लगें।
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि अगर राजा ज्ञानवान व चतुर होगा तो उसकी छत्रछाया में जनता सुखी एवं खुशहाल जीवन व्यतीत करेंगी।
अगर राजा जनता के दुःख-दर्द को जनता के बयाँ करने से पहले जानकर उसके निदान में लग जाये तो प्रजा उस राजा को कभी भूल नहीं सकती।
अगर राजा आध्यात्मिक है व वेदों का अनुसरण स्वयं करता हो तथा जनता राजा के बताये रास्ते का अनुसरण करती हो तो वो जनता कभी दुखी नहीं हो सकती।
नोट :- इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है। इस कहानी का किसी वास्तविक घटना से कोई लेना-देना या किसी भी तरह का लिंक नहीं हैं।
