मैं कौन हूँ और क्या हूँ ?
मैं कौन हूँ और क्या हूँ ?
एक बार की कहानी बताता हूँ, जब मैं छोटा सा बच्चा था तब मेरी उम्र तकरीबन 4 या 5 साल रही होगी। उस समय जब पहली बार विद्यालय गया तो किसी ने मेरा हाथ पकड़ा तो उस समय लगा कि जैसे मेरी माता जी आ गयी। "आचार्य क्या होता है या आचार्य किसको कहते हैं ?" ये उस दिन मुझको पता चला था जब मैं विद्यालय में पढ़ने के लिए गया था। मैंने अपने आचार्य को पूरे मन, वचन व कर्म से भगवान का दर्जा दिया था क्योंकि आचार्य ही वह दीया
की बाती है जो खुद जलकर प्रकाश फैलाता हैं अपनी बुद्धि के बल पर विद्यार्थियों का भविष्य बनाता हैं। जब हमसे कोई गलती होती है तो हमको अवगत कराता है व सुधार करने का अवसर भी देता है व बाद में कैसे सुधार हो ये बात वह स्वयं भी बताता हैं। जब कभी विद्यालय में किसी प्रतियोगिता का आयोजन होता तो मुझको बहुत डर लगता था तब हमारा आचार्य ही होता था जो हमारे अंदर के विश्वास को जागृत करने का कार्य करता था, हमारे आत्मविश्वास के दीपक को जलाता था। वह हमारे मुसीबतों के समय भी साथ देता था।
आचार्य ही हमको सिखाता था कि जो हम सोच सकते हैं वो स्वयं कर भी सकते हैं। बस हमें अपने आत्मविश्वास को मजबूत करना होगा। तब हम सब कुछ कर सकते हैं। अंत में मैं अपने उन सभी आचार्यों को नमस्कार करता हूँ जिन्होंने मुझको कुछ लायक बनाया है। "मैं कौन हूँ और क्या हूँ" इस वाक्य का भी मेरे आचार्यों ने मुझसे परिचय करवाया था।