मैं अबॉर्शन नहीं कराऊंगी पर...
मैं अबॉर्शन नहीं कराऊंगी पर...
" ओहो...बस इतनी छोटी सी बात का हंगामा मचा दिया। खोदा पहाड़ निकली चुहिया। मुझे लगा कि कोई और बात है।कहीं सव्या कुछ और तो नहीं सोच रही...?वैसे बात इतनी मामूली भी नहीं थी...!बात तो ख़ुश होने की थी।दरअसल... आज छुट्टी का दिन था और पूरा परिवार इकठ्ठा होकर शाम की चाय का आनंद ले रहा। घर की छोटी बहू सव्या आज अपने मन से रसोई में गई थी यह कहकर कि...
"बाकि दिन तो मैं ऑफिस में रहती हूँ तो सारा काम दीदी (जेठानी ) ही करती हैं। आज मैं घर में हूँ तो सबका फेवरेट चिवड़ा भूनकर लाती हूँ !"इसलिए सव्या रसोई में चिवड़ा भून रही थी। वह मूंगफली, करी पत्ता वगैरह डालकर बहुत अच्छा और स्वादिष्ट चिवड़ा बनाती थी। उसने अपनी किसी गुजरातन दोस्त से सीखा था। सब उसके चिवड़े और उसका इंतजार कर ही रहे थे कि...तभी उसकी आँखों के आगे अंधेरा छाया और वह गिर पड़ी।
सबसे पहले सव्या को गिरते हुए उसके देवर अनंत ने देखा और वह दौड़कर सबको बुला लाया। सव्या की सीधी सादी सास अहिल्या जी एकदम से घबड़ाकर आँख मुंदकर भगवान का नाम जपने लगी तो ससुर आनंद जी अपने बेटे और सव्या के पति अमन को हुड़की देने लगे कि,"जाओ... जल्दी दौड़कर... देखो, बहू को क्या हुआ है?"तो जेठ आनंद जी दूर से ही खड़े होकर सव्या से पूछने लगे ,"छोटी बहू ... उठ जाओ। तुम्हें क्या हुआ है? लगता है...काफ़ी कमज़ोर हो गई है!"
फिर अपनी पत्नी मालती की तरफ मुड़कर बोले," मालती! आज तुम ही नाश्ता बना देती। क्या जरूरत थी छोटी बहू को रसोई में भेजने की। उसे आदत नहीं है इतनी गर्मी में काम करने की। तभी शायद बेहोश होकर गिर गई!"पर.... मालती.... उनकी बात सुनने के लिए वहां थी कहां...?
वह तो ना जाने कब दौड़कर रसोई में पहुंच गई थी। और सव्या का सिर अपनी गोद में रखकर उसके चेहरे पर हल्के से पानी के छींटे देते हुए व्याकुल होकर कह रही थी...
" सवि ... सवि... आँख खोलो । क्या हो गया तुम्हें!"और इस वक्त.... मालती को अपना कोई होश नहीं था। उसका आंचल नीचे भीगे फर्श पर लेटा रहा था। और साड़ी गंदी हो रही थी। पर उसे इन सब की उसे कोई परवाह नहीं थी।
कोई भी इस वक्त मालती की चिंता और उसकी हालत को देखता तो यही सोचता कि...दोनों आपस में सभी बहने हैं।
उसके दोनों बच्चे भी चाची... चाची कहकर रसोई में दौड़ कर आ गए थे।
दरअसल....अभी दो दिन पहले से ही सव्या की तबियत ठीक नहीं थी।पर उसने इस बात को इतनी गंभीरता से नहीं लिया था।
इसके पीछे सव्या की प्रेगनेंसी है.... यह तो किसी ने सोचा ही नहीं। वैसे सव्या को अपनी प्रेग्नेंसी का अंदाजा नहीं था। वो तो अभी बेहोश होकर गिर पड़ी थी तो घर वालों को चिंता हुई। काव्या की जेठानी मालती की अनुभवी आँखों ने ताड़ लिया कि...
यह सव्या के संभावित मातृत्व के लक्षण हैं। फिर मालती ने ही सव्या को प्रेग्नेंसी टेस्ट करने बोला और फिर जो पॉजिटिव रिजल्ट आया... उसे देखकर तो सब ख़ुश हुए पर सव्या तो हो गई उदास... एकदम उदास !
तो....
एक तरफ जहां पूरे घर में खुशी की लहर दौड़ गई। वहीं काव्या दूसरी तरफ यह खबर सुनकर एकदम से उदास हो गई थी।और जब काव्या की जेठानी मालती ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए प्यार से पूछा...
"इतनी अच्छी खबर है लेकिन होने वाली मां तो खुश हुई ही नहीं । ज़रा बाताओ सव्या ! तुम इतनी उदास क्यों हो ?"ज़रा हमें भी तो बाताओ... आखिर बात क्या है ?"तब सव्या ने रोते रोते कहा,"मुझे अभी कोई बच्चा नहीं चाहिए। मुझे अभी नौकरी में प्रमोशन मिलने वाला है । अगर ऐसे समय में मैं मां बन गई तो फिर मुझसे यह प्रमोशन हाथ से चला जाएगा और फिर मैं जिंदगी में आगे नहीं बढ़ पाउंगी । और मुझे इस बात का बहुत अफसोस रहेगा कि ...मातृत्व की वजह से मैंने अपना करियर दांव पर लगा दिया। लेकिन अबोर्शन तो कराना ही पड़ेगा दीदी!"
सव्या का डेडीकेशन देखकर सब हैरान थे ।
लेकिन उसकी जेठानी ने कहा....
" बस इतनी सी बात....! अरे ... हम सब मिलकर उस बच्चे को पाल लेंगे। तुम बच्चे को जन्म देकर हमें दे देना । हम सब मिलकर सब संभाल लेंगे। जन्म के बाद वह बच्चा हमारी जिम्मेदारी होगा बस !"परिवार का इतना सपोर्ट और सबका इतना प्यार पाकर सव्या को बहुत अच्छा लगा ।
उसने उत्साहित होकर कहा...
" ठीक है....! मैं अबोर्शन नही कराऊंगी पर...बच्चा हो जाने के बाद आप लोग अपना प्रॉमिस भूल मत जाना। मैं आप लोगों के भरोसे ही बच्चे को जन्म देने को तैयार हूं!"सब ने सव्या की बात मान ली।
जैसे जैसे बच्चा गर्भ महीने बढ़ रहा था। वैसे वैसे सव्या को अपने उस अजन्मे बच्चे से बहुत लगाव महसूस होने लगा था। आखिर वह एक माँ थी और मां अपने बच्चे से जुड़ ही जाती है।बच्चे के जन्म के दो महीने के बाद....
ज़ब सव्या ने ऑफिस ज्वाइन किया तो सारे दिन उसे सिर्फ बच्चे की याद आती रही और उसे बड़ा अधूरा सा महसूस हुआ।
बमुश्किल सव्या सात दिन ही ऑफिस जा पाई। फिर एक दिन मुन्ने ने को थोड़ी खांसी सर्दी हो गई थी तो उसने छुट्टी ले ली।
ऐसे ही वह दो-तीन दिन करके वह छुट्टी ले लेती। और लगभग एक महीने के बाद उसने स्वेच्छा से अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।
उसके ऐसा करने पर ज़ब मालती ने पूछा कि...
"सव्या! तुम जो अभी अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे रही हो। क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम्हारे पीछे हम मुन्ने का अच्छे से ध्यान नहीं रख रहे ?क्या तुम हम पर शक कर रही हो ? क्या तुम्हें हम पर विश्वास नहीं है कि हम तुम्हारे बच्चे को अच्छे से पालन -पोषण कर रहे हैं ?"मालती की आँखों में दर्द देखकर सव्या उन्हें गले लगाते हुए बोली,
" नहीं... दीदी! ऐसा बिलकुल नहीं है। आप पर शक करना मतलब भगवान पर शक करना। बस मैं एक मां का फर्ज निभाना चाहती हूं। और अपने बच्चे को पल-पल बढ़ते हुए देखना चाहती हूं। उसकी परवरिश खुद अपने हाथों से करना चाहती हूं!"
और... इसके लिए तुम नौकरी तक छोड़ने को राजी हो? भूल प्लीज गए तुमने जो शर्त रखा था? "
मालती ने मजाक करते हुए कहा तो...
सव्या ने कहा..." सच... दीदी...! कितनी नादान थी मैं...!
मैं नहीं जानती थी कि मां बनते ही मेरी दुनिया बदल जाएगी। अब तो मुन्ने को छोड़कर मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता !"
उसके इस निर्णय पर घर में सब आश्चर्य कर रहे थे कि जो सव्या बच्चे के जन्म से पहले ही शर्त रख रही थी कि...वह बच्चे को जन्म देने के बाद सिर्फ अपनी नौकरी पर ध्यान देगी। आज वह बच्चे के प्यार में बच्चे के मोह में आकर और बच्चे की सही परवरिश को ध्यान में रखकर अपनी इतनी अच्छी नौकरी से त्यागपत्र दे रही है ।
पर... सव्या एक माँ थी और यह एक माँ का निर्णय था जिसे कोई नहीं टाल सकता था।
सबने... उसके निर्णय का स्वागत किया।
