Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

4.5  

Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

मायका आज भी ज़िंदा है !!!

मायका आज भी ज़िंदा है !!!

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कहीं पर पहुँचने के लिए कहीं से निकलना बहुत जरूरी होता है। खाना बनाते हुए रचना सोच रही थी।

" बहिनों के भाई नहीं होगा तो मायका तो ख़त्म ही हो जाएगा। ",अक्सर उन बहिनों का रिश्ता केवल इस कारण से ही होते -होते रह जाता था। 

तब रचना की माँ ने इस सोच से निकलने की ठानी और जब माँ ने एक बार अपने दिमाग से यह बात निकाल दी कि भाई के बिना भी मायका हो सकता है तो माँ ने उसका रास्ता भी ढूंढ लिया था। इसीलिए तो आज माँ के जाने के बाद भी रचना अपने मायके जाने वाली है। 

"मम्मी जी, मैंने शांता से बात कर ली है। तीन दिन वह खाना भी बना देगी। सुबह तो वह इनका टिफ़िन पैक करके चली जायेगी। बस आपको अपना और पापा जी का लंच खुद ही परोसना होगा। आप कहोगे तो आटा गूँथकर फ्रिज में रख जायेगी और आप चाहोगे तो आपक और पापाजी की रोटियाँ सेंक जायेगी। रायते की भी पूरी तैयारी कर जायेगी, बस फ्रिज से रायता निकालकर नमक आपको डालना होगा। बस तीन दिन की ही तो बात है ;फिर तो मैं आ ही जाऊँगी। ",रचना ने अपनी सासू माँ से कहा 

"अब तुम्हारी माँ तो रही नहीं ;फिर कौनसा मायका ?अब वहाँ है ही कौन ?ख़ाली दीवारें, खिड़कियाँ और दरवाज़े वैसे तुम्हारे बिना भी हम सब कुछ कर सकते हैं। अभी तो मेरे हाथ पैर चलते हैं। तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे तुम्हारे बिना दुनिया रुक जायेगी। ",रचना की सासू माँ ने कहा। 

"जब माँ थी, तब भी तो आप जाने नहीं देती थी। माँ के पास कभी 4 दिन से ज्यादा रुक नहीं पायी;एक ही शहर में ससुराल और मायका होने का यही तो नुक्सान है। मैं कुछ नहीं करती ;यह कहते रहते हो ;लेकिन कहीं भी जाने की बात हो तो आपका मुँह फूल जाता है। ",रचना ने मन ही मन सोचा, लेकिन अपनी सासू माँ से कुछ नहीं कहा। 

"मम्मी जी, चाहे मेरी माँ शरीर के साथ हमारे साथ नहीं हैं ;लेकिन उनका आशीर्वाद हमेशा हम पाँचों बहिनों के साथ है। माँ दिल में तो हमेशा ही रहेगी। उस घर में केवल दीवारें ही नहीं हैं, माँ की यादें हैं ;केवल खिड़कियाँ और दरवाज़े ही नहीं हैं, माँ की खुशबू है। हम पाँचों बहिनों ने तय किया है कि हर साल दो बार अपने मायके में इकट्ठे होंगे और माँ की यादों को एक साथ जीयेंगे। बच्चों को भी ले जा रही हूँ। आज शाम को जा रहे हैं। ",रचना ने सासू माँ से कहा।

"जैसी तेरी मर्ज़ी ;वैसे भी हमारी इस घर में सुनता कौन है ?",रचना की सासू माँ ने कहा।

रचना की सासू माँ भी और सासों से कुछ अलग नहीं थी। जब भी वह रचना से कोई भी बात करती तो उसमें एक बात कोई न कोई ताना जरूर होती थी। लेकिन शादी के 15 साल बाद रचना को इन सब की आदत हो गयी थी। उसे अब उनकी बातों का बुरा नहीं लगता था। उसकी सासू माँ बस जुबान की ही तेज़ थी ;लेकिन दिल की बुरी नहीं थी। वह जानती है कि उसके जाते ही मम्मीजी उसे बारबार फ़ोन करेंगी और कहेंगी कि, "तू सम्हाल आकर तेरी गृहस्थी। तुने हम सबकी आदतें खराब कर दी हैं। "

5 बहिनों की सबसे बड़ी बहिन रचना, ससुराल की इकलौती बहू है।रचना पाँचवी कक्षा में पढ़ती थी ;तब ही एक सड़क दुर्घटना में उसने अपने पापा को खो दिया था। एक अदद बेटे की चाह में उसकी 30 वर्षीय माँ एक के बाद एक 5 बेटियों की माँ बन गयी थी। आजकल जिस उम्र में लड़कियाँ शादी कर रही हैं ;उस उम्र में उसकी माँ 5 बेटियों के साथ विधवा हो गयी थी। वो तो रचना के बाबूजी एक सरकारी कर्मचारी थे ;इसीलिए माँ की अनुकम्पा के आधार पर सरकारी नौकरी लग गयी थी ;नहीं तो पाँचों बेटियों के साथ माँ या तो भीख माँगकर गुजारा करती या दूसरों के घरों में झाड़ू पोंछा करती।

माँ ने अपने दम पर अपनी पाँचों बेटियों की शादी की। कुछ अच्छे रिश्ते तो केवल इसलिए हाथ से निकल गए थे क्यूँकि रचना के कोई भाई नहीं था। लेकिन माँ कहती थी कि, "मायका एक एहसास है। जिसे तुम जब भी अपने माँ के घर आओगी महसूस कर सकती हो। जहाँ माँ से जन्मे बच्चे हो;वही मायका है। "

माँ ने अपने रिटायरमेंट के बाद एक छोटा सा घर बनवाया। माँ ने मरने से पहले पाँचों बहिनों को बुलाकर कहा था कि, "बेटा, जब मैं नहीं रहूँगी;तब यह घर ही तुम्हारी माँ होगी। जब भी मायके की याद आये ;यहाँ चली आना। पाँचों बहिनें इस घर की एक -एक चाबी रखना। "

रचना के पति अर्जुन एक भाई और दो बहिनें हैं। अर्जुन की शादी से पहले ही उसकी दोनों बहिनों की शादी हो गयी थी। रचना 3 दिन क लिए इसीलिए ही जा रही है क्यूँकि, बाद में उसकी बड़ी ननद आ जायेंगी। 

रचना ने घर का काम ख़त्म किया। उसने सारा ग्रोसरी का सामान चेक किया और जो भी सामान कम था ;उसकी लिस्ट बना दी थी ;उसने फ़ोन पर सारा सामान स्टोर पर लिखवा दिया था। शाम को उसके जाने स पहले ही सारा सामान आ जाएगा और वह सारा सामान किचेन में व्यवस्थित करके जा सकेगी।उसके पीछे से घर के लोगों को भी ज़रा सी भी तकलीफ नहीं होनी चाहिए। 

रचना ने बच्चों को भी पहले से ही बोल रखा था कि, "अपना छुट्टियों का होमवर्क ख़त्म कर ले । नानी घर पूरी तरीके से मस्ती कर सकें । फिर बुआ अपने बच्चों के साथ आ जायेगी । "

"होमवर्क फिनिश ?",रचना ने पूछा। 

"मम्मा, मेरा तो फिनिश हो गया ;लेकिन अक्षत क होमवर्क अभी तक फिनिश नहीं हुआ। ",रचना की बड़ी बेटी दिया ने कहा। 

"अक्षत बेटा, तुम भी अपना होमवर्क फिनिश कर लो। ",कपड़े समेटती हुई रचना ने कहा।रचना अपने पति अर्जुन की तीन दिनों की ड्रेसेज अलमारी से बाहर निकालकर, रखकर जाने वाली थी ;नहीं तो अपने कपड़े ढूंढते हुए अर्जुन बहुत खीजेंगे और पूरा कमरा फैलाकर रख देंगे। 

रचना को तब ही सब्जी वाले की आवाज़ सुनाई दी। वह सब्जी खरीदने दौड़ पड़ी। माँ के बाद वह पहली बार पूरी तरीके से चिंतामुक्त होकर अपने मायके जाना चाहती थी। वह वहाँ अपनी यादों में कोई व्यवधान नहीं चाहती थी। सब्जियाँ साफ़ करके उसने करीने से फ्रिज में रख दी थी। आज रचना एकदम फुर्ती से पाने सारे काम निपटाती जा रही थी। 

शाम को अर्जुन जब ऑफिस से आ गए तो उन्हें चाय -नाश्ता कराकर, रचना अपने सास-ससुर के पैर छूकर दोनों बच्चों को लेकर मायके क लिए रवाना हो गयी थी। अर्जुन उसे और बच्चों को छोड़कर आ गया था। 

रचना ने अपने पास की चाबी से माँ क घर का ताला खोला। सब चीज़ें करीने से रखी हुई थी ;बस थोड़ी धूल -मिट्टी लग गयी थी।रचना ने सारे घर की साफ़ -सफ़ाई की और अपनी बहिनों का इंतज़ार करने लगी। एकएक करके पाँचों बहिनें आ गयी थी और माँ की तस्वीर के सामने खड़े होकर पाँचों ने एक साथ कहा, "माँ, हमारा मायका आज भी ज़िंदा है।"


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