मार्गदर्शन/सार्थक कदम
मार्गदर्शन/सार्थक कदम
सार्थक कदम / मार्गदर्शन
“मैंने अपने आंगन में पक्षियों के लिए दसियों कृत्रिम घोंसले लगाए हैं। उनके लिए दाना और पानी भी सकोरों में भरकर रखती हूँ ।"
पर्यावरण के लिए योगदान पर पर्यावरणविदों के द्वारा घर-घर जाकर पूछे जाने पर एक गृहिणी ने जवाब दिया ।
"बहुत मेहनत की है आपने?"
"जी, प्रकृति की रक्षा के लिए इतना तो मैं कर ही सकती हूं।" गृहिणी खुश होकर बोली।
"क्या वास्तव में आपका योगदान है ?"
" फिर मुझे और क्या करना चाहिए?"
"आपने योगदान देने की कोशिश की है परन्तु यह ठीक वैसे ही है, जैसे किसी को लँगड़ा करके उसे बैसाखियाँ पकड़ा देना। अच्छा होता अगर आप अपने आंगन में पेड़ लगा लेतीं। आपको उसके फल तो मिलते ही ऊपर से पर्यावरण भी शुद्ध होता। रही पक्षियों की बात, तो वे अपना घोंसला तैयार करने में स्वयं ही सक्षम हैं।
आपने घोंसले टांगकर उनकी कोई खास मदद नहीं की है, वरन उनसे उनका हुनर छीन रही हैं। अपनी खुशी के लिए पक्षी को पिंजरे में बंदकर आप सबने पहले ही उनका उड़ने का हुनर तो छीन ही लिया है, और अब घोंसले बनाने का भी...!"
"मैं अच्छे से समझ गई।" स्वीकारोक्ति की मुद्रा में मुस्कराते हुए गृहिणी ने पर्यावरणविदों को आश्वस्त किया।
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