माँ
माँ




माँ ने पोटली में बांधकर कुछ उबला चना और बासी रोटी रख दी थी । वो भेड़ों को लेकर सुबह ही चला था और दोपहर होने को आयी थी । इस बार भी पुरे टाल में सूखा पड़ा था । कुछ महीने पहले फसलों की कटाई हुई थी । इस आशा में की खेत में बचे फसलों के शेष और घास से भेड़ों की भूख मिट आएगी, वो इन दिनों टाल में ही चराई करवाने लाता था । पहले ऐसा नहीं था । पहले वो रेल की पटरियों से लगे अहाते में दूर तक भेड़ों को ले जाता था पर उसमे भेड़ों को खतरा था । कुछ दिन पहले ही उसके दो भेड़ ट्रेन से कट गए थे । माँ ने उसके बाद भेड़ों को टाल ले जाने का निर्देश दिया था । पर इधर भी खतरा कम नहीं था । आये दिन टाल में डाकू टैक्स की मांग करते थे । उसके अलावा अगर बड़े लोगो की खेत में भेड़ चली जाती तो मुवाजा देना होता था या उसके बदले मार खानी पड़ती थी । पर अब क्या करे भेड़ों को भूखा नहीं छोड़ना ,माँ कहती भेड़ें हमारे लिए लक्ष्मी है । पर क्या माँ ठीक कहती है उसे नहीं लगता था । माँ और मरे बाप ने जिंदगी भर भेड़ें चराई पर अब तक क्या बना लिया । बाबूजी जब जिन्दा थे तो वो उन्होंने पनवारी की एक दुकान खोली थी । पर बात नहीं जमी । जो बची खुची दुकान थी उसपर एक दिन कालाबाजारी का आरोप लगाकर पुलिस ने लूट लिया । बाबू और कालाबाजारी असंभव। फिर भेड़ों का धंधा शुरू हुआ था । मुनाफा कम होने के बावजूद भेड़ों के व्यवसाय को न छोड़ा गया । उसने भी तो स्कूल में दाखिला लिया ही था पर काली अक्षर उसे भैंस लगती और स्लेट पर छपी अक्षरों से वो अपने भेड़ों की तुलना करने लग जाता । उसका ध्यान भटकता हुआ वर्तमान पर आया ।
माँ आज भी भूखी रह गयी थी । क्या खाया था उसने एक मुट्ठी चना और एक काधी रोटी । बूढी शरीर इतना खाकर रह पायेगी क्या । भेड़ों को संभालते हुए उसकी आँखें डबडबा गयी । नहीं नहीं , वो टाल के बीच में पड़ने वाले बगीचे से कुछ फल तोड़ लेगा और माँ के लिए सारा पोटली बचा लेगा । हालाँकि ऐसा करने में पकड़े जाने का डर थदोपहर अब सर पर थी । वो नदी तक पहुंच गया था । नदी भी इस गर्मी में एक रेक मात्र बन क़र रह गयी थी । भेड़ों को नदी के पास छोड़कर चुपके से बगीचे में घुस गया । एक पत्थर उठाया और जोर से आम के गुच्छे पर फेंका । भाग्य से एक साथ कई आम टपक पड़े । वो जल्दी से उन्हें उठाया और नदी की तरफ भाग लिया । नदी पर भेड़ों के साथ बैठकर उसने आम खाया । और वहीं सुखी घास पर लुढ़क गया । आँख खुली तो फिर प्रस्थान हअब वो काफी दूर निकल गया था । उसने सोचा अब लौटा जाये । उसने भेड़ों को मोड़ा । फिर पोटली टटोली । पर पोटली कहाँ है ? उसने इधर उधर देखा । यहीं तो बैठा था वो । कहीं नदी पर तो नहीं छोड़ दिया उसने ।। या भेड़ें खा गयी । वो वही बैठकर रोने लगा । रो धोकर जब वह उठा तो देखा कुछ लोग नदी की तरफ से आ रहे थे । पास आकर उनमे से एक ब' ऐ गरेड़ियाँ ! आज फिर तूने आम चुराया न 'अब फिर से रोने की बारी थी ।उसे लगा था जैसे कोई देख रहा होगा । पर उसने जान संभाली और बोला - नहीं तो ।
' अबे ! मुर्ख किसको बना रहा , नदी में आम की कई गुठलियां रास्ते में पड़ी देखी । एक तो चोरी भी और सबूत सामने छोड़कर झूठ बोलता है लड़के अल्हड थे । अँधेरे में तीर छोड़ रहे थे । गरेड़ियाँ नादान था । रोने लगा' बाबूजी गलती हो गयी । अब कभी इ काम न करेंगे '
लड़के हंसने लगे । सामने वाला बोला -' बेटा कुछ दान दक्षिणा दो नहीं तो हम बता देवेंगे बगीचे के मालिक को , फिर देख तू गाँव में कैसे रहता है । '
माँ का चेहरा झलक आया । अब इस उम्र में कहाँ जाएगी । उसके सर पर पसीने की बुँदे छलक गयी । उसे याद आया पिछले साल जब उसे बुखार लगा था तो माँ दूसरे गाँव गयी थी । आयी तो सर छिला हुआ था । पूछने पर माँ ने बताया कुछ नहीं बस वो गाँव के ढलान पर गिर गयी थी ।
वो बोला - बाबूजी गरीब आदमी है का दे सकते है '
' अरे ये भेंडे है न ! हम जा रहे है एक लेकर । किसी को नहीं बताना नहीं तो सोच ले '
वो ये बोलकर एक भेंड़ उठा क़र चले गए । वो रोते पीटते जब नदी के पास पहुंचा तो उसे पोटली की याद आ गयी । ढूंढा तो एक पत्थर से दबी मिली घर लौटते लौटते शाम हो गयी थी । माँ घर के बाहर ही बैठी थी ।
' आज भेड़ों को कुछ चारा मिला ? '' नहीं माँ ' उसने निराशा से जवाब दिया ।
' पर माँ देख न ! मैंने पोटली बचा ली । टाल में मैंने कुछ फल फूल खा लिया । तू खा ले न अब '
माँ ने पोटली देखी । जैसे सुबह पोटली भरी थी वैसे ही रखी थी ।गरेड़ियाँ को माँ के भूखा न रहने का संतोष था । पर कल माँ भेड़ें फिर से गिनेगी !