माला के बिखरे मोती (भाग ६६)
माला के बिखरे मोती (भाग ६६)
ईशा के कमरे से निकलकर शांति अब छाया और काया के कमरे में आई है, छाया और काया के कपड़े लेने के लिए।
आमतौर पर छाया और काया को घर की बातों से, या कह लीजिए कि सभी भाभियों की आपसी बातों से कोई ख़ास लेना देना नहीं होता है। ये दोनों अपने काम से मतलब रखना पसंद करती हैं।
हां, अगर घर की या इनके माता पिता की या इनके भाइयों की कोई ज़रूरी बात हो, तभी ये दोनों उस पर कोई टिप्पणी करना पसंद करती हैं।
सभी भाभियों से इन दोनों का एक जैसा रिश्ता और व्यवहार है। कोई भी भाभी इनकी चहेती नहीं है और न ही कोई ऐसी भाभी है, जो इन दोनों को नापसंद हो। सभी भाभियों से इन दोनों के मधुर संबंध हैं।
यह बात शांति भी अच्छी तरह जानती है। इसलिए शांति को पता है कि छाया और काया के दिलों में चांदनी भाभी और ईशा भाभी के खिलाफ़ आग लगाना आसान नहीं काम नहीं होगा। इसलिए शांति ने छाया और काया से बात करने से पहले अपनी रणनीति बदली है।
जैसे ही शांति छाया और काया के कमरे में घुसी है, उसने देखा कि छाया और काया नहा धोकर तैयार हो चुकी हैं। दोनों बहुत खुश लग रही हैं। उसने देखा कि छाया और काया शांति के देर से उनके कपड़े लेने आने से पूरी तरह बेपरवाह हैं और तैयार होकर नाश्ते के लिए डाइनिंग टेबल पर जाने के लिए निकल ही रही हैं। शांति ने उन दोनों को कमरे से निकलता हुआ देखकर टोका।
शांति: छाया दीदी, काया दीदी, आप दोनों कहां चलीं? मुझे अपने अपने कपड़े तो देती जाइए। कपड़े धुलवाने नहीं हैं क्या?
छाया: शांति, हम दोनो तो रोज़ की तरह नाश्ता करने डाइनिंग रूम की तरफ़ जा रही हैं। इसमें अनोखी बात क्या है? बहुत ज़ोर से भूख लगी है। तूने ही आज कपड़े लेने आने में देर कर दी।
शांति: क्या बताऊं छाया दीदी। आज तो सभी भाभियाँ मुझसे बात करने के लिए जैसे बहुत ही बेताब थीं। सभी ने मुझे बारी बारी से अपने अपने कमरे में रोक कर बातें करनी शुरू कर दीं। इसी वजह से मुझे आप दोनों के कमरे में आने में देर हो गई। वैसे मैं आपको बता दूं, आज आपको नाश्ते की टेबल पर कोई नहीं मिलने वाला है। सारी की सारी भाभियाँ मुंह फुलाए जो बैठी हैं।
काया: क्यों मुंह फुलाए बैठी हैं सारी भाभियाँ? क्या बात हो गई सुबह सुबह? किसी ने कुछ कहा है क्या? या तू ख़ुद ही बातें बना रही है?
शांति: मैं ऐसे ही बातें क्यों बनाने लगी भला? मुझे बातें बनाने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं है क्या काया दीदी? आप तो मुझे जानती हैं कि मैं तो अपने काम से मतलब रखती हूं।
छाया (हँसते हुए): हां, यह बात तो पूरी दुनिया जानती है कि तू सिर्फ़ अपने काम से काम रखती है। लेकिन तुझे यह कैसे पता है कि सारी भाभियाँ मुंह फुलाए बैठी हैं।
शांति: सबके अपने अपने कारण हैं मुंह फुलाकर बैठने के। चांदनी भाभीजी और ईशा भाभीजी तो एकेडमी खुलने की खुशी में और अहंकार में मुंह फुलाए बैठी हैं। बाक़ी भाभियाँ उन दोनों से जलन के कारण मुंह फुलाए बैठी हैं।
काया: बाक़ी भाभियों का मुंह फुलाना तो फिर भी समझ में आता है शांति। लेकिन चांदनी भाभीजी और ईशा भाभीजी का मुंह फुलाना समझ नहीं आ रहा है।
शांति: काया दीदी, आप बहुत भोली हैं। चांदनी भाभीजी और ईशा भाभीजी ने अहंकार में मुंह फूला रखा है कि अब ये दोनों तो घर से बाहर जाकर काम करके पैसा कमाएंगी। इसलिए अब इन दोनों की अहमियत इस घर में बढ़ गई है। इसलिए अब ये दोनों न तो घर के किसी काम में हाथ बटाएंगी और न ही डाइनिंग टेबल पर सबसे पहले जाकर बैठकर सबके आने का इंतज़ार करेंगी। अब तो ये दोनों भाभियाँ अपनी दिनचर्या के हिसाब से काम करेंगी। अब ये दोनों किसी और की परवाह नहीं किया करेंगी।
छाया: ऐसी बात तुझसे किसने कही है? चांदनी भाभीजी ने या ईशा भाभीजी ने?
शांति (थोड़ा घबराकर): दोनों ने ही घुमा फिराकर मुझसे यह बात कही है। आप दोनों के बारे में भी दोनों ने बहुत कुछ बोला है।
काया: क्या बोला है हमारे बारे में?
शांति: रहने दीजिए काया दीदी। सुनकर आपको दुख होगा।
छाया: बता न शांति, किसने क्या बोला है हम दोनों के बारे में? हमें जानना है।
शांति: छाया दीदी, आप दोनों के बारे में दोनों ने कहा है कि छाया दीदी और काया दीदी अभी भी बच्ची बनी रहती हैं। अपनी कोई ज़िम्मेदारी समझती ही नहीं हैं। पढ़ाई पूरी होने के बाद भी घर पर ही पूरे दिन बेकार पड़ी रहती हैं। इनको भी कुछ काम करने के बारे में सोचना चाहिए या घर की ही कोई ज़िम्मेदारी अपने हाथों में लेनी चाहिए। कल को जब इनकी शादी हो जाएगी, तब भी तो ससुराल में जाकर अपनी ज़िम्मेदारी उठानी होगी। लेकिन यहां, जब पांच पांच भाभियाँ घर में हैं, तो इनको पत्ता भी नहीं हिलाना है। पढ़ लिखकर भी इन दोनों ने क्या उखाड़ लिया है। दोनों बहनें अपने मम्मी पापा और भाइयों पर बोझ बनकर बैठी हैं।
शांति की यह बात सुनकर छाया और काया की आँखें नम हो गई हैं। दोनों ने सुबक सुबक कर रोना शुरू कर दिया है।
काया: ऐसा कहा इन दोनों भाभियों ने हमारे बारे में। हम दोनों इन पर बोझ हैं। तू ही बता शांति, क्या कुंवारी बेटियों और बहनों को माता पिता और भाई बोझ समझते हैं? क्या हम दोनों बहनें अपने मम्मी पापा और भाइयों पर बोझ हैं?
शांति: नहीं काया दीदी। आप दोनों मम्मीजी और पापाजी पर बोझ नहीं हैं। सारे भाई भी आप दोनों पर जान लुटाते हैं। लेकिन भाभियाँ शायद ऐसा नहीं सोचती होंगी। उन्हें आप दोनों अब बोझ लगने लगी होंगी। लेकिन सारी भाभियाँ शायद ऐसा नहीं सोचती हैं। क्योंकि यह बात तो चांदनी भाभीजी और ईशा भाभीजी ने ही घुमा फिराकर मुझसे कही है। शायद इन दोनों ने एकेडमी खुलने के अहंकार में कह दी होगी। आप दोनों इस बात को दिल से मत लगाइए।
छाया: मैं अभी जाकर दोनों भाभियों से यह बात पूछती हूं कि क्या हम दोनों आपको अपने मम्मी पापा और भाइयों पर बोझ लगती हैं। क्या हम दोनों आप दोनों पर बोझ हैं।
शांति (कुटिलता से): नहीं छाया दीदी, अभी नहीं। आगे बहुत से मौक़े मिलेंगे आपको, उनसे आमना सामना करने के। अच्छा, अभी मैं चलती हूं। मम्मीजी और पापाजी के कमरे से उन दोनों के कपड़े भी लेने हैं। लगता है, आज तो मम्मीजी मेरी जान ही ले लेंगी। मैंने बहुत देर जो कर दी है, उनके कमरे में जाने में।
(क्रमशः)