Ramashankar Roy

Tragedy

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Ramashankar Roy

Tragedy

लव का लास्ट इनिंग

लव का लास्ट इनिंग

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शाम ढल रही थी और अपनी बूढ़ी आँखों से बिल्डिंग की ओट में छिपते सूरज और उनकी मिटती लालिमा को वह निहार रही थी। वृद्धाश्रम के गार्डेन के झूले पर बैठी शिवानी को अपनी जीवन संध्या में उतर चुके अंधेरा का भान हुआ जिसमें फिर से सुबह होने की कोई उम्मीद शेष नही रह गयी है। वह अपने यादों के रास्ते चलकर न जाने कहाँ पहुंच जाती क्योंकि उसके पास यादों के सिवा बचा ही क्या है !!

तभी गार्डेन में अपने तीन बच्चों के साथ टहलती बिल्ली आ धमकी और उसका एक बच्चा उछलकर शिवानी के गोद मे बैठ गया मानो यह जगह उसके लिए आरक्षित हो। और शिवानी की ममतामयी हाथ उसको सहलाने लगे । बिल्ली का नन्हा सा बच्चा आंखे बंद कर बेफिक्र पसर गया जैसे उसे असीम आनंद की प्राप्ति हो रही हो ।

मालूम नही कितनी देर तक वह बिल्ली के पीले को सहलाती रही और वह वात्सल्य लूटानेवाली हाथों के स्पर्श का आनंद लेता रहा। उसको कोई भय नही था क्योंकि उसकी माँ वहीं पर इर्द गिर्द चक्कर काट रही थी । शिवानी को अपना एकलौता बेटा चिंटू यादों में घुस गया । आँचल में छुपकर स्तनपान कराते समय इसी प्रकार उसको थपकी लगाती और सहलाती थी । उसको दूध पिलाते समय मातृत्व के मधुर आनंद में खो सी जाती थी। शादी के बारह साल बाद बड़ी मन्नत और दावा दुआ के बाद चिंटू पैदा हुआ था ।उसके देख-रेख मे किसी प्रकार की कमी नही हो इसके लिए शिवानी ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी थी और केवल चिंटू की माँ बनकर रह गयी थी। आज उसी चिंटू ने उसको वृद्धाश्रम मे डाल दिया क्योंकि घर में उसकी उपस्थिति से उनकी प्राइवेसी डिस्टर्ब हो रही थी ।

अभी तक शिवानी को यह नही समझ मे आया कि उसके घर पर रहने पर उनकी प्राइवेसी कैसे डिस्टर्ब हो रही थी। मुम्बई में उनका 3BHK फ्लैट है । मास्टर बेडरुम मे बेटा बहु सोते हैं दूसरे मे आठ साल और पाँच साल के पोता-पोती सोते हैं । मैं तीसरे रूम मे सोती थी जिसको आजतक स्टोर रुम की तरह उपयोग में लाया जाता था। मैं भी एक जीवित पदार्थ की तरह इस स्टोर रूम में फेंक दी गयी थी ।मेरी जैसी बहुत सारी वस्तु इसमे पड़ी थीं जिसका गाहे बगाहे प्रयोग के समय याद आती थी , सुध नही आया तो खरीद लिया जाता था । ऐसी ही अनुपयोगी वस्तुवों के बीच मुझे घुसेड़ दिया गया था ।

बेटा के पास मेरे लिए समय नही था , बहु को घर मे मेरी उपस्थिती से ही एलर्जी थी और बच्चे मुझे बिनकाम का देहाती बुढ़िया समझते थे । मुझसे ज्यादा महत्व घर पर काम करने वाली बाई की थी ।

मेरे आने के बाद बहु ने नौकरानी हटाने की चाल चली थी लेकिन बेटा के नजर मे यह बात आ जाती इसलिए यह वह नहीं कर पायी । लेकिन मुझे कोई भी काम नही करने देती यही कहती "आपको समझ मे नही आएगा , आपके बस का नही है , आदि इत्यादि ।"

चिंटू के पापा मनोविज्ञान के एच ओ डी थे अपने कॉलेज मे ।आरा में अपना बंगलानुमा घर था । शिवानी का अरेंज्ड मैरिज था और सास ससुर असमय गुजर गए थे इसलिए उसने शुरू से ही घर को अपने हिसाब से संभाला था । आज भी उसको लगभग पचास हजार का पेंसन मिलता है। वह कहीं भी रह सकती थी लेकिन बेटा और उसके परिवार के साथ रहने के लोभ के कारण अपनी बहु के हाथों हो रही उपेक्षा और अपमान का घूँट पी रही थी । अपने मायके भी नही जा सकती क्योंकि भैया-भाभी के गुजर जाने के बाद उस घर से मान आदर की अपेक्षा रखना बेमानी होगी ।

बहु हमेशा पंगा करने का मौका ढूंढते रहती थी । बच्चों का समर वेकेशन शुरू हुआ और दिन भर दोनो मोबाइल पर गेम खेलते रहते ।मैने उनको ऐसा करने से मना किया । बचे तो बच्चे हैं उन्होंने जाकर मेरी शिकायत अपनी माँ से कर दिया । फिर क्या था बहु आग बगुला हो गयी और यह निर्णय सुना दिया कि अब मै इस औरत के साथ इस घर मे नही रह सकती । उस दिन उसकी माँ भी आई थी । उसने उसको समझाने के बजाए आग में घी का काम किया । चिंटू बाहर गया था ,अगले रोज जब वह आया तो माँ बेटी ने मालूम नहीं क्या लगाया बझाया कि वह आकर मुझे बोला " माँ तुमको मैं अब वृद्धाश्रम में शिफ्ट कर देता हूँ । मेरे परिवार के साथ आपका रोज का खिच-खिच अब और नही झेल सकता ।"

मैं भी साइकोलॉजि की विद्यार्थी और एच ओ डी की पत्नी थी । मुझे इन शब्दों के पीछे छिपे मनोवैज्ञानिक कारणों को समझने में देर नही लगा। मैने भी कहा बेटा मै भी यह बात तुमसे कहने वाली थी की मुझे कोई ऐसी जगह दिखा दो जहाँ हमउम्र लोगो से मिल बैठकर टाइम पास हो जाए। इस घर मे सबलोग इतना व्यस्त हैं कि किसी को मुझसे बात करने की फुर्सत और जरूरत नही है ।

सबको सुखद आश्चर्य हुआ क्योंकि किसी को इस उत्तर की अपेक्षा नहीं थी । फिर यह तय हुआ कि जल्द से जल्द किसी वृद्धाश्रम की तलाश करके शिवानी जी को शिफ्ट कर दिया जाएगा । फिर मुझे उतन्न के 'दादा दादी आश्रम ' में पहुंचा दिया गया । इसमे महत्वपूर्ण भूमिका मेरी समधन जी का भी रहा।

आश्रम मे आने के बाद मानसिक रूप से मैं फिर से शिवानी बन गयी , बूढ़ी शिवानी लेकिन स्वभाविक स्वाभिमानी शिवानी। मैने अपने अस्तित्व से चिंटू और उसके परिवार को जितना खरोंचकर हटाने की कोशिश करती , नफरत और घृणा के नए रंग मे रंगकर वो उग आते। पति तो इस दुनिया से चले गए थे अतः उनकी याद आती थी लेकिन सताती नही थी । बेटा ने खुद से अलग कर मुझे जीते जी मार डाला था । उसको पाल पोसकर बडा करने मे जो कष्ट मैने झेला था उस समय उसमे आनंद आता था । ऐसा लगता था यह माँ होने का पारितोषिक है। आज वो सारी बातें चुभ रही हैं। न जाने जाडे की कितनी सर्द रातें आँखों मे विस्तर का गीलापन टटोलती कटी होगी ताकि मेरा बेटा आराम की नींद सो सके । कई बार पति के प्रणय निवेदन को ठुकराया था, अपनी भावना को दबाया था सिर्फ इस कारण से की बेटा या तो जग रहा है या बड़ी मुश्किल से सोया है कहीं उसकी आँख नही खुल जाए । तभी बिल्ली ने कुछ कहा और उसका पिला शिवानी के गोद से उछलकर अलग हो गया। ठीक ऐसे ही मेरा चिंटू मेरा इशारा पाते ही मेरी बाहों मे समा जाता था और मैं उसको गले लगाकर दुनिया की सबसे खुशनसीब नारी महसूस करती थी। IIT मुम्बई के हॉस्टल में जाने के पहले तक उसकी आदत थी जबतक मेरे हाथ से एक निवाला नही खाता था उसका पेट नहीं भरता था । बचपन मे मुझे छोड़कर एक रात किसी के पास नही रह पता था और आज मेरी उपस्थिति से उसके परिवार मे परेशानी हो रही है ।

शिवानी साक्ष्यभाव से अपने जीवन के बीते पलों का मूल्यांकन करने लगी ।आखिर उससे कौन सी एसी भूल हुई जिसके परिणामस्वरूप उसको वृद्धाश्रम का दिन देखना पड़ा । एक औरत के रूप मे उसने अपने माता-पिता द्वारा चयनित पति के साथ ईमानदारी से सामाजिक और संसारिक जीवनचर्या का पालन किया।माँ के रूप में बेटा के लिए जो भी अधामत उठाना चाहिए उठाया और उसको एक सफल इंजीनियर बनने में अपनी भूमिका अदा किया जिसके चलते आज वह इंफोसिस जैसी कंपनी में उच्च पद पर है और अमेरिका इंग्लैंड सब रह-देख लिया है । यहाँ तक कि उसने लव मैरिज किया हमने वो भी सहर्ष स्वीकार कर लिया ।जब मुम्बई में घर ले रहा था तो उसको बीस लाख रुपया का मदद भी किया। उसके हर खुशी हर मौके पर उसके साथ खडी रही।जब बहु को बेटा पैदा हुआ था तो उसको पाँच तोले का कण्ठहार भेंट किया था।अभी छः महीने पहले उसकी शादी की बारहवीं सालगिरह पर चार तोले का कंगन बनवाया था। शुरू से ही उसने मुझसे दूर मुम्बई मे अपने हिसाब से जीवन बिताया। मेरे पास आरा में जब भी आती तो बहु बच्चों को किसी प्रकार की असुविधा न हो इसका ख्याल रखा।अपनी जिंदगी कूलर और पंखा मे निकल दिया लेकिन इनलोगों को दो चार दिन भी असुविधा न हो इसके लिए ए सीशिवानी वृद्धा आश्रम बेटा लगवा दिया था । बाजार मे जाने पर कोई भी ऐसा साड़ी या सूट दिखता और मुझे लगता कि बहु पर अच्छा लगेगा खरीद लेती। हर रोज उनके पसंद का खाना बनाती लेकिन उनके मुँह से तारीफ के दो शब्द कभी सुनने को नही मिला।

आज इस आश्रम मे आए शिवानी को चार महीने हो गया लेकिन एक बार भी मिलने के लिए चिंटू नही आया और नही उसका फोन आया । वह जानती थी उनसे कोई भी अपेक्षा बेकार है लेकिन माँ का दिल उम्मीद रखना नही छोड़ पा रहा था। रिश्ते पानी की तरह रंगहीन ,गंधहीन एवं आकारहीन होते हैं लेकिन जिंदा रहने के लिए पानी की तरह ही जरूरी होते हैं। रिश्ते कि अशुद्धता कभी भी जानलेवा साबित हो सकती है। अतः सावधनी जरूरी है। चिंटू के पापा की मृत्यु के बाद शिवानी को अकेलापन महसूस हो रहा था जिसके चलते वह बेटा के पास चली आयी ।यहाँ आने के कुछ समय साथ रहने बाद मालूम पड़ा कि इस रिश्ते की शुद्धता प्रभवित हो चुकी है जिसके चलते उसको वृद्धाश्रम मे भेज दिया गया। धीरे धीरे शिवानी आश्रम की दिनचर्या की अभयस्त हो गई। समय से उठना फिर शिव मंदिर मे जाकर पूजा करना। नाश्ता करके अपने पसंद का कोई भी काम मे हाथ बटाना । बीमार लोगों का सेवा करना । शाम को शिव मंदिर में भजन कीर्तन करना और फिर खाना खाकर सो जाना।आश्रम मे एक लाइब्रेरी भी है जिसमें अधिकतर धार्मिक पुस्तक और महान विभूतियों की जीवनी पर पुस्तकें उपलब्ध है।

एक रोज शिवानी शिव मंदिर में ध्यान लगाकर बैठी थी ।मंदिर लगभग खाली हो चुका था ।उसकी आँख खुली तो देखा कि एक हमउम्र बुजुर्ग अपलक उसको देखकर मुस्कुरा रहा है । शिवानी को वह दृष्टि असहज कर रही थी लेकिन उस नजर मे एक खिंचाव और आकर्षण था । वह उस चेहरे को पहचानने की कोशिश कर रही थी । तभी उस अनजान व्यक्ति ने पूछा 'कैसी हो शिवा?'

उस आदमी के मुँह से शिवा सुनते ही उसके स्मृतिपटल पर एक बिजली सी कौंध गयी और वह आवक सी हो गई।

उसने पूछा - के के !!

"यस दिस इज द सेम के के शिवा "

शिवानी- तुम यहाँ कैसे पहुँच गए? बाकी सब ठीक ठाक है ना !

केके - तुम्हारी और मेरी मुलाकात जहाँ पर हुई है शिवा, हमारे पास अपनी स्थिती छुपाने का विकल्प नहीं बचा है। मैं तुमसे यह नही पूछूंगा की तुम यहाँ पर कैसे पहुँची ।तुम्हारे माथे से मिट चिकि सिंदूर की लक्ष्मण रेखा यह बताने के लिए काफी है कि अब तुम्हारा कोई सहारा नही रहा जो तुम्हारे कदमों को इस आश्रम तक आने से रोका हो ।

शिवानी - क्या तुम्हारे बेटा बहु ने भी तुमको अपने घर से निकाल बाहर कर दिया ?

केके यानी कैलाश कुमार जो शिवानी के बैचमेट और उसका फर्स्ट क्रश था। शिवानी के बैच का आल राउंडर था । केके का कॉलेज की सभी लड़कियों मे अलग क्रेज था ।लेकिन वह तो शिवानी का दीवाना था । वह शिवानी से शादी भी करना चाहता था लेकिन दो बातें आड़े आ रहीं थी । एक शिवानी परम्परागत मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार से थी और कैलाश बनिया जात का धनाढ्य परिवार से था । दोनो के पारिवारिक संस्कार का कोई मेल मिलाप नहीं था । लेकिन जब दिल किसी पर आता है तो कौन से प्रतिबंध को मानता है। फाइनल ईयर मे ही शिवानी की शादी तय हो गयी और कैलाश से उसका रिश्ता हमेशा के लिए टूट गया । कैलाश भी दूसरे शहर का था और शिवानी की भी शादी दूसरे शहर में हो गयी । शिवानी सबकुछ भूलकर अपने जीवन मे आगे बढ़ गयी जैसा अधिकांश लड़कियों को करना पड़ता है। लेकिन कैलास 24 कैरेट वाला आशिक था । उसने तय कर लिया कि शिवानी नही तो कोई नही । लेकिन इसके लिए उसने कोई नाटक नही किया ,नही देवदास बना । हाँ उसने किसी से भी शादी नही किया । IIM अहमदाबाद से MBA करके अपना खुद का बिज़नेस एम्पायर खड़ा किया। आज के हजार करोड़ के KK Industries का मालिक वही कैलाश कुमार है जो शिवानी के सामने वृद्धाश्रम मे बैठकर मुस्कुरा रहा था ।

केके ने कहा शिवा तुम्हारे सिवा कोई पसंद ही नही आया इसलिए अभी तक कुँवारा हूँ - तू नही तो कोई नही वाली बात है।

शिवानी झेंप गयी लेकिन मुस्कुराते हुए बोली तुम्हारी मजाक करने की आदत अभी तक नही गयी।

केके - मजाक नही , हकीकत है शिवा ! तुम्हारे अलावा कोई पसंद नही आया तो क्या करूँ ? जिस मोड़ पर तुमने छोड़ा था आज भी वहीं खड़ा हूँ ।एक आवाज तो देकर देखो।

आज हमलोग अपनी जिंदगी की लास्ट इनिंग मे खड़े है अब तो अपने लिए जीने का साहस दिखावो । देखो एक सच्चे साथी की जरूरत जवानी से ज्यादा बुढ़ापे में होती है । यह एक नियति का ही खेल है की मै अपना बुढापा बिताने उसी आश्रम में आ गया जहाँ तुम पहले से मौजूद थी। उस समय तो तुम्हारे ऊपर परिवार और समाज का दबाव था ।आज तुम उन सारे बंधनो से मुक्त हो क्योंकि उन्ही रिश्तों ने तुम्हे ठुकराकर वृद्धाश्रम भेज दिया । यकीन मानो तुमको पाकर आज भी मैं उतना ही खुशी महसूस करूँगा जितना चालीस साल पहले करता ।

शिवानी - मुझे सोंचने का मौका दो ।

केके - कितना समय चाहिए ।

शिवानी - सिर्फ कल का एक दिन

केके - चालीस साल के ऊपर का चालीस घंटे भी ले लो ।

फिर दोनो ने अपने जीवन की राम कहानी एक दूसरे को सुनाया । कब आज का दिन पंख लगाकर उड़ गया पता ही नही चला ।

रात को शिवानी के आँख से नींद गायब थी क्योंकि कल का दिन उसके लिए अहम फैसले का दिन था ।

कल चिंटू का बर्थडे है और शिवानी ने निर्णय किया कि यदि कल के दिन भी चिंटू ने उसको याद नही किया तो वह माँ की पदवी भी त्याग देगी । फिर केके के साथ नए मंजिल और नए रास्ते पर बिना किसी रिश्ते के बोझ के फिर एक बार शिवानी बनकर आगे बढ़ जाएगी । सोंचना आसान था लेकिन उसका सामना करना एक माँ के लिए बहुत ही कठिन था।

अगली सुबह वह स्नान करके भोलेनाथ का पूजा किया और बेटे के लंबी आयु की दुआ मांगी । फिर अपने रूम मे मोबाइल पर नजर गड़ाए बैठी रही बिना खाए पिए । लेकिन चिंटू का फोन नही आया और माँ शिवानी टूटकर बिखर गयी ।

फिर उसने एक दृढ़ निश्चय किया कि अब वह केवल शिवानी बनकर जिएगी और प्यार का लास्ट इनिंग मे आल राउंडर की भूमिका निभाएगी।

चालीस घंटे बाद केके शिवानी के सामने अपने प्रस्ताव का उत्तर जानने के लिए उपस्थित हो गया । शिवानी ने केके को अपनी मौन स्वीकृति दे दी। फिर दोनो ने वृद्धाश्रम मे धूमधाम से शादी रचाया और अपनी हजार करोड़ पूरी संपति इस ट्रस्ट को दान कर दिया।

इस दादा- दादी वृद्धाश्रम का नाम बदलकर शिवानी प्रेमाश्रम रख दिया गया । सभी बुजुर्गों के रहने खाने और सेवा सुश्रुषा का सर्वोत्तम व्यवस्था किया गया।



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