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Rajeev Rawat

Abstract

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Rajeev Rawat

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लोकतंत्र अमर रहे

लोकतंत्र अमर रहे

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मंगलू तो खटिया पर पड़ा करवटें बदल रहा था। कल नेता जी उसके एरिया में आ रहे हैं। भीड़ का इंतजाम करना होगा हलांकि उसके बधें बधाये लोग थे जो उसके कहने पर सभा में पहुंच जाते थे। एक व्यक्ति पर तीन सौ से पांच सौ तक मिलते थे। यह सब चुनाव के ऊपर निर्भर करता था। अब चुनाव भी तो होते ही रहते हैं। कभी सोसाइटी का, कभी पंचायत तो कभी नगरनिगम, विधानसभा और लोकसभा का। हर चुनाव का रेट भी तो अलगअलग होता है।

 उसने लेटे लेटे उँगलियों पर हिसाब लगाया। पांच सौ लोगों का तीन सौ रूपये के हिसाब से मिलेंगे एक लाख और पचास रूपये कमीशन के हिसाब से बच जायेगेंपच्चीस हजार रूपये कल तो इमरती के लिए पायल का पक्का इंतजाम हो गया और उसका दारू मुर्गा फ्री

आजकल इमरती भी बहुत खुश रहती है।अब कोई ताने तो नहीं मार सकता कि उसका पति निठल्ला,बेरोजगार है

 मंगलू सुबह सुबह ही उठ गया था। दातुन रगड़ते हुए उसने इमरती को आवाज लगाई, एक कप में गर्म गर्म चाय लेकर इमरती हाजिर थी। सच में पैसे में कितना दम होता है। कल तक दस बार पुकारने पर खीजने वाली इमरती आज एक ही आवाज में चाय लिए खड़ी थी

सुनो जी वापिस आते समय कुछ सब्जी भाजी भी लेते आना

उसने चाय सुड़कते हुए हां में सर हिला दिया। आज मेरे लिए खाना न बनाना जलसे में ही पूड़ीसब्जी का इंतजाम है मौका मिला तो तेरे लिए भी डाल लाऊंगा।

वह जल्दी से गांव की ओर चल दिया। आजकल साला इस काम भी बहुत कम्पटीशन हो गया है। नेताओं जैसी वैचारिकता साधारण आम जनता में आ गयी है, वह मन ही मन बुदबुदाया जहां चार पैसे ज्यादा मिले, फायदा दिखा, वहीं नारे लगाने चले गये। संबधो का कोई मोल ही नहीं रह गया, कोई नैतिकता ही नहीं रही। सब बिकाऊ हो गये हैं

जैसे तैसे लोगों को इकट्ठा करके सभा स्थल की ओर चल दिया। सभी के हाथों में झंडे पकड़ा दिये थे। नारे लगाते हुए चल रहे थ। आगेआगे मंगलू सर पर टोपी लगाये था। अब नारे लगाने में कोई समस्या ही नहीं होती थी सिर्फ नाम बदल जाते थे बाकी नारे जिन्दाबाद मुर्दाबाद वही रहते थे। इसमें भी बहुत लोग आलसी टट्टू थे। मात्र हाथ उठा देते थे। उनके पैसे काटने होंगे, उसे मालूम था उसके दाम नम्बर के साथ उनके प्रदर्शन पर भी निर्भर होते हैं

सांझ ढल चुकी थी। सभा समाप्त हो गयी। कथा के बाद मिलने वाला प्रसाद भी नोटों के रूप में गृहण करके श्रोता जा चुके थे। बस बच गये थे। जनता के ठेकेदार जिनका कमीशन उनके वैल्यूएशन के आधार पर बटना था। मंगलू का नम्बर आया तो उसने अपना हाथ बढ़ाया। पेपर में लिपटी बोतल के साथ एक लिफाफा भी था। उसने सलाम ठोकते हूए कहा

हुजूर अब तो मंहगाई के साथ साथ कम्पटीशन कितना बढ़ गया है, कुछ रूपये बढा़ दीजिए न!

अबे साले कुछ दिनों पहले ही तो एक पर एक हजार किये हैं, अब क्या नेता जी सब कुछ तुम्हें देकर जंगल की ओर निकल जायेंनेता का खास आदमी चिल्ला पड़ा।

 मंगलू की समझ में नहीं आया कि उसे तो अब भी उतने ही मिल रहे हैं फिर बढ़ी हुई राशि कहां गयी?

 शाम बोटी और रोटी के साथ दारू की महफिल जमी हुई थी लेकिन मंगलू अब भी अपने हिसाब में ही उलझा हुआ था। इधर दारू हावी हुई। उधर वह मनकू से जो उसको भुगतान करता था से उलझ गया कि यह बढ़ा हुआ पैसा कहां गया। बड़ी मुश्किल से लोगों ने उन दोनों को अलग किया। मंगलू को समझाया गया कि वह तो पेटी कान्ट्रेक्ट्रर है। मंगलू हैरत से देखने लगा कि यह पेटी कान्ट्रेक्ट्रर क्या होता है?

अरे बाबा तू समझता नहीं हैलगड़ा गुरू नशे में ज्ञान दर्शन देने लगाजिनकी ऊपर तक पहुंच होती है और पैसा होता है वह ठेके के टेंडर भर कर ठेका लेते हैं और कमीशन, लाभ काटकर काम हम छोटों को करने के लिए देते हैं तो हम होते हैं पेटी कान्ट्रेक्ट्रर असली मलाई वो खाते हैं और हमको मिलता है छाछपता नहीं किसकी समझ में क्या आयासभी के सिर हिले और धीरे धीरे रात के अंधेरे वहीं लुढक गये

 अब धंधे में बढोत्तरी होने लगी थी। घर के ही चार पांच सदस्य हो जाते हैं यानि प्रतिदिन पच्चीस सौ, इतना तो आंखे फोड़ बने बावू भी न कमाते होगें।

 उसके अधरों पर एक मुस्कान आ गयी। अब तो यदि सभा में लोगों को ले जाने का ठेका न मिले तो विरोधियों की सभा भंग करने के लिए ठेके मिलने लगे हैं और तो और जाति धर्म के नाम पर जुलूस के ठेके, पत्थर फेंकने सरकारी और गैरसरकारी सम्पत्ति को नष्ट करने के ठेके, उपद्रव के ठेके, रोजगार ही रोजगार इसके बाद भी हम नारे लगाते है कि हमें काम दो

मंगलू अब समझदार हो गया था। उसकी जेब में कई टोपियां रखी रहतीं थीं। जिस पार्टी ने ठेका दिया उसकी टोपी उसके सिर पर सज जाती थी और जिन्दाबाद के नारे भी। सांझ हो रही थी। बरगद के पेड़ के नीचे आने वाले चुनावों के वारे बहस छिड़ी हुई थी। कागज की पत्रों मे फैली नमकीन और पार्टी कार्यालय से भेजा गया सोमरस। लगाये जाने नारों के पोस्टर आ गये थे। विष्णु ने अपने हाथ में आया पोस्टर देखकर बोला

लोकतंत्र बचाओदादा ये लोकतंत्र क्या होता है?

लो ये लोकतंत्र नहीं जानताखी खी कर हंसते हुए लोकमन ने कहा

सभी बैठे लोग भी साथ में ठहाका लगाने लगे। विष्णु झल्ला गया

अच्छा तो दद्दा इतने समझदार हो तो तुम्ही बताओ कि लोकतंत्र माने क्या होता है?

 अब चारों ओर चुप्पी छा गयी। मंगलू अब छोटका नेता बन गया था। उसने कई बार बड़े नेताओं की सभायें सुनी थी, बोला

लोकतंत्र माने फ्री बिजली, फ्री राशन और फ्री घर, गैस फ्री और चुनाव के समय जो हर साल आते ही रहते हैं, फ्री कपड़ा और फ्री दारू और पांच सौ रूपया प्रतिदिन फ्री।

 सभी उसकी समझदारी के कायल हो गये थे।

दादा यह सब फ्री आता कहां से है?

नेताओं से ?

अरे पागल अधिकतर नेता तो खुद कमाने के लिए नेता बनते हैं,जो कल तक पैदल नारे लगा रहे होते हैं वह धीरेधीरे मोटरसाइकिल से कार और कार से हवाईजहाज, कच्चे मकान से कोठी तक पहुंच जाते हैं। बाप रे बाप जाने कौन सा जादू होता है कि बिना काम किये करोड़पति बन जाते हैं और हम साले वहीं के वहीं रह जाते हैं। यह पैसा आता है सरकार सेअपनी समझदारी पर उसने एक घूंट सोमरस का गले में उतारा ही था कि

लेकिन ने सरकार कहां से लाती है?उसने फिर प्रश्न दाग दिया गया

अब तक मंगलू रंग में आ गया था

तू तो साला बुद्धू का बुद्धू ही रहेगा, अरे कुछ लोग तन को महीने भर काम में खपा कर तनख्वाह पाते हैं और कुछ लोग जो अपनी समझदारी और मेहनत से काम करके व्यापार से लाभ कमाते हैं। सरकार उनकी मेहनत की कमाई से हिस्सा लेकर हम जैसे लोगों देती है और मंत्रियों, सांसदों की लाखों की आय फ्री और तो और नौकरी करने वाले सारी जिन्दगी नौकरी करने बाद पेंशन पाते है और यह नेता एक दिन के बाद ही

वाह दादा वाहघर फ्री, राशन फ्री, बिजली फ्री, कमाई फ्रीकिसी ने सच्चा कहा कि अजगर करें न चाकरी, पंछी करें न काम, दास मलूका कह गये, सबके दाता रामसच्ची दादा इसी को कहते हैं लोकतंत्र

नशे की झोंक में भरी महफिल मे जोर से एक नारा गूंजने उठा

हमारा लोकतंत्र सभी जोर से चीखे अमर रहे।


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