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Anuradha Negi

Romance

4  

Anuradha Negi

Romance

लम्हें जिंदगी के

लम्हें जिंदगी के

3 mins
248

एक अलग और बड़ी ही खूबसूरत सी जिंदगी थी तब जब तुम साथ होते थे वो सत्य जो न सुनने में कड़वा लगता था न समझने में संकोच दिलाता था ,और जो आज काल्पनिक बन कर रह गया है मेरे लिए। कैसी शामें थी वो जब तुम मुझे दफ्तर से लेने आते थे अपने स्कूटर पर सवार रोड के एक किनारे मेरे दफ्तर से छूटने के समय की प्रतीक्षा करते थे ,फोन पर फोन करके मुझे जल्दी निकलने को कहते थे।और जब मैं आ जाती फिर बिना किसी चिंता और शंका के तेज रफ्तार से अपने स्कूटर पर बैठाकर मुझे उस पार्क में ले जाते थे जहां हम अंधेरा होने तक ढेरों बातें करते थे। वहां बैठे सभी बुजुर्ग दादा दादी जो एक गोल घेरा बनाकर अपनी अपनी घरों की और बीते दिनों की बातें किया करते और हम उनकी बातें सुनकर अपने बुढ़ापे की कल्पना करते थे। कि यदि हम दूर हो गए हो इतने खूबसूरत न रहे चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाए तो क्या तब भी हम इस तरह बेझिझक अपनी बातें एक दूसरे से कर पाएंगे।क्या हम हमारे बच्चों को कभी बताएंगे कि इनसे मिलो ये हमारे दोस्त हैं या थे जो हमारे दिल के बहुत करीब थे।क्या हम उस पार्क में फिर कभी मिल पाएंगे जहां एक तरफ बच्चे बरसात के समय जामुन गिरात थे ।क्या हम फिर कभी घर से खाने का डिब्बा अपने थैले में रखकर उस पार्क में आकर खा पाएंगे?? क्या वो गिलहरी हमें फिर मिलेगी या उसकी कोई पीढ़ी जिसे उसने बताया हो कि यहां पर दो लोग बैठा करते हैं हंसते खेलते जो मुझे खाना खिलाते हैं कभी चिप्स कभी रोटी कभी तीखे चावल। कितना सुंदर था वो लम्हा जब मुझे बुखार था और तुमने मेरे मना करने के बाद भी मुझे मिलने बुलाया पार्क में बैठे वहां मेरा सर अपनी गोद में रखकर मुझे सरदर्द से छुटकारा दिलाया और वो सफेद कुत्ता जो हर बार एक आवाज पर हमारे सामने आ जाता था ये सोचकर कि हम उसे कुछ खाने को दे रहे हैं। क्या वो दिन फिर लौटेंगे कभी हम उतनी उम्र जी पायेंगे कि हम उन लम्हों को फिर से दोहरा सकें।देर हो जाने पर टेढ़े मेढे कम समय लगने वाले रास्ते पर स्कूटर भगाकर मुझे मेरे कमरे के बाहर छोड़ जाना।सोचती हूं उन पलों को फिर से जीयूं दफ्तर से सीधे घूमने ना जाकर पहले कमरे में जाऊं और फिर समय लेकर घूमने निकलें उस आइसक्रीम वाले को मिलें जो हमारा इंतजार कर रहा होता है २ आइसक्रीम और एक पानी की बोतल खरीदने के लिए। फिर से वो लम्हें दोहराऊं उस बनारस वाले ढाबे में रात के खाने को जाऊं जहां हम जैसे और भी दोस्त खाना खाने को आते हैं,और रोज हम लोग एक दूसरे को देखकर एक मुस्कान देकर सहमति जता देते थे। दिल करता है कि हर बार जिद्दी इंसान की तरह फिर से में खाने का बिल चुकाऊं।और फिर अपने कमरे की चाबी तुम्हारे पास ही भूल जाऊं और फोन करने को बचत न हो और मैं किसी अनजान इंसान के फोन से तुम्हें मेरे कमरे की चाबी दे जाने को कहूं।

 ये वो लम्हें हैं जो मुझे आजीवन भी मिलें तो मैं खुशी खुशी जी लूं।

              


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