लहरों की कैफ़ियत
लहरों की कैफ़ियत
हमारे रिश्तों में ताल्लुक़ बेहद अजीब तरह से रियेक्ट करते हैं। हम उन रिश्तों पर अपना हक़ जताते हैं।उसी हक़ से उन लोगो से लड़ते हैं.... झगड़ते हैं..
उन पर अपनी मर्ज़ी चलाना चाहते हैं...सालोंसाल वह रिश्तें उसी हक़ के साथ आगे बढ़ते हैं...उनमे गहरायी भी बढ़ती जाती हैं.....लेकिन जाने अनजाने कभी उन रिश्तों में कुछ ऐसा हो जाता हैं कि सब तहस नहस हो जाता हैं।फिर हाथ आता हैं एक इंतज़ार बस इंतज़ार....
आज समंदर के किनारों पर गीली रेत पर चलते हुए उसने लहरों की तरफ देखा।समंदर की लहरें आज बहुत ज्यादा ऊँची हो रही हैं।आज लगता हैं कि वे पूरे शहर को तहस नहस करके ही मानेगी। आज इन लहरों को इतना ऊँचा उठते देख कर बार बार ख़याल आ रहा हैं की ये इतनी ऊँची क्यों उठ रही हैं? किससे मिलने के लिए ये बेताब हो रही हैं? बार बार किनारों की तरफ आ कर वापस जा रही हैं जैसे इन्हे शिद्दत से किसी का इंतजार है और उसको वहाँ ना देख निराश होकर और ज्यादा गुस्से में वापस जा रही हैं......
पता नही क्यों इन लहरों की ओर देखते हुए उसे लगा जैसे वह खुद भी एक लहर है।उसे याद आया उसका वह हर हफ़्ते वीकली ऑफ में घर जाना! नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहर में उसकी पोस्टिंग थी।लेकिन डिस्टेंस रिलेशनशिप का चार्म कुछ दिनों के बाद खत्म लगने लगा था।बल्कि कुछ दिनों से एक बोझिल अहसास से ही वह वापस आने लगी थी..... लगने लगा था एक ताल्लुक के साथ एक रिश्ता है जिसमे कोई राब्ता नही है।वह भी बस इन लहरों की तरह ही है जो बार बार किनारें की ओर आती रहती है...मन मे एक अजीब सी कैफ़ियत लेकर!