लायक बहू
लायक बहू
"किशन सरकारी नौकरी नहीं करता, उसे पांच लाख रुपए दहेज मिलें हैं।
विमल को दस लाख, चंदन को चार चक्का गाड़ी। सब कुछ मिला है, तुझे क्यों नहीं मिलेगा....बता। तुझे दहेज प्रथा नहीं पसंद तो क्या हम प्रथाएं बदल दें। तेरे बदलने से दुनिया बदलेगी। बड़ा आया हरिश्चंद्र!"
आज फिर मां की सुबह इन्हीं तानों से हुई। मेरी मां से मैं बहुत प्यार करता हूं लेकिन बस उसी दहेज की बात पर रोज चिक-चिक हो जाती हैं।
मैं आज फिर निराश होकर नीलू के पास गया। नीलू मेरी गर्लफ्रेंड हैं , उसका पूरा नाम नीलम हैं। नीलम मेरी स्कूल की सबसे होनहार लड़की थी, पढ़ाई और गृह कार्य में भी निपुण थी।
आज शाम ऑफिस के बाद मैं और नीलू एक पार्क में मिलें।
नीलू : "आज कुछ बात...बनी!"
मैं : "बात बनती नहीं , बिगड़ ज्यादा जाती हैं।"
नीलू : " क्या यार! ऑफिस में तुम्हारी और मेरी शादी का न्योता लेने के लिए लोग बेचैन हो चुके हैं।"
मैं: "मुझे क्या अच्छा लगता हैं?"
नीलू : "तुम बात करो और बात बन जाए तो मुझे इत्तला कर देना।" (उठ कर चली जाती हैं)
मैं: "नीलू सुनो तों!"
नीलू: "बाय!"
मैं घर लौट आया। रात को देर तक नींद नहीं आ रही थी। मेरे दिमाग में एक बात आई। शायद ये प्लान काम कर जाए।
मां ने घर पर सत्यनारायण की कथा रखी। मुझे अपने कुछ दोस्तों को बुलाने के लिए मंजूरी मिली। कुल मिलाकर घर में पच्चीस लोग आने वाले थे। पूजा की खरीदारी और घर के भोज की भी खरीदारी हो चुकी थी।
मैंने नीलू को किसी भी तरह घर पर आने के लिए मना लिया।
मैंने एक और गड़बड़ी की, मैंने अपने पच्चीस दोस्त और उनके परिजनों को भी निमंत्रण दे दिया। अब कुल मिलाकर पचास लोग घर पर आने वाले थे।
मेरी मां ये सारी बातें नहीं जानती थी। उन्होंने अपनी तैयारी कर रखी थी और मैंने उनकी तैयारियां बिगाड़ने की तैयारी कर ली थी।
अब, सत्यनारायण की पूजा की तैयारी मां ने सुबह से शुरू कर दी । पंडित जी जब तक पहुंचते तब तक मैंने और मां ने मिलकर खाने का भी आयोजन कर लिया। घर पर मेहमान आने लगें थे। कुछ लोग आते और पूजा में शामिल होते और कुछ लोग खाते - पीते और चले जाते। मैं और मेरे दो दोस्त इन सब कामों को देख रहें थे।
नीलू मेरे घर आई और मुझे पूछा ,"जैसा प्लान था वैसा करूं?"
मैंने हामी भर दी।
नीलू अपने काम में जुट गई।
इधर मेहमान बढ़ते ही जा रहे थे। मेरी मां का पूजा में ध्यान कम और मेहमानों के बढ़ते तादाद पर ज्यादा था।
मां ने मुझे इशारा कर बुलाया और पूछा " अब इतने सारे लोगों का खाना कैसे बनेगा?"
मैंने कहा "तुम बस देखती जाओ!"
नीलू ने मेरी सारी समस्या का हल कर दिया। उसने जल्दी-जल्दी आटा गूंथने का जिम्मा मेरे दोस्तों को सौंपा और खुद सब्जी और दाल बनाने लगी। मेहमानों का दिल लगाए रखने के लिए चाय, काफी और समोसा खिलाने को कहा।
धीरे - धीरे सभी मेहमान विदा होने लगे।
अब घर पर मैं, मां, नीलू और मेरे दो दोस्त बचे।
मां ने पूछा "ये सब चमत्कार कैसे हुआ?"
मैंने कहा "मां , इन चमत्कारों का श्रेय सिर्फ नीलू को जाता है और ये सिर्फ चमत्कार नहीं था, मेरी इसमें थोड़ी मिलीभगत भी थी।..... मां आपकी वो दहेज वाली बात मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आई। मैं नीलू से प्यार करता हूं और सदैव करूंगा। मुझे इससे शादी करना है। दरअसल इसकी काबिलीयत साबित करने के लिए मैंने आज आपसे बिना पूछे इतने सारे लोगों को निमंत्रण दे दिया।...आई एम सॉरी मां!"
मां बोली " तूने तो सब बता दिया, मगर अब अपनी लायक, होनहार और प्यारी बच्ची से भी तो पूछो लूं.... कि मेरे नालायक बेटे को अपना पति बनाएगी क्या?"
नीलू शर्म से झेंप गई।
मेरे सभी दोस्त बोल उठे ।
"सत्यनारायण भगवान की जय!"

