Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Padma Agrawal

Tragedy Others

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Padma Agrawal

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लाली

लाली

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रमेश हांफता हुआ अपनी खोली में तेजी से आया और लाली को राशन का थैला देकर बोला , ‘’तुम्हरे संगे विमला काम पर जाती रही, उन्हें कोरोना निकल आवा, एम्बुलेंस आई और ओह में लै गई।‘’

“उसके तो छोटी सी बिटिया, और लड़का भी रहा ?’’                                                       

“हां बताय तो रहे हैं, दूसर गाड़ी में राजेश और लड़का बिटिया सबन का लेवाय गये ...अब सारे दवाई का छिड़काव होय रहा है। रास्ता बंद कर दिहिन है हम तो बहुत घूम कर आय पाइन है।‘’

“वह चिंतित स्वर में बोला , ‘’ई बीमारी तो बहुतै बुरी है ....कौनो के पास न खड़े हो, मुंह में मास्क लगाये रहो .. अब तो जी घबराय रहा है ..कुछ दिनन में अपनी चॉल में भी आय जइहै तो का होई ?’’

“ऐसे घबराये से काम नहीं बनत ...सरकार सब उपाय तो कर रही है ... सब ठीक होय जाई ...लो पानी पी लो’’

 ‘’कौनो साधन होतै तो गांव चले जाते, कम से कम जान तो बच जाये ‘’

“ऐसे भी काहे घबरात हौ, गांव में का धरा है.... वहां रोजी रोटी होती तो मुम्बई काहे आते ....’’

“फालतू में दिमाग न खराब करा करौ, वैसे ही कम परेशानी है का जो अब गांव की याद आय गई ?’’                               

“लाली, हम सुन आये हैं, सरकार गाड़ी चलाय रही है ‘श्रमिक एक्सप्रेस’ फ्री में गांव पहुंचाय रही है सरकार....अच्छा यही है कि हिंया से हम सबै निकल लेई ‘’


दो चार दिन ही बीते थे कि एक दिन वह फोन पर किसी से बात करने के बाद हड़बड़ा कर बोला ,’’ लाली, जल्दी से सामान बांध ले ....गाड़ी में स्टेशन पर लग गई है ...ऊ मदनवा बताइस है कि स्टेशन पर दुई घंटा पहिले पहुंचे का है ...जल्दी करौ ... टेशन पर हम लोगन की जांच होई ओहके बाद गाड़ी में बैठे का मिली।"

लाली कोरोना से भयभीत तो थी लेकिन गांव की देहाती जीवन शैली से तो वह भाग कर मुंबई आई थी फिर उसी जीवन में लौटने को बिल्कुल भी उसका मन नहीं था।

“देखौ चंदू के बाबू, तुम इस तरह से सब छोड़छाड़ कर जाने की तो न सोचौ ... और वहां पर क्या रखा है, जो हम सबन को भर पेट रोटी मिलै लागी ... यहां तो सरकार सब तरह से मदद कर रही है ... राशन कार्ड पर गेहूं, चावल सब मिल रहा है और रुपया भी एकाउंट में आय रहा है। हम भी काम से लगे हैं ... बिटिया स्कूल में पढ रही है। लॉकडाउन के मारे ज्यादा परेशानी थी... हमारी मेमसाहब तो घर बैठे की तनख्वाह दे रहीं हैं। कुछ दिनों की परेशानी है फिर सब ठीक होय जाई। “

“चुप साली... मुंह चलाय रही है ...बाहर सब आदमी खाली करके जाय रहे हैं ... तू ससुरी चबड़ चबड़ कर रही है ...कोरोना होय जाई तो यहीं मर जाब , चार आदमी मट्टी उठाये के लिये न जुड़िहै ... कम से कम गांव में में कंधा देवै के लिये तो आदमी मिल जइहैं ‘’

“तो तुम अकेले चले जाओ .... हम और हमारे बच्चा नहीं जायेंगे ...’’

“बड़ी बच्चा वाली बनी है... चल चंदू और सलोनी जल्दी से अपना कपड़ा लत्ता रख लेव ... हम लोग गांव जाय रहे हैं ‘’

“अच्छा पापा.... ‘’बच्चे गांव जाने को उत्साहित होकर जल्दी जल्दी अपना सामान बैग में रखने में जुट गये।

लाली ने एक बार फिर से कोशिश करते हुये सलोनी के हाथ से कपड़े छीन कर बच्चों को डांटकर कपड़े छीन कर बोली ‘’..तुम्हारी मम्मी नहीं जा रही ... तुम लोग हमारे साथ रहौगे कि अपने पापा के साथ जाओगे?’’

बच्चों की आंखों में गांव की अमराई, दादी का लाड़ तैर रहा था ... गाय का ताजा दूध का स्वाद मुंह में आ रहा था।

“ हम लोग तो पापा के साथ जाय रहे, मम्मी तुम भी चलौ न ‘’...नन्हा चंदू उसके गले से झूल गया था लाली की आंखों में आँसू उमड़ पड़े थे।

उसकी आंखों के सामने गांव का मिट्टी का फर्श, गाय दुहना , गोबर के कंडें बनाना, सिर ढक कर बहुरिया बन कर रहना ... सास ससुर के इशारे पर नाचना ... जिठानी के ताने और जेठ की शराब के नशे में घूरती आंखे जो शरीर के आरपार टटोलती सी महसूस होती हैं, सब कुछ तैर उठा था।

“तुम सब जाओ, हम यहीं रहेंगे जीना मरना जो बदा होगा यहीं हो जायेगा ...कोरोना से मरै का है तो यही से मर जाई।‘’

रमेश इतनी देर में अपना और बच्चों का सामान पैक कर चुका था ...

लाली डबडबाई आंखों से सब देख रही थी ..

“जरा ठहरौ, रास्ता के लिये रोटी तो रख दें ... बच्चा भूखे रहेंगे ‘’

रमेश अपने शब्दों में प्यार उंडेल कर बोला, ‘’ चल न लाली, हम सब जनै एक साथ दुख सुख जो होई साथ में सहि लेई... अम्मा। फोन पर कह रहीं थीं तुम सब धारावी से जल्दी से जल्दी निकल कर आय जाओ .. हम सबै तुम सबन की बाट जोह रहे हैं ....सरकार स्पेशल गाड़ी चलाय रही है .. रमेसवा जल्दी से जल्दी निकर आओ बेठवा ..वहां रोज बहुतै लोग मर रहे हैं ...’’

पति का प्यार ..मनुहार और कोरोना का खौफ सोच कर लाली पिघल उठी थी ... वह अपने कपड़े समेट रही थी उसकी आंखों से अश्रुधारा निरंतर प्रवाहित हो रही थी ... अपना सामान समेटते हुये उसे महसूस हो रहा था कि वह अपनी आज़ादी समेट कर बैग में रख रही है ....

वह बेमन से अपनी पनीली आंखों से अपने सपनों को उजड़ते देख रही थी और मजबूरी वश स्टेशन पर मेडिकल टेस्ट करवाने के लिये चंदू का हाथ पकड़ कर लाइन में लग गई थी क्यों कि आखिरकार वह एक मजबूर मज़दूर की पत्नी थी, जिसको कोई सपने देखने का हक नहीं होता।



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