लाल रंग
लाल रंग
मौसम खुशनुमा हो और किसी से इश्क भी हो तो खुद से भी प्यार होने लगता है। कभी खुद को आइने में निहारती तो औरा जैसे चम चम चमकने लगता ।सच ही कहते है लोग इश्क का जादू जब सर चढ़ कर बोलता है तो बस सनम ही खुदा होता है।
सुबह भी खुद में तेरी तस्वीर देखती शब भर तूही ख्वाबों अहसासों में टहलता ।कभी ये सोचा ही नही बचपन में जिसके साथ लंच शेयर किया स्कूल में एक दूसरे की कमियां छुपाकर एक दूसरे का होमवर्क करके शाम को एक ही बस में साथ साथ लौटना हुआ था.... वही रूह में समा जायेगा..... और मै उसकी ।मेरी शायरी की हर दूसरी लाइन वही पूरी करता तो मै उसकी कविता का उन्वान बन जाती।
स्कूल खतम हुये तो पता चला कुछ खो सा गया पूरे दिन अजीब सी हालत रहती और एक दिन जब होली पर सहेलियों के साथ गली के मोड़ पर कुछ हरे काले रंगे पुते लड़के हमारी तरफ आये तो हम सब भागे तभी तुम लाल गुलाल लेकर आये और मुझे अपनी बाहों में लेकर सरापा लाल रंग दिया मैने घबरा कर धक्कादिया तुम दूर जाकर गिरते कि इससे पहले ही मेरे भाई ने तुम्हें थाम लिया.... तब तुम्हे पहचान लिया काले पुते तुम्हारे चेहरे से तुम्हारी
मुस्कान ने मुझे पानी पानी कर दिया और उस पहले आलिगंन के अहसास ने मुझे उम्र भर के लिये तुम्हारा बना दिया।लाल रंग ने मुझे सारे रंगो में रंग दिया था ।गुलाल में शायद लाल रंग मिला था।लाल मांग से लेकर पैरो तक जैसे आलता लगा हो ।
और जानबूझ कर कई दिनों तक ये रंग छुड़ाया नही था... मम्मी की डांट ,सहेलियों की छेड़छाड़ अच्छी लग रही थी । अगले दिन जब भाई से मिलकर तुम छत से उतर रहे थे तो मै जानबूझ कर ऊपर जाने लगी थी और अचानक तन्हाई देख कर तुमने मेरे हाथ में गुलाल से भरा रूमाल थमा दिया और हौले से पूछा था कि "तुम्हे कबूल है ना।......"
मै शरमा कर हंसती हुई भाग गई थी....
हमारा प्रेम परवान चढ़ चुका था दीन दुनिया से बेखबर हम दोनो इस आग के दरिया में डूबते चले गये ।रूमानी ख्वाबों का मौसम जाने वाला था ।इस बात से बेखबर हम दोनो एक ऐसी ख्याली महफ़िल में रह
ते थे जिसमें मुहब्बत थी ,मज़हब नही था ।पर दुनिया तो हमेशा महबूब और मुहब्बत की दुश्मन रही है। जब हीर रांझा ,लैला मजनूँ न मिल सके तो हम दो मासूम कैसे बचते ।.......कितनी प्यारी होती है मुहब्बत .... बस उसका ख्याल .... उसकी आरजू ....
परस्तिश सी पाक़, पूजा सी पवित्र .......।
मगर ये जात बिरादरी ये लोग जो अपनी यौवन की जुम्बिशे भूला समाज के ठेकेदार बन जाते है और समाज से कोमलता ,सह्रदयता,दयालुता,
सद्भावना जैसी भावनाएं लुप्त होने लगती है ।तब फैलाई गई नफ़रत इंसान को शैतान बना देती है।फिर हम दोनो तो वैसे भी आरम्भकाल से ही चले आ रहे वैमनस्य के शिकार, जातपात जैसे विषाणुओं से संक्रमित समाज के दो प्रेमी ।
वही परिवार का सख्त हो जाना...... पहरे के बीच किसी तरह पढ़ाई पूरी करना....... कसमों वादो के बंधन ,समाज की दुहाई इन सबके बीच हमारा मासूम सा प्यार समाज की भेंट चढ़ गयाहमने जब मुहब्बत की थी तब हमें क्या पता था कि हम कंहा पैदा होंगे , क्या करेंगे कौन जात होंगे,हिन्दु या मुसलमान होंगे , बड़े होंगे तो कौन होंगे.... हमारा क्या होगा जब यह सब प्रारब्ध है तो हम गुनहगार क्यों ......?
ईश्वर ने जन्म दिया ।माटी का पुतला बनाया ,उसमें दिल लगाया ।
प्यार किया नही जाता हो जाता है .....भावनाओं का पुतला है इंसान ..... हर किसी से प्यार कर सकता है अगर उसी के साथ रहना चाहता है तो उसका क्या कसूर हर इंसान बुरा नहीं होता, हर मज़हब बुरा नही होता फिर कौन सा एक जन्म में किसी के होकर अमर होना है सबका एक जैसा ही तो हश्र होना है फिर क्यूँ ये लड़ाई झगड़ा , दंगा फसाद ,अरे यार जिन्दगी एक बार मिलती है जी लेने दो ना.....
आज होली है बच्चे बाहर सेटल हो गये है मेरे हमसफ़र भी अपने सफर पर चले गये और मै यहाँ तन्हा छज्जे पर बैठी नीचे बच्चों की टोली देख कर जाने कब तुम्हारी यादों में खो गई...... आजकल के हालात ने हर शख्स को परेशान कर रखा है और हम जैसे लोगो को फ़िलासफ़ी में उलझा दिया ।
पर अगर एक भी बन्दा मेरी ये कहानी जानकर कर खुद को बदल सका तो मानूंगी मेरा प्रेम सार्थक हो गया....।