जिन्दगी खेल नहीं
जिन्दगी खेल नहीं
हेलो अंकल "कैसे है आप देखिये आपकी किताब छप चुकी है"
किताब विनम्र जी के हाथ में रखी तो खुशी के मारे उनका गोरा रंग लाल हो गयाऔर आँखें नम।
सुरेन्द्र अंकल ,अन्ना काका ,गीता आंटी ,दादू और दादी सबने मिलकर तालियां बजाई तो अभिभूत होकर विनम्र जी ने सबको सैल्यूट किया "आज तो पार्टी पक्की रमन बताओ कंहा खाना खाओगे आज" तारिका रेस्टोरेन्ट " दादु दादी ने एक साथ कहा तो सब ठटाकर हंस पड़े
तभी रमन का मोबाइल बजा-
पत्नी मनीषा ने कहा "कहाँ हो रमन बहुत देर से फोन लगा रही हूँ।"
"अरे यार एक पैग लगा रहा हूँ जिन्दगी का"
क्या ? तुमने पीना शुरू कर दिया वो भी दिन में ?
"हाँ जानेमन अगर तुम्हे भी पीना हो तो आज शाम आना मेरे साथ यंहा ओके बाय" आ रहा हूं।
कहकर उसने सबके पैर छुयें और वृद्धाश्रम से बाहर निकल गया।
