कठपुतलियां

कठपुतलियां

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बिटिया की भंवरे पड़े चार दिन हुये थे, थकान, लबरेज़ तन, बिटिया की जुदाई से विह्वल मन दोनो ही पस्त थे।मन में रह रहकर पुराने गीत की पंक्तियाँ गूंज पड़ती थी " मैके की कभी न याद आये ससुराल में इतना प्यार मिले।"

पहले भी तैयारी करते करते कभी आंखें भर आती तो बिटिया हंसाने के लिये कहती "ओ मां आप तो सच में ड्रामा क्वीन हो," और हंसी आ जाती।

तभी पीछे से पतिदेव आकर बोले "अरे इतनी याद आ रही है तो फोन कर लो "और मोबाइल थमा दिया।

फोन मिलाया तो समधन जी ने उठाया "हेलो" बोलते ही वो मन:स्थिति समझ गई। बोली क्यूं परेशान है आप अब आपकी बेटी की मैं भी मां हूं मुझे सास मत समझिये, गुड़िया बहुत खुश रहेगी। सुनकर जैसे मरहमी सा हो गया मन। कुछ कहती उन्होने फोन गुड़िया को थमा दिया।


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