मानो या ना मानो

मानो या ना मानो

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निद्रा की देवी आई और उन रूपसी से कहा "बेटी क्यो विचलित हो  इस अंधेरी रात मे तुम क्यो जाग रही हो "बेटी शब्द सुनकर उनके आंसु बहने लगे  विषाद की घनी छाया से मुख मलिन हो चला था 

"हे देवी मां आप कौन है

 "मैं निद्रा की देवी हूं बेटी, तुम्हें सुलाने आई हूं।"

"आप यंहा क्यूं देवी मेरे भाग मे तो सोना ही नहीं लिखा देवी।"

"मुझे माफ कीजिये मैं आप, आपकी बात नही मान सकती देवी मैं तो विरहणी हूं।"

"विरह की आग मे जलना है मुझे।"

"नहीं बेटी ऐसा मत कहो  तुम तो बड़े भाग वाली हो तुम्हें सुलाने के लिये ही तो मुझे तुम्हारे पति ने यहां भेजा है।"

"क्या कहा आपने उन्होने आपको यंहा भेजा है।"

पीले चन्द्रमा पर पल भर को लगा रश्मियां खिलखिला पड़ी !

"हां वो चाहते हैं कि तुम मेरी गोद में चैन की नींद सो जाओ आओ बेटी।"

फिर विषाद सघन हो चला नहीं माता मेरे पति अपना सुख वैभव त्याग कर चले गये और मैं चैन की नींद सो जाऊँ ऐसा कभी नहीं हो सकता।

"पर बेटी तुम उनकी अर्धागिंनी हो।"

"तुम्हारे पति अपने बड़े भाई व भाभी की सेवा में तत्पर है। वो सोना भी नहीं चाहते, उन्होंने कहा है कि आप उनकी नींद ले लेंगी तो वो निश्चिन्त होकर अपने बड़े भैया व भाभी की देखभाल कर सकेंगे।"

"अरे अच्छा मुझे माफ कर दीजिये आइये मां मैं आपकी गोद में सोना चाहती हूं।"


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