लाल बत्ती के तहत
लाल बत्ती के तहत
उजड्ड, देहाती, गंवार बस यही गालियों से रोज नवाजा जाता उसे, पूरे मौहल्ले मे बस इन्हीं नामों से बदनाम था "पता नहीं किस घड़ी मे जन्मा है नामुराद "मास्टरनी सर पर हाथ रखकर कोसती जब देखो पड़ौसी शिकायत लिये दर पर खड़े रहते।एक दिन लड़की का बाप उसे छेड़ने की शिकायत लेकर आया तो
छड़ी उठा मार मार कर अधमरा कर दिया था उस दिन से घर छोड़कर जो गया तो पता नहीं कहां चला गया
मास्टरनी सर धुनकर कहती" अरे जैसा कैसा था था तो अपना ही जना सामने दिखता तो था "
अब तो रो रो कर आंसु भी सूख चुके थे उसके भी।
"रंजन कुमार की माता जी पुरस्कार प्राप्त करते हुये "
बैक ग्राउडं मे आवाज आई
दुश्मनो के साथ लड़ते हुये अपने पांच साथियो को बचाते हुये शहीद हो गये l
रंजन कुमार पुत्र मास्टर शिव कुमार के बेटे को परमवीर चक्र देते हुये l
आज उस उजड्ड का असली नाम सुनकर जैसे नींद से जागे मास्टर जी छब्बीस जनवरी पर ग्राउंड मे बैठे आंसू पोंछ रहे थेl"