भूख
भूख
रोज की तरह आज भी रिक्शा सवारियों से मिले पैसों की शराब पीकर गिरता पड़ता नदीम झोपड़ी में सलमा को ना देख पगला सा गया ।गुस्से में आगबबूला होकर बाहर रिक्शा पर बैठ कर ही उसका इंतजार करने लगा।मन मन में ही सोच रहा था कि ये कहां जाती है रोज.........
आज इसे बताऊँगा......।
तभी सलमा सामने से आती हुई दिखी तो तुरन्त कूद कर उसको मारने को दौड़ा..
"अरी बेसरम कंहा से आ रहिन है ,रोज देख रहा हूँ तेरे रंग ढंग ..... जब से मुन्ना नही रहा ......घरैन में टिकती ही नही......कहां से लाई ये सब ."...... ।सलमा के हाथों में कुछ खाने पीने के समान को देखकर दहाड़ा......।
सलमा ने उसके वार से बचकर दूर छिटकते हुए कहा......।
"काहे चिल्लावत है नसेड़ी ....घरैन में एक दाना नहीं खावै को, जो कुछ कमाता है नसे में उड़ा देत है,का हमका भूख नहीं लगत है .......।जब से मुन्ना मरा दूध पानी सा बहत है.........उहां अनाथालन में बच्चन को दूध पिलावै का पईसा मिलत है.....वहीं गई रही मरवै खातिर.........।
"अरी कमबख़्त हिन्दु अनाथालय ही मिला तुझे" जोर से दहाड़ा नदीम
"भूख हिन्दु मुसलमान ना होत है ,ना दूध ....तुमका का मालूम बहता दूध बच्चन की भूख मिटा गवा" ........आंख में आंसू भरकर सलमा हाथ में लाए झोले को खोलने लगी थी l