Ira Johri

Abstract

4.6  

Ira Johri

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लाड़ला

लाड़ला

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 जिन्दगी में अभी खुशियों नें दस्तक देनी शुरू ही की थी कि जाने किन कर्मों के अभिशाप के परिणाम स्वरूप परेशानियाँ चोली दामन का नाता निभाने पीछे पीछे चली आईं । कहाँ कहाँ नहीं भटका वह।

मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे कोई जगह ऐसी न थी जहाँ उसने मत्था न टेका हो या सजदा न किया हो ।उसकी जगह कोई और होता तो चाहे हिम्मत हार कर अब तक सबसे किनारा कर चुका होता।

पर वह तो ईश्वर का लाड़ला था ।इतनी जल्दी हिम्मत कैसे हारता ।चुनौतियों से तो उसे जैसे जन्म से ही प्यार था । हर जगह से निराश हो मुसीबतों से लड़ते हुये अब वह इतना मजबूत हो चुका था कि सीधे अपनें आराध्य से दिल की बात कह कर उलाहना देते हुये सभी धर्मों के आडम्बरों का परित्याग करते हुये अब नये सिरे से मुसीबतों के साथ ही मुस्कुरा कर जीना सीख लिया था।और अब वह दूसरों के लिए प्रेरणा बन जीने की राह दिखाने के लिये आगे बढ़ चला था। 


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