कुलधरा - शापित मृत्यु
कुलधरा - शापित मृत्यु
कुलधरा गाँव राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित एक वीरान भूतहा गाँव है। वैसे तो इसके कई किस्से प्रचलित हैं लेकिन असली वजह क्या है वो तो सिर्फ वहाँ के पत्थरों पर अंकित राजस्थानी भाषा में दबा पड़ा था। जब भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारी कुलधरा में जाँच के लिए आये तब उन्हें पता चला, क्योंकि उन्होने पत्थरों पर अंकित उन शब्दों का विशेषज्ञों की मदद से अनुवादित किया था।
कहानी आज से 200-250 साल पुरानी है, गाँव हरा भरा खुशहाल था। वहाँ एक रईस और रूतबेदार ठाकुर परिवार भी रहता था। उनकी सबसे छोटी बेटी रूपमती बेहद खूबसूरत थी , वक्त के साथ उसके मन में प्रेम ने दस्तक दी।
धीरे धीरे रूपमती के गाँव के नीच जाती के लडके शंभू के साथ प्रेम प्रसंग के चर्चे गाँव में फैलने लगे, लोग दबी जुबान में उनकी आलोचना करने लगे।
जब परिवार वालों को ये खबर लगी तो उन्होने रूपमती का घर से निकलना और किसी से भी मिलना बंद करवा दिया।वे जल्द से जल्द रूपमती का विवाह कर देना चाहते थे । तो जल्दी से मुहूर्त निकाल कर तारीख पक्की की गई। जैसे ही ये खबर रूपमती को पता पड़ी उसने घर से भागने की तैयारी की और विवाह से कुछ दिन पूर्व वो रात के अंधेरे में भाग गई शंभू के साथ।
सुबह जब रूपमती के घरवालों को पता चला तो उन्होने अपनी विरादरी वालों और ऊँची जात वालों के साथ मिलकर नीची जात वाले सारे किसानों के खेतों में खड़ी गेंहूँ की फसल में आग लगा दी, ये तरीका था समझाने का की नीच जात वाले अपनी औकाद से बाहर ना जाएं नहीं तो सबको भुगतना पडेगा। फिर उन्होनें शंभू के घर में आग लगा दी और उसके माता पिता को मार डाला। शंभू की छोटी बहनों का क्या हुआ कभी पता ही ना चला। लेकिन कुछ लोंगों का कहना था कि उन्हे उनके भाई की करनी की सजा दी गई है और ग्वालियर के वैश्यालय में पहुँचा दिया गया है। इस बीच शंभू और रूपमती की तलाश भी जारी रही, इज्जत का सवाल जो था।
हफ्ते भर बाद जब शंभू को ये सब पता चला तो वो और रूपमती वापस अपने गाँव आ गये ये सोचकर की गाँव के महंत जी जरूर न्याय करेंगें। मगर प्रेमियों का सोचा सच कहाँ होता है, जैसे ही वो गाँव पहुँचे, रूपमती के जात वालों नें शंभू के हाथ काट कर उसे जिन्दा हर दिन मरने के लिए छोड़ दिया और पूरे गाँव में कहा की अगर किसी ने इसे खाना - पानी दिया तो उसके परिवार के साथ भी यही होगा।
रूपमती को पूरे खानदान के मर्दों ने, बाप, भाई, चाचा, ताऊ आदि सबने जी भर के मारा और फिर अंत में जान से ही मार डाला। फिर उसी रात मिट्टी का तेल डालकर उसे जला दिया। रूपमती की माँ खूब रोती रही , बचाने के लिए सबके आगे हाथ जोडे पर किसी ने उसकी नहीं सुनी।
मर्दों के समाज में बेटी को मार देना इज्जत बचाना था और किसी से प्रेम करना घर की इज्जत को नीलाम करना। उन्होने अपने घिनौने कृत्य को ये कहकर सही ठहराया की अगर रूपमती को छोड़ दिया तो समाज में उनकी कोई इज्जत नहीं रहेगी, उनके घर की बेटियों को कोई संस्कारी नहीं कहेगा और बेटों का विवाह कभी अमीर और नामी घरानों में नहीं हो पाएगा।
शंभू ने जब सुना रूपमती की हत्या के बारे में तो वो तो पागल सा हो गया था , उसने पत्थरों पर अपना सिर पटक पटक कर प्राण त्याग दिये।फिर कुछ दिनों बाद कुलधरा गाँव में मौतों का सिलसिला शुरू हो गया। सबसे पहले धर्म के ठेकेदार मंदिर के महंत की मौत हुई, जिन्होने प्रेमियों को सुरक्षा और न्याय का भरोसा दिला कर धोखे से गाँव वापस बुलाया। फिर समाज के ठेकेदार गाँव के सरपंच की मौत हुई जिन्होने बार बार इज्जत जाने का भय दिखाकर रूपमती के परिवार वालों को इस सब के लिए उकसाया था। फिर चाचा और ताऊ की अकस्मात मौत हुई जिन्होने घर की बातें गाँव वालों को बताकर उन्हें रूपमती के प्रेम प्रसंग के बारे में बताया , इस लालच में की आत्मग्लानी से रूपमती के पिता और भाई आत्महत्या कर लेगें और खानदानी जमीन पर उनका कब्जा हो जायेगा। फिर रूपमती के भाई ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली जिसने शंभू के हाथ काटे थे। रूपमती के पिता को सीधे मौत नहीं आई पर जब भी कुछ खाने या पानी पीने को होते तो उन्हे खाने और पानी में मवाद और खून दिखने लगता और एक दिन भूख-प्यास से उनकी भी जान चली गई, रूपमती के पिता ने ही ये धमकी दी थी कि जिसने भी शंभू की खाने पानी से मदद की उसके परिवार के साथ भी वही होगा जो शंभू के परिवार के साथ हुआ।
जिस खानदान के बेटों के लिए रूपमती और शंभू की जान ली गई थी उस खानदान का कोई वारिस जीवित नहीं बचा। जिन बेटियों के ऊँचे घर में विवाह के लिए इन प्रेमियों की हत्या की गई उनसे शापित होने के कारण कोई भी विवाह करने को तैयार न हुआ, अंत में सबने आत्महत्या कर ली। जिस कुल की इज्जत के लिए रूपमती और शंभू का त्याग किया गया उस खानदान की इज्जत तो क्या कोई इंसान ही जिंदा ना बचा।
फिर गाँव के जिन लोगों ने हत्या का समर्थन किया धीरे धीरे उनकी भी रहस्यमयी तरीके से मौत होने लगी। जिन लोगों को सच में प्रेमी जोडे से सहानुभूती थी उन्हे गाँव खाली करने के सपने आने लगे। धीरे धीरे गाँव के लोग पलायन करने लगे, पूरा गाँव खाली हो गया। अब सिवाय सड़ती बदबूदार लाशों के बस एक इंसान उस गाँव में जिन्दा बचा, जिसने ये सब हवेली के पत्थरों पर लिखा, वो थी- रूपमती की माँ।रूपमती की माँ का क्या हुआ , वो कब मरीं किसी को नहीं पता।
आज 200-250 सालों बाद भी उस गाँव में कोई रहने नहीं गया। कुछ लोग जो भूत प्रेतों को नहीं मानते उन्होने रहने की सोची तो वो गाँव तक पहुँच ही ना सके । एक ही रास्ते पर गाड़ी चलाते चलाते गोल गोल घूमते रह गये, और अंत में वहाँ रहने का विचार त्याग दिया।
हाँ कुछ लोग दिन के समय घूमने जा सकते थे। उनकी कहानी पढ़ सकते थे ताकि वो अपने घर के बेटों - बेटियों को झूठी शान और इज्जत के लिए मारने की गलती ना करें। अब ये रूपमती और शंभू की आत्मा कब वहाँ से जाएगी किसी को नहीं पता, जीते जी एक ना हो पाये लेकिन मरने के बाद दोनों एक साथ हैं। लोगों को समझाते हैं और जरूरत पडने पर डराते भी हैं कि किसी प्रेमी जोडे की जान झूठे सम्मान की आड़ में ना ली जाये।