Savita Negi

Romance

4.3  

Savita Negi

Romance

कुछ विशेष लम्हें

कुछ विशेष लम्हें

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पूरे बारह वर्षों बाद सुदर्शन प्रिया के सामने खड़ा था। उसे देखते ही प्रिया सकपका सी गयी। उस पल में न जाने क्या खास था जो उसे देखते ही फिर से जीवंत हो उठा। ढलती उम्र में भी पहले प्यार की तपिश को महसूस कर रही थी।

परंतु उसकी पत्नी को साथ में देखकर स्वयं के अंदर शुरू हुए यादों के बवंडर को किसी तरह नियंत्रित कर वहाँ से सरपट अपने कमरे में चली आई। उसने कभी सोचा भी न था कि जिंदगी में कभी सुदर्शन से यूँ अचानक मुलाकात हो जाएगी। 

अपनी यादों में हम अपनी जिंदगी के कुछ विशेष लम्हों को हमेशा जीवित रखते हैं , एक काल खंड बीत जाने के पश्चात भी यूँ लगता है जैसे इन यादों से जुड़े लोग कभी अतीत में गुम हुए ही नहीं, वे हमेशा से हमारे साथ ही हैं।


प्रिया भी जब कभी उदास और विचलित होती तो स्वयं में शक्ति के संचार के लिए अपने अतीत के गलियारे में घूम आती। ढलते सूर्य को देखते हुए उन्हीं खूबसूरत लम्हों को याद कर अपनी डायरी के साथ साझा करती थी । कहाँ भूल पाई थी उसे ? 

समय के लंबे अंतराल के बाद भी वह प्रिया के दिल में पहले की तरह ही धड़कता था। उसकी यादों को मन के सन्दूक में जो कैद कर रखा था।


सुदर्शन उसके बड़े भाई का जिगरी दोस्त था। अक्सर घर आता जाता रहता था। बहुत ही हंसमुख स्वभाव का था। प्रिया से बहुत पटती थी उसकी। बातों बातों में उसे छेड़ता और खूब मजाक भी करता था उसके साथ ।


उसका ऊँचा कद, गौर वर्ण , व्यवहार में अदब और शब्दों की मिठास में प्रिया घुलती चली जा रही थी। वयःसंधि की दहलीज़ पर खड़ी प्रिया के दिल में प्रेम का अंकुर हौले हौले अंगड़ाई ले रहा था । ये एहसास उसके तन मन को रोमांचित कर रहा था। उसे सुदर्शन के घर आने का इंतजार हमेशा रहता था। और जब वह आता था तो प्यार में पागल दीवानी की तरह उसके इर्द गिर्द ही मंडराती रहती थी। उसे पूरा विश्वास था कि वो भी प्रिया को पसंद करता है तभी तो उसके साथ इतनी बातें करता है। भले ही सुदर्शन कुछ न कहे परंतु उसकी आँखों से टपकता नेह बहुत कुछ कह जाता था।


समय अपनी गति से गुजर रहा था। खुद पर नियंत्रण रखना अब मुश्किल हो रहा था इसलिए प्रिया ने एक पत्र के माध्यम से अपने प्रेम का इज़हार कर दिया। उत्तर की प्रतीक्षा में प्रिया की नींद ही उड़ गई थी। पत्र दिए कई दिन बीत चुके थे परंतु सुदर्शन का कोई जवाब नहीं आया था न वो खुद आया था। कोई रात ऐसी नहीं गयी जब प्रिया ने उसकी याद में तकिया गीला न किया हो।


प्रिया के प्रेम की खुशबू सिर्फ उसके अंदर तक ही सीमित थी। उसकी हालत कोई भाँप भी नहीं पा रहा था न स्वयं किसी से कुछ कह सकती थी। 

करीब महीने भर बाद सुदर्शन घर आया होगा। जिसे देखते ही प्रिया का तन मन बेसब्री से उसका उत्तर सुनने के लिए आतुर था।

परंतु इस बार एक अलग ही सुदर्शन उसके सामने था, जो बहुत ही गंभीर मुद्रा में बैठा था और प्रिया से नजरें चुरा रहा था। मौका पाते ही एक पत्र प्रिया को थमा कर चला गया।

कांपते हाथों से प्रिया ने पत्र पढ़ना शुरू किया।


"तुम्हारे मन में उमड़ रहे तूफान को वहीं रोक लो। जो मुमकिन नहीं उसको बढ़ावा नहीं दूंगा। विजातीय होने से हमारे रिश्ते से परिवारों में मन मुटाव संभव है। दो दोस्तों के बीच दीवार खड़ी हो सकती है। हमारे बीच उम्र का फासला भी अधिक है। इसलिए उस रास्ते पर चलना सही नहीं है जहाँ समाज हमें स्वीकार न करता हो। तुम बहुत अच्छी लड़की हो और उतने ही अच्छे जीवनसाथी की हकदार भी हो। भविष्य के लिए शुभकामनाएं!"


उसके बाद सुदर्शन दूसरे शहर जा बसा। फिर कभी मुलाक़ात ही नहीं हुई। कुछ समय के पश्चात प्रिया भी दिल में उसकी अमिट छाप को अंकित किये विवाह के बंधन में बंध गयी और पूरे मन से घर गृहस्थी में रम गयी।


परंतु आज पूरे बारह वर्षों बाद सुदर्शन प्रिया के भाई को बस अड्डे में मिल गया। तो वो उसे ज़ोर जबरदस्ती करके घर ले आया, उसे होटल में नहीं रुकने दिया। प्रिया भी कुछ दिनों के लिए अपने भाई से मिलने आई हुई थी। घर आते ही भाई ने सुदर्शन और प्रिया को अचानक सरप्राइज़ देते हुए मिलाया तो दोनों के चेहरों का रंग भी उड़ गया था।


दोनों के बीच औपचारिक बातें ही हुई। सबको खाना खिलाकर प्रिया अपने कमरे में आ गयी और फिर से यादों के समंदर में गोते खाने लगी। जब करवट बदल कर थक गयी तो रसोई में अपने लिए चाय बनाने के लिए गई। जाते वक्त उसने देखा कि गेस्ट रूम की लाइट खुली थी सुदर्शन और उसकी पत्नी की हँसने की आवाज़ें आ रही थी। अचानक उसने दोनों के वार्तालाप में अपना नाम सुना तो

उत्सुकतावश प्रिया के कदम उनकी बातों को सुनने के लिए वहीं दरवाज़े की ओट में थम गए । 


" अच्छा तो ये थी वो न!! जो तुम से प्यार करती थी।" सुदर्शन की पत्नी ने हँसते हुए पूछा।"

"हा... हा....हा...हाँ ,मेरे लिए तो वो दोस्त की छोटी बहन थी इसलिए उसके साथ हँसी मज़ाक कर लेता था, अब मुझे क्या पता था कि वो मेरे हँसी मज़ाक को प्यार समझ बैठेगी और मुझसे प्यार करने लगेगी। उसका प्रेम पत्र देखकर तो मैं हैरान रह गया था। कुछ समझ ही नहीं पाया कि कैसे समझाऊँ उसे कि मैं उससे कोई प्यार -व्यार नहीं करता। कैसे कहता उसको कि मैं तो किसी और से मतलब तुमसे प्यार करता हूँ। बहुत छोटी थी अगर सीधा सपाट बोल देता तो क्या जाने कुछ कर देती इसलिए बहुत सधे हुए शब्दों में अपनी बात कही और उससे हमेशा के लिए एक दूरी बना ली।"


ये सुनते ही प्रिया के पैरों तले जमीन खिसक गई। इतने वर्षों से सुदर्शन के लिए सोचती आई थी कि वो भी उसको प्रेम तो करता था परंतु उसने परिवार, समाज और दोस्ती की ख़ातिर प्रिया के प्यार को ठुकरा दिया था और प्रिया को तकलीफ न हो इसलिए उससे एक दूरी बना ली थी। परंतु वर्षों बाद उसे पता चला कि उसका प्यार तो एक तरफा प्यार था। सुदर्शन ने कभी उससे प्यार किया ही नहीं था उसका प्यार तो कोई और था, जिसके साथ वो खुशी खुशी जिंदगी जी रहा है।

शायद उसकी कमउम्र में की गयी नसमझी थी। आज सच सुनकर उसे उनके सामने जाने में शर्म आ रही थी। 

भले ही सुदर्शन और दुनिया के लिए उसका प्यार कोई मायने न रखता हो परंतु उसके लिए तो सच्चा प्यार ही था। 

अपने घर लौटते समय प्रिया सोच रही थी प्यार हासिल हो न हो इसको खोने का दर्द वही समझता है जिसने कभी किसी को टूट कर प्यार किया हो। प्यार खोकर भी जिंदगी गुजर ही जाती है। जिम्मेदारियों का निर्वहन भी बख़ूबी हो जाता है ,सब कुछ मिलने के बाद भी दिल के किसी कोने में एक दर्द और कुछ कमी  जिंदगी भर के लिए रह जाती है।

भले ही एक तरफा प्यार रहा हो परंतु जिंदगी के उन खूबसूरत लम्हों का एहसास आज भी प्रिया को गुदगुदाता जरूर है।



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