कुछ रंग इश्क़ के ऐसे भी!
कुछ रंग इश्क़ के ऐसे भी!
वो एक सुहानी शाम का धुंधलका है।सड़को पर ट्रैफिक का शोर है और उसकी आंखों में एक अजब सी खामोशी पसरी है।वो एक ऑटो में बैठे हुए बार बार अपनी घड़ी को देख रही है मानो उसे कहीं पहुंचने की जल्दी हो।कुछ सेकण्ड और इंतजार किया उसने शायद अब ट्रैफिक खुल जाये और ऑटो चल पड़े लेकिन नही जब उससे रहा नही गया तो वो ऑटो से निकल पड़ी और फुटपाथ का रास्ता पकड़ भीड़ से उलझते जूझते अपने गंतव्य के लिए निकल जाती है।अरे मैडम जी किराया तो देती जाओ ऑटो वाले ने आवाज़ दी लेकिन शायद ये आवाज उसके कानो तक पहुंची नही पहुंचती भी कैसे वाहनों की चिल पौ का इतना शोर जो है।ऑटो ड्राइवर झल्लाया और बड़बड़ाते हुए ऑटो में बैठ गया।वहीं वो तेज कदमो से चलते हुए घड़ी की सुइयों को देखते हुए चली जाती है।हर बढ़ते कदम के साथ बढ़ रही थी उसके माथे पर शिकन और हृदय में बैचेनी।कुछ ही मिनट में वो अपनी मंजिल पर पहुंचती है और रुक कर कुछ क्षण खड़ी हो देखती है सामने लगा बड़ा सा बैनर जो सिटी हॉस्पिटल का होता है।वो एक गहरी सांस ले फिर से तेज कदम बढ़ाती है और जल्दी जल्दी रिसेप्शन पर पहुंच पूछती है रूम नंबर 18 कहां है।फर्स्ट फ्लोर दाये से थर्ड वहां मौजूद व्यक्ति ने कहा तो वो तेजी से फर्स्ट फ्लोर भागी।वहां पहुंच वो देखती है एक नव विवाहिता को जिसकी आंखों में आंसू है और उम्मीद भरी नजरो से रास्ते की ओर देख रही है।
वो तेजी से उसके पास जाती है और उससे पूछती है "साक्षी! कैसा है वो, और कहां है?"
" कुमुद वो अंदर है बेहोश है आपका नाम बार बार ले रहे थे तो डॉक्टर ने कहा कि आपको बुला ले इसीलिए आपको इस समय यहां बुलाना पड़ा।"
"कोई बात नही मैं देखती हूँ जाकर तुम चिंता न करो सब ठीक होगा।" कहते हुए वो रूम की ओर बढ़ी तभी अंदर से दो व्यक्ति निकले जिनमे से एक डॉक्टर और एक सहायक है।डॉक्टर को देख वो तुरंत उनकी ओर लपकी और बोली "डॉक्टर मैं कुमुद, अब कैसे हैं केशव!"
डॉक्टर "ओह आप हैं कुमुद लेकिन आपने आने में देर कर दी सॉरी।"डॉक्टर के ये कुछ लफ्ज सुन वो शॉक्ड हो वहीं बैठ जाती है कुछ पुराने लम्हे चलचित्र की तरह उसकी आंखों से गुजरने लगते है।जिन लम्हो में वो थी और था केशव..!वही जिसने अभी अभी इस जहां को अलविदा कहा था
कुछ ही महीनों पहले की ही तो बात थी अपनी दोस्त की शादी में वो केशव से पहली बार मिली थी।पहली मुलाकात में हुई थी जबर्दस्त तकरार।हुआ कुछ यूँ कि डीजे पर एक सॉन्ग प्ले करने के लिए दोनो ही अपनी जिद पर अड़ गये।कुमुद अपनी पसंद का स्लो मोशन में कोई अच्छा सॉन्ग चलवाना चाहती थी तो केशव तड़क भड़क वाला रॉकिंग सॉन्ग।
कुमुद :- "ये क्या सॉन्ग चला रहे हो भाई अभी कौन से यहां कोई डांस करने आ रहा है।कोई स्लो मोशन ही लगा दो बैठ कर सुन ही लिया जाये।"
"अरे नही भाई!कोई रॉकिंग सॉन्ग लगाओ मैं हूँ मैं आ गया हूँ तो अब जम के धमाल होगा।"केशव ने कहा तो कुमुद बोली "बड़े आये कहां से उड़कर आ गये अचानक अभी तो यहां कोई नही था।अब तो मैं एक सॉन्ग सुन कर ही हटूंगी जो करना है कर लो।" कुमुद को सुन केशव कुछ बोलता इससे पहले ही वहां मौजूद किसी व्यक्ति ने शरारत कर ऐसा गाना प्ले करवा दिया जिससे ये दोनो लड़ना भूल उसके पीछे दौड़ पड़े।उसी तकरार के साथ दोनो के रिश्ते की शुरुआत हुई थी।कभी किसी पार्क में मुलाकात तो कभी किसी कॉफी कैफे में।मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा तो इनके प्रेम की भनक दोनो के परिवारी जन को हुई और फिर वो समय आया जब इनके रिश्ते को इस जहां की नजर लगी और इन पर एक दूसरे से मिलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।लेकिन प्रेम कहां किसी प्रतिबंध को मानता है इनके प्रेम ने भी नही माना और कोशिश कर दोनो फिर मिले जो एक दूसरे की अंतिम मुलाकात थी।
पार्क में बैठ बातों ही बातों में केशव ने बताया कि उसका रिश्ता तय कर दिया गया है और वो ये विवाह करना भी नही चाहता कितनी कोशिशो से मनाया था कुमुद ने उसे।सबके सम्मान का हवाला देकर उसने मना ही लिया था केशव को साक्षी से विवाह करने के लिए।कुछ ही दिनों में विवाह भी हो गया और वो दोनो के लिए गुमनाम हो गयी। अभी कुछ समय पहले ही उसे केशव के दुर्घटना ग्रस्त हो हॉस्पिटल में एडमिट होने की खबर मिली। जिसे सुन कर वो किसी से बिन कुछ कहे सुने दौड़ी चली आयी थी और अभी अभी मिली ये दूसरी खबर सुन वो सुधबुध खो बड़बड़ाने ही लगी थी।वो बैठी तो ऐसी बैठी कि दोबारा खुद से उठ ही न पाई।केशव के इस तरह उसे याद करते हुए जाने का सदमा कुमुद को ऐसा लगा कि वो सदा के लिए मानसिक चिकित्सालय की चाहरदिवारियो में कैद हो कर रह गयी उस जानदार गुड़िया की तरह जिसमे जान तो है लेकिन उसमें कोई भी हलचल होना दूसरो पर निर्भर होती है।