कुछ ज्यादा ही अच्छे लोग
कुछ ज्यादा ही अच्छे लोग
"आज महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ हमें ही आवाज़ उठानी होगी। आज कल जहाँ देखो वहीं महिलाओं के साथ शोषण हो रहा है! इसे रोकने के लिए हमें जल्द से जल्द कोई सख़्त कदम उठाना होगा! तभी महिलाओं को वो आज़ादी मिल पाएगी जो वो हमेशा से ही चाहती है। मैं चाहता हूँ कि इस मुहीम में आप सब मेरा साथ दें ताकि आने वाले समय में महिलाएं भी अपना कुछ नाम करे।" कहते हुए वो जनता जनार्दन से अपने लिए तालियां बटोर रहा था।
वो जानता था कि जनता साथ है तो उसे विधायक की कुर्सी पर बैठने से कोई नहीं रोक सकता। साथ ही ये भी जानता था कि महिलाओं के लिये ही बातें है जिससे वो जनता की नजरों में आ सकता है।
"हाँ सर जी! आप सही कह रहे है, लेकिन उन महिलाओं का क्या जो घर की नौकरानी है मालिक उन का शोषण करते है और उन्हें मुँह बंद करने के लिए धमका कर रखते! क्या आपने उनके लिए कुछ सोचा है।" जनता जनार्दन के बीच से एक व्यक्ति ने सवाल उठाया।
कुछ देर चुप रहने के बाद वो बोला.."उनका तो वो खुद ही कुछ कर सकती है! जब वो खुद ही अपने मालिक के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाना चाहती तो हम क्या कर
सकते है।" कहते हुए एक रहस्यमयी मुस्कान लिए वो अपनी कुर्सी पर बैठ गया।
कुछ बातें हुई! उसे मालाएँ भी पहनाई गयी और जयकारे भी हुए। कुछ देर बाद वो वहां से उठा और हॉल से बाहर निकल कर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया।
"इन्हें ही विधायक बनना चाहिए। बहुत ही अच्छे आदमी है! देखा नहीं महिलाओं के लिए कितना कुछ कर रहे है।" जनता आपस में बातें कर रही थी।
और वो ये सब बातें सुनते हुए अपनी गाड़ी में बैठा और वहां से निकल गया।
घर पहुंचा तो रसोई से बर्तनों की आवाजें आ रही थी।
"लगता है राधा आ गयी!" एक कुटिल मुस्कान लिए वो मन ही मन बड़बड़ाया। और घर का दरवाज़ा बंद कर अपना कुर्ता उतार कर सोफे पर फेंका और किचिन की तरफ बढ़ गया।
"राधा रानी! जल्दी से आओ, बहुत थक गया हूँ मैं! और हां ये जो तुम्हारे शरीर पर चीथड़ा है मैला सा इसे यही उतार कर आना।" कहते हुए अपने कमरे की तरफ चला गया।
कुछ देर बाद ही वो अपने हॉल में टीवी ऑन कर के बैठा अपना ही समाचार देख रहा था।
और पास ही के कमरे से एक सिसकी भरी आवाज़ आ रही थी जो टीवी की आवाज़ से काफी हद तक दब चुकी थी।