अमर जवान: बच्ची की शहादत
अमर जवान: बच्ची की शहादत


अमर जवान
"सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसतां हमारा हमारा! सारे जहां से अच्छा...
परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासवां हमारा हमारा
सारे जहां से अच्छा..."
स्टेडियम में देशभक्ति गीत चल रहा था और साथ ही सामने सेना की परेड हो रही थी।
जी हां ये दिल्ली का सबसे बड़ा स्टेडियम था। जहां हर साल गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर बहुत अच्छे अच्छे कार्यक्रम होते है।
देश की शान तिरंगा झंडा फहराया जाता है।
आज स्वतंत्रता दिवस था और उस स्टेडियम में तिरंगा झंडा फहराया गया था.. सैनिकों ने सलामी दी और दिल्ली की सारी स्कूल वहीं इकट्ठी थी।
इस बार दिल्ली के एक अनाथ आश्रम के बच्चें भी अपनी प्रस्तुति देने को वहां आये थे।
सब बहुत खुश भी थे कि आज उन्हें हमारे देश के प्रधानमंत्री से मिलने का मौका मिलेगा और इसके साथ ही देश की सेवा करने वाले, अपनी जान न्योछावर करने को तैयार रहने वाले, देश की शान कहलाने वाले सैनिकों से भी मिलेंगे।
उसी अनाथाश्रम में एक बच्ची थी जिसका नाम था भूमि। वो अपने हाथ मे नन्हा सा तिरंगा लिए खड़ी सबको देख रही थी। उसकी नजरें बार बार उन बच्चों पर जा रही थी जो अपने माता पिता के साथ आये थे।
"मेरे मां पापा होते तो कितना अच्छा रहता। मैं भी अपने माँ पापा के साथ आती। लेकिन कोई नही भूमि..दीदी ने सिखाया है न कि जिसका कोई नही होता उसका भगवान होता है.. और ये धरती माँ भी तो मेरी माँ ही है न... बड़ी होकर इसकी रक्षा करूँगी मैं।" कहते हुए वो बच्ची नीचे झुकी और इस भारत माता को प्रणाम किया लेकिन झुकते वक्त उसका एक हाथ ऊपर था ये वो हाथ था जिसमे उस बच्ची ने तिरंगा पकड़ रखा था
दूर खड़ा कोई उस बच्ची को ही देख रहा था। वो थे इस देश के आर्मी का जनरल मेजर हरदयाल सिंह राठौड़।
आर्मी की यूनिफार्म पहने बड़ी मूंछो वाले बहुत लंबे से। उस बच्ची को देख कर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया।
उनकी इच्छा हो रही थी कि वो उस बच्ची के पास जा कर उसकी पीठ थपथपाए। लेकिन अभी उन्हें अवार्ड मिलने वाला था तो वो उस जगह खड़े थे जहां से बच्ची के पास जाने में समय लग जाता।
कुछ ही देर में मेजर राठौड़ को अवार्ड मिला.. वो बच्ची अब उन्हें ही देख रही थी। सब लोग तालियां बजा रहे थे.. और वो बच्ची पास ही पड़ी एक कुर्सी पर चढ़ कर अपने हाथ में लिए तिरंगे को ऊपर कर फहराने लगी थी।
मेजर राठौड़ ने अवार्ड लिया लेकिन उनकी नजरें अभी भी उस बच्ची भूमि पर ही थी। वो उसे देख कर मुस्कुराए जा रहे थे।
अचानक ही मेज़र राठौड़ ने देखा कि वो लड़की एकदम से घबराई हुई लग रही है। उसने वो तिरंगा अपने सीने से चिपका लिया था।
मेज़र ने अपना अवार्ड अपने किसी साथी को दिया और भूमि की ओर जाने लगे।
भूमि दूसरी दिशा में तो कभी मेज़र राठौड़ की तरफ देखे जा रही थी। देश भक्ति गीत की आवाज़ बहुत तेज थी। भूमि बार बार अपने हाथों से इशारे करने लगी थी लेकिन मेजर राठौड़ समझ नही पा रहे थे।
अब मेजर राठौड़ भूमि से थोड़ा ही दूर थे।
भूमि से रहा नही गया.. वो भीड़ से बाहर निकली और मेज़र राठौड़ की तरफ दौड़ते हुए आने लगी लेकिन पास ही के सिक्योरिटी गार्ड ने उसे रोक लिया।
घबराई हुई सी भूमि ने मेज़र राठौड़ की तरफ देखा और अचानक दूसरी तरफ एक बड़े से पेड़ की तरफ देखने लगी। फिर वापस मेज़र राठौड़ को देखा।
भूमि को उस गार्ड पर गुस्सा आ गया, भूमि ने आव देखा न ताव और उस गार्ड के हाथ पर जोर से काट गयी और मेज़र राठौड़ की तरफ दौड़ गयी। उसके पीछे बहुत से सिक्योरिटी गार्ड्स भी दौड़ पड़े।
मेज़र के पास पहुंच कर भूमि ने मेज़र को जोर से धक्का दिया। जैसे ही मेज़र को धक्का लगा वैसे ही एक गोली चलने की आवाज़ आई और भूमि को भेद गयी।
सब जगह आफरा तफरी मच गई। मेजर राठौड़ ने भूमि को अपनी गोद में उठा लिया। भूमि खून से लथपथ मेज़र राठौड़ को देख कर मुस्कुरा रही थी।
वो शूटर पकड़ा जा चुका था।
"बच्चे!! आपको कुछ नही होगा।" कहते हुए मेज़र राठौड़ की आंखों में आँसू आ गए।
"सर..आपको हमारे देश की रक्षा करनी है तो आपको कैसे कुछ होने देती। मैं भी बड़े हो कर आपके जैसे बनना चाहती थी लेकिन अभी तो छोटी हूँ ना देश की रक्षा तो नही कर पाई लेकिन देश के रखवाले को बचा कर देश की रक्षा कर पाई हूँ।
लेकिन देखना नए जन्म में देश की रक्षा करने वापस आऊंगी।" कहते हुए भूमि ने मेज़र राठौड़ की रक्षा करते हुए मेज़र की गोद मे दम तोड़ दिया।
उसके इस मौत को मेज़र राठौड़ ने शहादत का नाम दिया।
वहां आये आर्मी के सभी सैनिकों ने उसकी शहादत को सराहा।
भूमि को इक्कीस तोपों की सलामी दी गयी।
उसके शरीर को तिरंगे में लपेट कर सम्मान दिया गया, वो सम्मान जो सिर्फ एक शहीद सैनिक को दिया जाता है या देश के सम्मानीय व्यक्तियों को।
और उसकी शहादत को याद रखने के लिए दिल्ली के अमर जवान ज्योति के पास स्वर्णाक्षरों में नाम लिखा गया।
आज भूमि की शहादत पर पूरा देश गर्व कर रहा था।
भूमि को बॉडी को ससम्मान ले जाया गया था और साथ ही भूमि का गाया हुआ देश भक्ति गीत पूरे स्टेडियम में गूंज उठा...
नन्हा मुन्ना राही हूं,
देश का सिपाही हूं,
बोलो मेरे संग,
जय हिन्द, जय हिन्द, जय हिन्द।
जय हिन्द, जय हिन्द।
रस्ते पे चलूंगा न डर-डर के,
चाहे मुझे जीना पड़े मर-मर के,
मंजिल से पहले न लूंगा कहीं दम,
आगे ही आगे बढ़ाऊंगा कदम,
दाहिने बाएं दाहिने बाएं, थम।
नन्हा मुन्ना राही हूं…